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________________ यशस्तिलकपम्पूकाव्ये इच्छन्गृहस्पात्मन एव शान्ति स्त्रियं विदग्धां खल कः करोति । दुग्धेन य: पोषयते भुजङ्गों पुंसः कुतस्तस्य सुमङ्गलानि ।। १९६ ॥ इति बुद्धिवृद्धरुपविश्यमानमिदं पूर्वमेव नाचरितम् । तदमेवमाकलयेयम्-मतपःप्रत्यवायपरः सकलजनरञ्जनकररुचायमस्याः सर्योऽपि मृतुनोपायेन कार्योपकमः । धूयते हारमनः किल स्वच्छन्दयत्तिमियन्ती विषषितमधगवषेष मणिकुण्डला महादेवो यवनेषु निजतनुजराज्या यमराजं राजानं जघान, विषालस्तकदिरामापरेण घसन्तामतिः सुरसेनेषु पुरतविलासम्, विषोपलितेन मेखलामणिना वृकोदरी दशार्णेषु मवनार्णवम्, निशितनेमिना पुकुरेण मबिरामी मगथेषु भन्मयविनोदम्, कबरीनिगूढनासिपत्रेण घण्डरसा पाण्डषु मुण्डोरम्, इति । यथोचिछापण्डा मण्डूक्यो लोकविप्लवहेतवः । तथा स्त्रियः स्वभावेन भतश्यसनतत्पराः ॥ १९७ ॥ सांप्रतं च में समस्तापि कार्यपरिणत. "iary मुण्डयित्वा मानमः' इनोम न्यायममुसरति । न चास्ति मत्तः परोऽसीवप्रमादरी। यस्मात् अन्तःपुरे भूमिपत्तिमंचायः करोति यः संगतिमङ्गनाभिः । तस्य ध्रुवं स्यादचिरेण मृत्युधिलप्रवंशादिव दर्बुरस्य ।। १९८ ।। पढ़ती है। शास्त्रोपदेश, जो कि स्वभावत: दूसरों को प्रतिजनक अभिप्रायवाला भी है, स्त्रियों के लिए दिया हा केवल वैसा दूसरों के घात करने में समर्थ होता है जैसे छुरी पर पड़ा हुआ पानी केवल दूसरों के पात करने में ही समर्थ होता है ! अपने गृह त्र आत्मा की शान्ति का दाटछुक कोन पुरष निश्चय से स्त्री को चतुर करता है ? उदाहरणार्थ-जो पुरुष सर्पिणी को दूध पिला कर पुष्ट करता है, उसे उत्तम सुख केसे प्राप्त हो सकते हैं ? ' |1१९६।। विद्वानों द्वारा उपदेश दिये जानेवाले इस शास्त्रोपदेश को मैं पहिले से ही व्यवहार में नहीं लाया । उससे मैं ऐसा जानता हूँ कि इस महादेवी का सभी कार्य प्रारम्भ, मेरी दीक्षा में विघ्न उपस्थित करने में तत्पर व मगस्त लोगों को अनुरक्त करनेवाला एवं कोमल उपाय से किया हुआ है। उदाहरणों में सुना जाता है-मलच्छ देशों में 'मणिकुण्डला' नाम की महादेवो ने अपना स्वेच्छाचार चाह कर अपने पुत्र को राज्य देने के लिए विमिली हुई शराब के कुरले से 'अजराज' नाम के राजा को मार डाला । 'सुरसेन' नाम के देश में 'वसन्तमति' नाम की महादेवी ने विष-मिथित लाक्षारस से लिप्स हा अघर ( ओष्ट ) से 'सुरतविलास नाम के राजा का वध किया । 'दशाणं' नामके देश में 'वृकोदरी' नाम की महादेवी में विष से लिप्त हुए करधोनी के रत्न से 'मदनाणव' नामक राजा की हत्या को एवं मगध नाम के देश में मदिराक्षी' नाम की मात्रादेवी ने तीक्ष्ण धारखाले दर्पण से 'मन्मविनोद' नाम के राजा का घात किया तया पाण्डु नामक देश में 'चण्डरसा' नाम को महादेवी ने बोशपाश के मध्य में छिपाई हुई तलवार की धार से मण्डोर नाम के राजा का धात किया । जैसे शिखा-सहित छोटे मेढ़क वर्षा ऋतु में लोगों के उत्पात के कारण होते है वैसे ही स्त्रियाँ भी स्वभाव से भापति व पक्षान्तर में राजा को दःख देने में तत्पर होती है ।।१९७॥ इस समय मेरा समस्त कर्तव्य का उदय 'शिर-मुण्डन कराकर शुभ नक्षत्रों ( पुष्प व पुनर्वसु-आदि ) का [छना' इस न्याय का अनुसरण करता है । अर्थात्--जे से बाल बनवा कर शुभ-अशुभ नक्षत्र पूछना निरर्थक है, बसे ही अवसर निकल जाने के बाद कर्तव्य करने का विचार भी निरर्थक है । मुझसे दूसरा कोई विशेष आलसी नहीं है । जो राजा भदाब हुआ अन्तःपुर में स्त्रियों से संगम करता है उसको निस्सन्देह वसी शीघ्र मृत्यु होती है जैसी सर्प के दिल में प्रवेश करने से मेंढ़क को मृत्यु होतो है" ॥१२८॥ [ हे मारिदत्त महाराज ! ] में उक्त नीति को निरन्तर पढ़ता १. दुष्टान्तालंकारः। २. दृष्टान्तालंकारः। . दृष्टान्तालंकारः ।
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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