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यशस्तिलकचम्पूकाव्ये
महालक्ष्मयामाददेषु नखायुषेषु, करति सौरभेयेषु वर्षे, सर्वति गर्वरेषु गर्ने, गलन्तीषु पुष्पंधयेषु प्रतिषु, वाटिका मनोकसां मन्नाकेषु कथाशेषालु पोषितां कामकेखियु ज्वलदाईदारुदारुणा दीर्घाइनिदायनिर्गमा करीब मचस्यत्रिव देवखातेषु प्रभावभरभिष्विव खातस्त्रिमीषु धाश्वनभरारम्भेविवमभिषु कुलको बुलुम्पनीसंहारसमयदिवसेवित्र प्रशान्तवन्तु संचारेषु वर्त्म प
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'मार्कण्डयास्तपति मरुभुबामन्निसात्त्वं दधानः कामं व्योमान्तराणि स्थगयति किमपि धोति भावस्पुरस्तात् । निमिष विसृजत्येतद्दाशान्तराखं मग्भाङ्गानिम्नगानां पयसि च करिणः स्वाधमन्याति यः ॥ ६५ ॥ मध्याहेण धात्मतुवरसुरास्तोषमार्ग स्वजन्ति स्थानामानेतुमीशाः पयसि कृतरसीन हस्तिनो नैव मिण्डाः । को फिल्मी विपति शिशिररकन्दरोणिदेशान्स्वेच्छेषु चेमाः कमललं वारलाः संयन्ति ५६१ ॥
एवं सिंह व्याघ्रादि जीव जिनका मनोरथ बिशाल वृक्षशाली वनों के मध्य में प्रवेश करने का होरहा है। इसीप्रकार जब विशेष गर्मी-वश बैलों का मद चूर-चूर होरहा था, भेंसाओं का गर्ज झीख हो रहा था, जब अँवरों का सन्तोष नष्ट हो रहा था -- अर्थात् विशेष गर्मी- वश कमलादि पुष्पों के सूख जाने से भरे पुष्परस न मिलने से अधीर हो रहे थे और पक्षियों की कष्ठ- नालें उच्छ्रवास कर रही थीं। इसीप्रकार जब कमनीय कामिनियों की रतिविलास करने की क्रीडा व्यापार-शून्य होचुकी थी- छोड़ दी गई थी एवं प्राणियों की शरीरयष्टियाँ लम्बे दिनोंयाले उष्ण-समय के कारण जिनसे स्वेदजल वह रहा था, उसप्रकार वारुल अशक्यस्पर्श ( बिनका धूना अशक्य है ) हो गई थीं जिसप्रकार जलती हुई गीली लकड़ियाँ अशक्य स्पर्श होती है । एवं अगाध सरोवर बन-भूमियों के समान हो चुके थे - शुष्क हो गये थे, और नदियाँ वैसीं सूख गई थी- निर्जल हो गई थीं जैसी हाथी-घोड़ों के दौड़ने को भूमि सूखी होती है और जिसप्रकार मरुभूमि — मस्स्थल – के मध्यभाग जल-शून्य होते हैं। उसीप्रकार कुएँ भी विशेष उष्णता के कारण अल-शून्य हो गए थे। एवं समुद्र, जिनका पानी चुल्लुओं द्वारा उचाटनेलायक हो गया । अर्थात् वीव्र गर्मी पड़ने से उनमें बहुत वो पानी रह गया था और मार्ग, जिनमें प्राणियों का संचार जसप्रकार रुक गया था बिसकार प्रलयकाल के दिनों में प्राणियों का संचार -- गमन - रुक जाता है।
जिन उष्ण ऋतु के दिनों में अत्यन्त तीव्र तापशाली सूर्य मरुभूमियों को अग्निमय करता हुआ खाप छत्पन्न करता है और कोई अत्यन्त प्रकाशमान व अनिर्वचनीय ( कहने के अयोग्य ) सतेज स्कन्ध पदार्थ आगे शीघ्र गमन करता हुआ गगन मण्डलों को स्थगित करता है। इसीप्रकार यह प्रत्यक्ष दिखाई देने का दिशाओं का समूह ऐसा प्रतीत होता है- मानों आकाश के ऊपर वाष्पों की तरङ्ग पक्ति को ही प्रेषित कर रहा है एवं नदियों की जल-राशि के मध्य में अपना शरीर दुबोने वाले हाथियों को उबालती हुई चण वायु बह रही है' ॥ ६० ॥ जिस प्रीष्म ऋतु की मध्याह्न वेला में अत्यन्त उत्ताल – उभय-खुर वाले घोड़े अव मार्ग को वेग पूर्वक छोड़ते हैं और महावत पानी में अनुरक्क हाथियों को हथिनी शाला में लाने के लिए समय नहीं है। इसीप्रकार मयूर शारीरिक सन्ताप के कारण अपना मुख ऊँचा किये हुए शीतल गुफा के पर्वव-सन्धि प्रदेश (स्थान) तू ढ़ता है एवं ये प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होने वाली राजहँसियाँ जलप्राय प्रदेशों-वालान आदि--में वर्तमान कमल-पत्तों के अधोभाग का यथेष्ट आश्रय लेती है ||६१ ॥
१ -- समुच्चयालंकार । २ - समुच्चयालंकार ।