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________________ समम अश्वांसः २९७ ५ विवेक निशि+लालोपं वर्षति देवे कज्जलपटलकाल' कायप्रतिष्ठासु सकला काष्ठासुरे विहित "समानावितपुरसा पहारा: पुरबाहिरकोपवने धर्म विभजन्तवेवं ममेदमिति विषयमानाः कलमपहाय मेरेया: 'पानगोष्ठोपतिष्ठन्तः पूर्णाहितफलकोपोन्मेष कलुषधियणाः यष्टायष्टि मुष्टामुष्टि च युद्धं विधाय सर्वपि मनुरन्यत्र धूर्तिलात् 1 स किल 'यथावर्शनसंभवं महामुनिविलोकनासस्मिन्नहत्येमं तं गृह्णाति । तत्र च दिने 'तदर्शनाबा समग्रहीत् । ११ १२ विरज्यानजवावसुखबीजातवतु भूतिलः समानशीलेषु कश्यचश्या "विनाशले श्यामात्मसमक्षमुपयुज्य बुत्पाटय ३४ मनोजकुज १४ जटा मालनिवेश मित्र केशपाशं विरत्राय पराहितनेत्राय चरित्राय समीचि । भवति चात्र लोक:-- १९ एकस्मिन्वासरे मद्यनिवृसंभूतिलः किल एसट्रांबासहायेषु मृतेष्णा पवमापयम् ॥ ९ ॥ इत्युपासकाध्ययने मद्यनिवृसिगुण निवानो नाम त्रयोविशतितमः कल्पः । किसी समय एक रात्रि में जब मेघ वस्त्र को आर्द्र ( भींगा ) करने पूर्वक जोर की जलवृष्टि कर रहे थे और समस्त दिशाएँ कज्जल-पटल सरीखीं कृष्ण शरीर वालों हो रहीं थीं तब उन्होंने नगर के सार द्रव्य ( सुवर्ण व रत्नादि ) की चोरी की। फिर के नगर के बाहर के बगीचे में धन का विभाग ( बंटवारा) कर रहे ये और 'यह मेरा है और यह तेरा है' यह कहकर झगड़ रहे थे । पश्चात् युद्ध (झगड़ना) छोड़कर उन्होंने पहले किसी एक चोर द्वारा शराब मंगवाई और शराव की पान गोष्टी की, अर्थात् एक स्थान पर बेठकर प्रायः सभी ने शराब पी, जिससे पहले किये हुए कलह का कोप वह जाने से मलिन-बुद्धि वाले उन्होंने लठा रूठी और मुक्का मुक्की बाला तुमुल युद्ध किया, जिससे घूर्तिल के सिवा सब मर गये । निस्सन्देह धूलि के सदा एक व्रत ग्रहण करता था, था, इसी से वह बच गया । एक नियम था, कि उसे जिस अतः उसने उस दिन मुनि के दिन मुनि का दर्शन होने से दर्शन होता था, उस दिन वह शराब के त्याग का व्रत के लिया एक सरीने स्वभाव वाले अपने साथी चोरों की शराबखोरी के आश्रय से उत्पन्न हुई मरणावस्था को प्रत्यक्ष देखकर वह विशेष दुःखों के कारण संसार से विरक्त हो गया और कामदेव रूपी वृक्ष के जटा समूह के प्रवेश-सरीखे केश-समूह उखाड़ कर पारलौकिक दुःखों को जीतने वाले चरित्र के पालन करने का चिरकाल तक इच्छुक हुआ । उक्त कथा के संबंध के एक श्लोक का भाव यह है 'जब कि मद्यपान के दोष से दूसरे साथी चोर मर गये तब एक दिन के लिये शराब का त्याग कर देने से घूर्तिल चोर बच गया और उसने दीक्षित होकर आपत्तियों से रहित स्थान (मुक्तिपद) प्राप्त किया ॥ ९ ॥ इस प्रकार उपासकाध्ययन में मद्य-त्याग के गुणों का निदान करने वाला तेईसवां कल्प समाप्त हुआ । ★ 'लक्रोपं ग०' । १. कृष्णशरीर । २. दिशासु । ३. खारद्वव्च । ४. युद्ध ५. अनेन केनचित् कृत्वा आनायितमद्याः । ६. एकत्र पानं । ७. मद्यपानात् पूर्वं कृत ८ यस्मिन् दिने मुनयों मिलन्ति तद्दिने नित्यं व्रतं गृह्णाति । ९. मुनिदर्श नातु । १०. मरणावस्थां । ११. दृष्ट्वा । १२. संसारात् । १३. उत्पाटनं कृत्वा । १४. कामः । १५. वृक्षः । १६. चिरं दोर्घकालं पालितवानित्यर्थः । १७. परलोकपाषदुःखजयनशीलाय १८. प्राप्तवान् । १९. आपत् - रहितं स्थानं । ३८.
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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