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यशस्तितका पूत्रव्ये सालिबासमतीप्रायपदासाईसमर्थकाहिशयविपसमाजवरसरबतीकर क्रीडापालकतिसर्थः बाधिशेष:सविधवापिनिषण्णकारीमविरोधाधकास्यमामाशा साधावससितादेवमासमाया, समस्तसमशनवविवाविदामदुप. प्रकार पुस्तकमण्डलीमार्सण्या, पविगन्सविधासविक्षतशिध्यणिसमीरपथप्रथमानकीतिकलहसीमिबासीहतमिखिलभुकभाभोगा, मुशामिःसन्धिसमाधिरिषुषिशेषोन्मेपनिर्विषीकृतविषविषमदोषामुपविषयविषधरः, प्रसंख्यानपविषावकलुष्यानुस्थानमन्मथमवरब्रितबस्मरविजयः,
___ जो ऋषिराज समस्त षद् दार्शनिकों (जिन, जैमिनीय, फपिल (सांख्य ), कणाव अथवा गौतम, चार्वाक भौर बौद्धदर्शन ) के शास्त्ररूप तीर्थ में निरूपण किये हुए पदार्थ' समूह संबंधी गम्भीर शान की अतिशय विशेषता रखते थे, इसलिए मयूरवाहिनी सरस्वती देवी ने साक्षात् प्रकट होकर अपने करकमलों पर स्थित क्रीड़ा कमल द्वारा जिनकी पूजा की थी। जिस ऋषिराज का यशरूप कमल-समूह चारों समुद्र-रारी हों के लिश्टर गन समान किन्न परियों के मुखरूप सूर्य द्वारा विकसित हुआ था और जलदेवता-समूह द्वारा कर्णपूर आभूषण बनाया गया था। जो ऋषिवर, समस्त शास्त्रों के निर्दोष शान में पारंगत हुए महाविद्वानों के समूहरूप श्वेत कमल-समूह को विकसित करने के लिए सूर्य समान थे। जिसकी कीर्तिरूपी राजहंसी, समस्त दिशाओं के प्रान्त में रहनेवाली विख्यात बहुश्रुत विद्वत्ता पूर्ण शिष्य मण्डली रूप धाकाश में व्याप्त हो रही थी, जिसके कारण वह समस्त पृथिवीमण्डल पर विस्तार रूप से निवास कर रही थी। जिसने जहर-समान तीव्रतर पापकर्म से कलुषित करनेवाले कमनीय कामिनी
आदि विषयरूप भंयकर सों को, अपने शुद्ध ( राग, द्वेष व मोहरहित ) मानसिक अभिप्राययुक्त और मोक्षरूप अमृत की वर्षा करनेवाले धर्मध्यान रूप आसोज पूर्णमासी-संबंधी चन्द्रमा के उदय से निर्विष कर दिया था। धर्मध्यान और शुक्लध्यान रूप वाग्नि से समूल भस्म (दग्ध) किए हुए
और जिसके कारण पुनरुज्जीवित (फिर से पैदा हुआ ) न होनेवाले कामदेव के मद द्वारा अर्थात् कामदेव पर अनोखी विजय प्राप्त करने के कारण-जिन्होंने शिवजी धारा की हुई कामविजय को १. समस्त दार्शनिकों द्वारा स्वीकृत पदार्थों के नाम:--
५-जैनदर्षन में-जीव, अजीय, भालव, बन्ध, संघर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य व माप ये नघ पदार्थ माने गये हैं। २-जमिनीय दर्शन में-नित्य घेदवाक्यों द्वारा तत्वनिर्णय होता है, अतः इसमें वेद धारा निरूपण किया हुआ 'धर्मतत्य ही पदार्य माना है। -कपिल-सांख्य दर्शन में-१५ पदार्थ माने हैं। १-प्रकृति, २-महान् , ३-अहंकार और अहहार से जलन होनेवाली ५ तन्मात्राएँ (१-शब्द, २-रूप, ३-गन्ध, ४-रस और ५को स्पर्शतमात्रा ) और ११ इनियाँ (पाँच शानेन्द्रिय-स्पर्शन, रसना, घ्राण, पक्षु और श्रोत्र ) और पाँच कर्मेन्द्रिय ( १-वाणी, २-पाणि ( हाथ ), -पाद, ४-पायु (गुदा) और उपस्थ ( जननेन्द्रिय) और मन और पाँच तम्मानाओं से उत्पन्न होनेवाले पंचभूत ( पृथिवी, जल, वायु, तेज और भाकाण) अर्थात् शब्दतन्मात्रा से आकाश, रूप से सेज, गन्ध से पृथिवी, रस से अल और स्पर्श से बायु उत्पक होता है। इस प्रकार २४ पदार्थ हुए और पुरुषतस्य ( आत्मदय्य), जो अमूतिक, चैतन्य अकर्ता और भोक्ता है। सब मिलाकर २५ पदार्थ माने हैं। ४-कणाददर्शन में-१-द्रव्य, २--गुण, कर्म, ४-सामान्य, ५-विशेष, ६-समवाय और ५-प्रमाण थे सात पदार्थ माने गये हैं। ४-गौतमदर्शन में-- १६ पदार्थो का निर्देश है। १-प्रमाण, २-प्रमेय, ३-संक्षय, ४-प्रमोजन, ५-दृष्टान्त, ६-सिद्धान्त, ७- अवयव, 6-तर्क, ९-नर्णय, १०-पान, १-जल्प, १२-वितण्डा, ११-हेत्वाभास, १४-ल, १५-जाति और १३-निमइ स्थान । ५-चाक ( नास्तिक ) दर्शन में- पृथिषी, जल, तेज, और भायु ये चार पदार्थ माने हैं। मह जोधपदार्थ को स्वतंत्र : मानकर उक चारों भूतो-पृथिवी-बाद-के संयोग से उसकी उत्पत्ति होना मामता है। -चौसदन में-बार आर्यसत्य ( दुःख, दु:खासमू दुःनिरोध, और दुःखों की समुलतल हानि (अब से नाम होना) ये चार पदार्थ माने हैं।
यशस्तिलक-संस्कृत टीका पूर्वाद से पू. ५१ सम्वृत