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________________ यशस्तिलकचम्पूकाव्ये प्रसंस्थाममखसंमुखीनवैखानसमामसे, कितवसहचरोपरचितकरवायलयालास्यमानमधुमत्तसीमन्तिनीसमालोकन कुराहरू मिलमदेवताभराभुगमककुभविटपिनि, वटविटपवि.संकटकोटरोपविष्टवाघादशुकपटकपच्यमानेन विवि कटरताटोपचाटुपाटन विघट. माममुनिमनःकपाटपुटसंधियन्ध, विकिर कुलकलहवराविशीर्यमाणकरबक सल्मुकुरमुताफहितवितदिकाबलिकर्मणि, चपलकपिसंरातलुसमानभराभिर्मिर्भविभमारम्भहंभ्रमाभिभामिनीभिः परिसभ्यमाणनिमृतसरसापराधवनभे, भुजमूलपुलकवितरणकान्तकेतवान्तरादितयुतिपुष्पावचितिनि, समस्तम्भसंभृतलतासोक्तःतविनिर्मितासु पीनस्तमलिखितपस्न लाञ्छितोर:स्थलरमणरसरभसोलद्धतालयलनास लीलान्दोमामु विक्षसन्तीनां विलासिनीना मुखरमणिमेखलाजालवाचालिमबहलपञ्चमालप्ति. पवितविरहवीरधि, जम्बूजाअतुझस्पारापतपतङ्गसंदीपितमदनमददरिद्वितमन्दरीसंभोगहुसबहे, कदलीदलातपत्रोसम्भनदारभरितभर्तृभुजाभागसंभावनविकटकुनकुम्भमण्डलानामितस्ततो विहान्तीनां सम्भोरणामनवरसझणझणायमानमणिमञ्जीरशिहुए. अपनी पक्षिणियों के साथ स्थित हुए व नाना प्रकार के थे। जहाँ पर ऐसी वन-देवताओं (व्यन्तरियों) के भार-वश अर्जुन वृक्ष भन्न किये गये थे, जो कि मद से मस हुई ऐसी कमनीय कामिनियों के देखने की उत्कण्ठा-वश वहाँ पर एकत्रित होरही श्रीं, जो धूर्त (विलासी) पतियों द्वारा किये हुए हस्त-ताल के लय (किंवासाम्य ) से नचाई जारही थीं। जहां पर भाड-आदि कामी पुरुषों की विस्तृत कामकीड़ा विशेष स्पसे प्रकट होरही थी और उसकी ऐसी मिथ्या-स्तुति-पटुता द्वारा मुनियों के मनरूप कपाट-युगल का सन्धिवन्ध ( जुड़ाय ) टूट रहा था. जो ऐसे तोतों के झुण्डों द्वारा उच्चस्वर से गान की जारही थी, ओ कि वटवृक्ष की शाखा के विटङ्कः ( पल्लवों से उन्मत अग्रभाग) की संकोचपूर्ण कोटर में स्थित हुए बहुगी शन कर रहे थे। जहाँपर पक्षियों के झुण्ड के कलह-वश कुरयक वृक्ष की छोटी-छोटी अर्ध-विकसित पुष्पों की उज्वल कलियाँ गिर रही थीं, जिसके फलस्वरूप वह ऐसा मालूम पड़ता था--मानों-जहॉपर मोतियों की श्रेणि-सहित वेदी को पूजा का विधान ही वर्तमान है। जिनके अभिमान का भार चपल बन्दरों के आगमन से नष्ट हो चुका था और जो बन्दर द्वारा किये हुए अत्यन्त भोहों के संचालन के प्रारम्भ से भयभीत होचुकी थी ऐसी कोप करने वाली स्त्रियों द्वारा जहाँ पर ऐसा पति आलिङ्गन किया जारहा था, जो कि मानी. नम्र था एवं जिसने तत्काल अपनी पत्नी का अपराध किया था। जहाँपर भुजाओं के मूल (छाती ) पर हस्ताङ्गलियों के रखने में तत्पर हुए पति के छल से युवती रमणियों के पुष्प-चुण्टन में विष्नबाधा उपस्थित कीगई थी। जहाँपर नय युवती रमणियाँ ऐसे कीड़ा करने के झूलों से विलास करती थीं उन्हें उतारती और चढ़ाती थी, जो कि देवदार के वृक्षरूप खम्भों पर बँधी हुई लताओं और मञ्जल वृक्षों की श्रेणियों से रचे गए थे और उन नवयुवतियों के कठिन कुचकलशों पर कीहुई पत्ररचना से शोभायमान इदम मण्डल संबंधी संभोग क्रीड़ा रस की उत्कण्ठा-यश जिनमें उनके शीघ्रगामी धरण कमलग्छल रहे थे। जहाँपर उन नय युवती कामिनियों की मधुर शब्द करनेवाली मणिमयी करधोनी-श्रेणियों की शब्द बहुलता-वश द्विगुणित किये हुए पश्चम राग विशेष ( सप्तम स्वर) से यिरहरूप लता पल्लषित (धृद्धिंगत कीगई थी। जहाँपर अन्यूवृत्तों के कुलों ( लताओं से बाच्छादित प्रदेशों ) में मधुर शब्द करते हुए कबूतर पक्षियों से उद्दीपित हुए कामोद्रेक द्वारा कामिनियों की रतिविलास रूप अग्नि तिरस्कृत कीगई थी। जहाँपर केले सरीखे अंघावाली और यहाँ-वहाँ घूमनेवाली ऐसी कमनीय कामिनियों के निरन्तर भुन भुन रूप मधुर शश्च करनेवाले पाँच प्रकार के माणिक्यों से जड़े हुए सुवर्णमय नूपुरों (घुघरुओं-चरण-आभूषणों) के अध्यक्त ६ मधुर शब्दों द्वारा जलक्रीड़ाषाली वावड़ियों की फलहँसश्रेणी किंकर्तव्यविमूढ की गई थी, * विकटटर' इति (2) प्रतो ।
SR No.090545
Book TitleYashstilak Champoo Purva Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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