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________________ षष्ठ आश्वासः રર૬ इति विचिन्त्याभिलषिता । ततस्तामपजिही षिषणन' मुद्दनिवत्य नितितनिजनिलपसुकेशौनिवेशेन प्रयागस्यापहृत्य च पुनर्नभश्चरपुरं प्रत्यनुसरता गगनमार्गाव-प्रतिमिवृत्तपितमुकेशीवर्शनाशङ्किताशयेन ताकापसंक्रमिताबसोकनापणसघविद्याद्वपन मालपुराभ्यभागांन भावनानामनि कामने मुक्त्वा । तत्र च मृगयाप्रशंस'नमागतेन भीमनाम्ना किरातराजलक्ष्मीसीम्नावलोकिता, नीता चोपान्तप्रकोणेङ्गगुबी फलमल्लि पल्लिम् । एतद्रूपदर्शनवोप्समदनभदेन तेन स्वतः परतश्च तस्तैरुपायरात्मसंभोगसहायः प्रापिताम्यसंजातकामिता हठात्कृत कठोरकामोपक्रमेण तस्परिगृहोतव्रतस्पयश्चिायतकान्तारदेयताप्रातिहास्पियप्तिपश्वणप्लोषेण मृत्युहेतुकात पावकपष्यमानदारीरेण व 'मातः, समस्कमिममपराधम्' इत्यभिषाय धनेश्वरोपवारोपचीयमानसहचरीचित्तोत्कण्ठे शाहपुरपर्यन्तपर्वतोपकण्ठे परिहता तत्समीपसपावासितसानिौकेन पुष्पकनामकेन वणिधपतिपाकेना बलोफिता सती स्वीकृता । तेन, तेन पार्थन स्वस्थ कामानेतुमसमर्यन कोशलदेशमष्यायामयोध्या पुरि च्यालिकाभिधानकामपल्लवादस्पाः शंफल्मयाः समपिता। तयापि मदनमपसंपादनावसपाभिः कथाभिः सोयितुमशक्पा तद्वाजधानीविनिवेशस्य सिंहमहीशस्योपायनोकृता । इसके पश्चात् उसकी बुद्धि इसे अपहरण करने की इच्छुक हुई । पश्चात् वह अपने गृह को और लोटा और अपनी पत्नी सुकेशो को अपने गृह में ठहराकर वापिस उसो उद्यान में आकर अनन्तमति को अपहरण करके अपने विद्याधर नगर की ओर चल दिया परन्तु जब इसने आधे आकाशमार्ग से वापिस लौटी हुई और कुपित हुई अपनी पली मुकेशी को देखा तो इसका हृदय भयभीत हुआ। अतः इसने अनन्तमति के पारीर में 'अवलोकिनो' और 'पर्णलघु' नामको दो विद्याएँ संक्रमण कराई। पश्चात् उन दोनों विद्याओं ने अनन्तमति को शपुर के निकटवर्ती भोमवन' नामके वन में छोड़ दिया । वहाँ पर शिकार-क्रीड़ा के लिए आये हुए भीलों की राज्यलक्ष्मी के मर्यादाभूत भिल्लराज भीम ने उसे देखा और वह उसे इगदी फलों की लताओंवाली भीलों की स्थानीभूत पर्णकुटी ( झोपड़ी ) में ले गया । इसके रूप लावण्य को देखकर भिल्लराज का काममद प्रदीप्त हो गया, अतः उसने स्वयं व दूसरों की सहायता को अपेक्षावाले व अपने भोग में सहायता देने वाले अनेक उपायों से अनन्तमति से प्रार्थना की, किन्तु उसमें कामवासना उत्पन्न नहीं हुई। अतः उसने इससे बलात्कारपूर्वक कठोर कामरूपी रोग का इलाज किया, परन्तु इसके द्वारा धारण किये हुए ब्रह्मवयं व्रत को निश्चलता से आश्चर्यचकित हुई वनदेवता के माहात्म्य से भिल्लराज को पूरी झोपड़ी अग्नि से दग्ध कर दी गई, अतः जब भिल्लराज भीम का शरीर मृत्यु-जनक मयरूपी अग्नि से जलने लगा तो उसने कहा-'माता! मेरे इस एक अपराध को क्षमा करो।' बाद में उसने इसे शङ्खपुर के निकटवर्ती पर्वत के समीपवर्ती स्थान पर छोड़ दो, जो कि मीलों द्वारा की जानेवाली सेवाशुश्रूषा से उनको भिल्लनियों के चित्त की उत्कण्ठा वृद्धिंगत करनेवाला है। बाद में अनन्तमति को वणिक् पति के पुत्र 'पुष्पक' ने देखा, जिसके द्वारा उक्त पर्वत के निकट व्यापारियों को समूहरूपी सेना बसाई गई है, परन्तु वह धनादि देकर उसे वश करने में असमर्थ रहा तब उसने उसे कौशल देश को मध्यवर्ती अयोध्या नाम को नगरी में रहनेवालो कामरूपी पल्लव को कन्दली-सरीखी 'ज्यालिका' नामकी देश्या के लिए समर्पण कर दी । जब वह वेश्या भी काम के दर्द की उत्पन्न करने की स्यानीभूत कथाओं से उसे ब्रह्मचर्य से डिगाने में असमर्थ हुई तब उसने इसे उस देश की राजधानी में निवास करने १. अपहर्तुमिच्छुमतिना। २. व्यात्रुटप। ३. कोड़ा प्रति । ४. हिंगोरक । ५. भिल्लालपपर्णकुटी । ६. परिपूर्णप लिलदाहेन । ७. पुत्रेण। ८. वणिक्युषेण । ९. कुट्टिन्याः । १०-११, तदाजधान्यां विनिवेशी निवेशः स्थान यस्य सः सस्य । १२. प्राभुतीकृला।
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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