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________________ यशस्तिलक चम्पूकाव्ये मनोमहामोहः कोपोनमपहाय हारहरव्यवहारातिलखितमातशिकागीतानुगतरतालिकाविष्टम्बमावसरो ग्रहगृहीतशरीर इवानीतानेकविकारः पुमबुभुक्षाशुशुक्षिणि कोणकुशिकुहरस्तरसमपि' भनितवान् । प्राभंवाःसहोसमदमो मातहीं कामितवान्। भवति चात्र इलोकः-- : हेतुशुद्धः श्रुतेर्वाक्यात्पीतमयः किलंकपात् । मांसमातक्षिकासङ्गमकरोन्मूहमामसः ॥ ८ ॥ इरपुपासकाप्ययने मद्यप्रत्तिदोषदर्शनी नाम द्वाविंशः कस्पः । श्रूयतां ममिवृत्तिगुणत्योपाख्यानम्-अशेषविद्याशार मवमत्तमनीषि मत्तासिकुप्लकेलि कमलनाभ्यां वलम्यां पुरि बामरित्रशीलः१० करवाला, कपाटोद्घाटनपटुगंट:, महा निवासंपावनकुशलो तिला, परगोपायलद्रविणविशारदः शारवः, १२खरपटारामविलाम: कविन पाणी न पहिला प्रतिपकपरस्परप्रोतिप्रपशाः स्वध्यावसायसाहसाभ्यामोदवरशरोरार्धवासिनी भवानीमपि मुकुन्वाहवयाश्रय धियं निपपि कात्यायनोलोचना "संजगमञ्जनमपि हतुं समर्थाः, पश्यतोहराणामपि पश्यतोताः, कृतान्तदूतानामपि कृतान्तबूताः । ऐसा चिर काल तक मन में विचारकर म्लेच्छविद्या के निधि वाले उसने शराब पी ली। उसस प्रभाव से उसे तीव्र नशा चढ़ा। उसने अपनी लंगोटी खोल डालो और मद्यपान से विह्वल दुई चाण्डालनियों के गीत को अनुकरण करती हुई तालियाँ पीटने लगा। उस समय उसकी दशा ऐसी हो गई थी-मानों उसके शरीर में कोई भूत धुस गया है, इमलिए उसने अनेक विकृत चेष्टाएं की और जब उसके उदर का मध्यभाग भूखरूपी अग्नि से क्षीण होने लगा तब उसने मांस भी खा लिया। उससे उसे असह्य कामोद्रेक हुआ और उसने चाण्डालिनी के साथ रतिविलास भी कर लिया। इस विषय में एक श्लोक है, जिसका अभिप्राय यह है मद्य को उत्पन्न करने वाली वस्तुओं के शुद्ध होने से तथा वेद में लिया होने से मढ़ मनोवृत्ति वाले एकपाद संन्यासी ने मद्य पी लिया और फिर उसने मांस भी खाया और चाण्डालिनी के साथ रति विलास भी किया ॥ ८ ॥ इस प्रकार उपासकाध्ययन में मद्यपान के दोष बतलाने वाला बाईसबा फल्प पूर्ण हुआ। १०. मद्यप्रती धूर्तिल नाम के चोर की कथा[ अब मद्यत्याग से उत्पन्न हुए गुण वाले की कथा सुनिए।] सभी विद्याजों को चतुराई के मद से मत्त हुए विद्वान् रूपी भवरों के समूह की क्रीड़ा के लिये कमल के कोश-सरीखो 'बलभो' नाम की नगरी में पांच चोर रहते थे। उनमें से 'करवाल' नाम का चोर मकानों में छिद्र ( सेंध ) लगाने के स्वभाव वाला था । 'बटु' किवाड़ खोलने में चतुर था । 'धूर्तिल' महानिद्रा उत्पन्न करा कर चोरी करने में कुशल था। 'शारद' दूसरों के द्वारा छिपाये हुये धन का स्थान देखने में प्रवीण था और पांचवा कृकिलास ठग विद्या का विलासो था। वे पांचों पारस्परिक प्रीति विस्तार को स्वीकार करने वाले थे और अपने उद्योग व साहस द्वारा वे शिव के अर्धाङ्ग में निवास करने वाली पार्वती को भी, विष्णु के हृदय में निवास करने की बुद्धि रखने वाली लक्ष्मी को भी और दुर्गा के नेत्रों में लगे हुए अञ्जन को भी चुराने में समर्थ थे। वे चोरों के भी चोर थे और यमदूतों के भी यम-दूत थे । १. मद्यापन विह्वलोभूतमातङ्गी । २. अग्निः । ३. मांसं । ४. सेवितवान् । ५. मद्यस्य कारण गुट, पातको प्रमुखशुद्धत्वात् । • ६. चातुर्य । ७. मनीषिण एव मत्तभ्रमराः । ८. कीड़ा। ९. मध्ये कोषासदृशायाम् । *, खात्र छिद्रं । १०. चौरकर्म । ११. गोपित 1 १२. ठकशास्नं। १३, चौराः। । १४. उद्यम् । १५ आसनतं ।
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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