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ग्रन्थ-परिचय श्रीमत्सोमदेवसूरि का 'यशस्तिलकचम्पु' महाकाव्य संस्कृत साहित्यसागर का अमूल्य, अनोखा व बेजोड़ रत्न है । इसमें यहोवरमहाराज के चरित्र-चित्रण को आधार बनाकर राजनीति, धर्मशास्त्र, दर्शनशास्त्र, आयुर्वेद, ज्योतिष एवं सुभाषित-आदि विषयों के ज्ञान का विशाल खजाना वर्तमान है। अतः यह समूचे संस्कृत साहित्य में अपनी महत्वपूर्ण अनोखी विशेषता रखता है। इसका गद्य 'कादम्बरी' व तिलकमञ्जरी' की टक्कर का ही नहीं प्रत्युत उससे भी विशेष महत्त्वपूर्ण व क्लिष्टतर है। प्रस्तुत महाकाव्य महान क्लिष्ट संस्कृत में अष्टसहस्री-प्रमाण ( आठ हजार श्लोक परिमाण ) गद्य पद्य पद्धति से लिखा गया है। इसमें आठ आश्वास ( सर्ग ) है, जो कि अपने नामानुरूप विषय-निरूपक हैं। जो विद्वान् 'नवसर्गगते माघे नवशब्दो न विद्यते' अर्थात्-'नो सर्ग पर्यन्त 'माय' काव्य पढ़ लेने पर संस्कृति का कोई नया शब्द वाफी नहीं रहता' यह कहते हैं, उन्होंने 'यशस्तिलकचम्पू' का गम्भीर अध्ययन नहीं किया, अन्यथा ऐसा न कहते, क्योंकि प्रस्तुत ग्रन्थ में हजारों शब्द ऐसे मौजूद हैं, जो कि वर्तमान कोशग्नन्धों और काव्यशास्त्रों में नहीं पाये जाते । अतः 'अभिवाननिधाने प्रस्मिन् यशस्तिलकनामनि । पठिते समग्रे नूनं नक्शब्दो न विद्यते ॥ १॥' अर्थात्-'मुभाषित पदों की निधिवाले इस 'यशस्तिलकचम्पू' नामक महाकाव्य को पूरा पढ़ लेने पर निस्सन्देह संस्कृत का कोई भी नया शब्द बाकी नहीं रहता, यह उक्ति सही समझनी चाहिए।'
यश० पञ्जिकाकार श्री देव विद्वान् ने कहा है कि इसमें यशोधर महाराज के चरित्र-चित्रण के मिष से राजनीति, मजविद्या, अश्वविद्या, शस्त्रविद्या, आयुर्वेद वादविवाद, नीतिशास्त्र, ऐतिहासिक व पौराणिक कथाएँ, अनोनी व बेजोड़ काव्यकला, ज्योतिष, वेद, पुराण, स्मृतियास्त्र, दर्शनशास्त्र, अलङ्कार, सुभाषित एव अप्रयुक्त क्लिष्टतम शब्दनिघण्टु-आदि के ललित निरूपण द्वारा ज्ञान का विशाल खजाना भरा हुभा है ।
उदाहरणार्थ-राजनीति-इसके पूर्व खण्ड का ततीय माश्वास (पूर्व खण्ड ए० २२५-२५१,२५५ - ३१७, ३६५-३७७ आदि ) राजनीति के समस्त तत्वों से ओतप्रोत है। इसमें राजनीति की विशद, विस्तृत व सरस व्याख्या है । प्रस्तुत शास्त्रकार द्वारा अपना पहला राजनीति ग्रन्ध नीतियाक्यामत' इसमें यशोधर महाराज के चरित्र-चित्रण के व्याज से अन्तनिहित किया हुआ-सा मालूम पड़ता है। इसमें काव्यकला व कहानीकला की कमनीयता के कारण राजनीति की नीरसता लुप्तप्राय हो गई है। गजविद्या व अश्वविद्या-इसके पूर्व खण्ड के द्वितीय व तृतीय आरवास { पूर्व खण्ड-आश्वास २ पृ० १६३-१७९, एवं आवारा ३ पृ० ३२६-३३९ ) में गजविद्या व अश्वविद्या का निरूपण है। पास्त्रविद्या-इसके तुतीय आश्वास ( पूर्व खण्ड पृ० ३६२-५७४ व ३९३-३९५ ) में उक्त विद्या का निरूपण है। आयुर्वेद-इसके तृतीय आश्वास ( पूर्व खण्ड पृ० ३४०-३५१ ) में स्वास्थ्योपयोगी आयु वैदिक सिद्धान्तों का वर्णन है। वादविवाद-इसके तृतीय आश्वास (१० २१८-२४१ ) में उक्त विषय का कथन है। नीतिशास्त्र-इसके प्रथम आश्वास ( पूर्व खण्ड श्लोक नं० ३०-३२, ३५-३८, ४५, १२८, १३०, १३१, १३३, १४३, १४८-१५१, ) में तथा द्वितीय आश्वास (गर्व खंड श्लोक नं: ९.११, १३, २४, ३३, ३४, ५६-५७-आदि ) नीतिशास्त्र का प्रतीक है।
१. देखिए-इसका प्रयुक्त-किलष्टतम शब्द-निषण्ट ( परिशिष्ट २ पृ० ४१९-४४० पृय खण्ड परिशिप २ प. ४९८
५१६ उत्सर खण्ण।