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________________ चतुर्थं भाश्वासः लक्ष्मध्यसंचारम्, राजकुलभित्र शुद्रलोकाधिष्ठितम् वामेक्षणाचरितमिव स्वभावविषमम् निःस्वामिकमिवामर्यादन्यवस्सू छत्रभङ्गमिव बहुकण्टकपद्रवम्, खलोपदेशमिव दुरन्तम् नृपतिचित्तमिव दुःखीपसेष्यम्. समराङ्गणमिव सलगसंघट्टम्, बेतालकुलभित्र महावेहभोषणम्, फलिङ्गवनमिव वन्तिदुर्गमम्, स्वर्धुनीप्रचामिव कृताष्टापदावतारम् नाटेर मिश्र चित्रकम् वर्षारात्रिमिव घनमेघरावम्, रघुवंश मित्र मागधीप्रभषम्, चन्द्रमिषामृताम्पदम् गिरिसुतारितमिव विजयाविस्तृतम् जलनिधिमिव जम्बुकायुवितम् रथचरणपाणिमिव सुदर्शनाधारम्, युधिष्ठिरमिव मत्वार्जु ननकुल सहदेवागम्, सुभटानीकमिवाभीरुप्रतिष्ठितम् हितम्, समर्थ स्थान १११ है व पक्षान्तर में जिसके मध्यभाग का ज्ञान अशक्य ) है । जो वैसा क्षुद्रलोकों (व्याघ्रादि दुष्ट जीवों) से व्याप्त है जैसे राजकुल क्षुद्रलोकों ( असहिष्णु लोगों ) से व्याप्त होता है । जो स्त्रियों के चरित्र - सरीखा स्वभाव से विषम (बड़-खाबड़ व पक्षान्तर में कुटिल ) है । जो वैसा अमर्याद व्यवस्थित वेमर्याद स्थितिवाला ) है जैसे राजा-रहित नगरादि अमर्याद व्यवस्थित ( सदाचार नियम से विचलित ) होता है। जो वैसा वहु कण्टको पटन ( सूक्ष्म तीक्ष्ण काँटों के उपद्रव वाला ) है जैसे छत्रभङ्ग ( राज्य-नाश अथवा राजसिंहासन से राजा का च्युत होना) वहुकण्टकोपद्रव ( दुष्ट शत्रुओं के उपद्रवों से व्याप्त ) होता है। जो दुष्ट शास्त्र- सरीखा दुरन्त { अन्त-रहित व पक्षान्तर में दुष्ट स्वभाव वाला ) है । जो वैसा दुःखोपसेव्य ( दुःख से आश्रय के योग्य ) है जैसे राजा का चित्त दुःखोप सेव्य ( आराधना करने को अशक्य ) होता है। जो बेसा सखङ्ग-संघट्ट ( गण्डकोंगेडों के युद्ध से व्याप्त ) है जैसे संग्राम-भूमि सखङ्ग-संघट्ट- खड़ों ( तलवारों) की टक्करों से सहित होती है। जो वैसा महादेह-भोषण ( विस्तृत होने के कारण भयानक ) है जैसे बेतालों ( व्यत्स॒रादिदेवों ) का समूह महादेह भीषण ( महान् शरीर के कारण भयानक ) होता है । जो कलिङ्ग देश के वन सरीखा दन्तियों (पर्वतों ) व पक्षान्तर में हाथियों से दुर्गम है । जो कि गङ्गा के प्रवाह सरीखा कृत-अष्टापद अवतार ( शरभ जीवों से किये हुए प्रवेशबाला व पक्षान्तर में कैलाश पर्वत से अवतरण करने वाला ) है । जो नट सरीखा सचित्रक ( चित्रको व्याघ्र विशेषों से व्याप्त व पक्षान्तर में आश्चर्यजनक ) है । जो वर्षाकाल-सा घन- मेघराव ( बहुत सी मोरों से व्याप्त व पक्षान्तर में प्रचुर मेघों की गर्जना वाला ) है । जो वैसा मागधी प्रभव ( पीपलों की उत्पत्तिवाला ) है जैसे रघुवंदा मागवीप्रभव ( सुदक्षिणा नाम की दिलोप राजा की पत्नी के वर्णनवाला ) होता है । जो चन्द्र-सरीखा अमृता-आस्पद ( गुडूची का स्थान व पक्षान्तर में अमृत का स्थान ) है । जो वैसा विजया- विस्तृत ( हरीतकयों-हरड़ों से विस्तृत ) है जैसे पार्वती का चरित्र विजया ( विजया नाम की अपनी सखी) से विस्तृत होता है। जो वेसा जम्बुक-अध्युषित ( शृगालों से सेवन किया हुआ) हैं जैसे समुद्र जम्बुक-अध्युषित ( वरुण दिवपाल से सेवन किया हुआ ) होता है । जो बेसा सुदर्शन-आधार ( सुदर्शन नाम की औषधि विशेषों का स्थान ) है जैसे श्रीनारायण सुदर्शन-आधार ( सुदर्शन नाम के चक्र से अधिष्ठित ) होते हैं। जो वैसा मरुद्ध व अर्जुन-नकुल, सहदेवा अनुग ( वायु की उत्पत्ति, मोर या वृत्तविशेष, नेवला, बला ( खरहंटो ) से व्याप्त है जैसे युधिष्ठिर महाराज जिसके अनुगामी भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव नामके पाण्डुपुत्र हैं ऐसे हैं । जो ( सुभटों की सैन्यसरीखा ) अभीरु ( शतावरी सहित व पक्षान्तर में अकातर - वीर पुरुषों से सहित ) है । जो क्षीरसागर के मन्यन-सा लक्ष्मी-सनाथ ( ऋद्धि व वृद्धि नाम की औषधियों से सहित व पक्षान्तर में लक्ष्मी सहित ) है | जो वैसा जातवृहतीक द्रवार्ताकी ( रान कटेहली की उत्पत्तिवाला ) है जैसें छन्दशास्त्र जातवृहतीक ( दो अक्षरवाली छन्दजाति से व्याप्त ) होता है। जो वैसा तपस्विनी-प्रचुर ( जटामांसी व शुभ्रकमलों से प्रचुर ) है जैसे माश्रमस्थान तपस्विनियों-संन्यासिनियों से प्रचुर होता है। जो श्रीमहादेव की जटा अन्य सरीखा चन्द्रलेखा
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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