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________________ यशस्तिलकच स्पूकाव्ये कदाचिद्दात्रीणामकारी विजृम्भणजलधरः, चोली भ्रूलतानर्तमानिलः केरलीनां नयनदीविकालिकलहंस, सिंहली मुखकमलमकरन्दपानमधुकर फर्यादीनां कुचकलश बिकासः, सौराष्ट्रीय बलिवाहिनी विनोदकुञ्जरः, कम्बो tatti गर्भसंभोगभुजङ्गः, पछत्रीपु नितम्ब स्थली खेलनकुरङ्गः, कटिङ्गीनां च किसलयोत्सव पुन्पाकरः [स] सारं २० विम्वयामास । किसी समय ऐसे मारिदत्त राजा ने निम्नप्रकार भिन्न-भिन्न देश की रमणीय रमणियों के साथ काम करते हुए कामदेव को तिरस्कृत किया था । जो ( मारिदत्त ) आन्ध्र — तिलिङ्ग -... देश की ललित ललनाओं की केशपाश रूप मरियों यल्लरियों या लताओं के उल्लसितविकसित करने के लिए treat श्रर्थात् जिसप्रकार मेघवृष्टि द्वारा लताएँ उल्लसित -- वृद्धिंगत होजाती हैं उसीप्रकार जिसकी कामक्रीड़ा से आन्ध्र देश की ललनाओं की केशपाशवल्लियाँ उल्लसित होजाती थीं- खिल उठती थीं। जो चोलदेश की रमणीय रमयों की भ्रुकुटि रूपी लताओं के नृत्य कराने में मलयाचल की बायु के सदृश था । अर्थात् — जिसप्रकार मलयाचल की शीतल, भन्द सुगन्धित वायु से लताएँ कम्पित होती हुई मानों उल्लासपूर्वक नृत्य करने लगती हूँ उसीप्रकार जिस मारिदत्त के रूप लावण्य से मुग्ध होकर चोलदेश की कमनीय कामिनियों की भ्रुकुटिरूपी लताएँ नाँच उठती थीं। जो केरल देश की कमनीय कामिनियों की नेत्ररूपी बावड़ियों में कोढ़ा करने के लिए राजहंस के तुल्य था । अर्थात् — जिसप्रकार राजहंस जल से भरी हुई बावड़ियों में यथेच्छ क्रीडा करता है उसी प्रकार जो मारिदत्त राजा केरल देश की ललित ललनाओं की कान्तिरूप जल से भरी हुई नेत्ररूपी यावड़ियों में यथेच्छ कीड़ा करता था। जो लङ्काद्वीप की कमनीय कामनियों के मुखरूप कमलों का मकरन्द (पुष्परस ) पान करने के लिए भ्रमर के समान था । अर्थात् जिसप्रकार भँवरा कमलों के पुष्परस का पान करता है उसी प्रकार राजा मारिदत्त भी लङ्का दीप की युवती स्त्रियों के सन्दहास्य रूप पुरुषरस से व्याप्त मुखकमलों का पान (चुम्बना द) करता था । जा कर्णाट (देश-विशेष) की रमणीय रमणियों के भृङ्गाररस से भरे हुए कुचकलशों--स्तन-कलशों को सुशोभित करने के लिए पल्लव के समान था । अर्थात् जिसप्रकार कोमल पल्लव से जल से भरा हुआ कलश शोभायमान होता है उसीप्रकार राजा मात्रदत्त भी अपने हस्वपल्लवों द्वारा करपाटीसियों के शृङ्गाररसपूर्ण कुचकलशों को सुशोभित करता था। जो सौराष्ट्र देश की ललित ललनाओं की त्रियारूप नादयों में कीड़ा करने के लिए हाथी के समान था । अर्थात्-जिसप्रकार हाथी नदियों में कीड़ा करता है, उसीप्रकार राजा माारदत्त भी सौराष्ट्र देश की ललनाओं की कान्तिरूप जल से भरी हुई त्रिवलीरूप नदियों में कीड़ा करता था। जो कम्बोज देश-काश्मीर से आगे का देश की रमणियों की नाभिरूपी जा या वेदिका के मध्यभाग में कीड़ा करने के लिए सर्प समान था । अर्थात् जिसप्रकार सर्प, छज्जा या वेदिका के मध्य कांड़ा करता है उसीप्रकार मारिदत्त भी कम्बोज देश की स्त्रियों की नाभिरूप छज्जा या वेदिका के मध्य कीड़ा करता था । इसीप्रकार जो पलव देश की स्त्रियों के नितम्ब रूप स्थलियों ( उन्नत प्रदेशों । परीक्षा करने के लिए कस्तूरिमृग के समान है। अर्थात् जिसप्रकार कस्तूरीमृग उन्नत स्थलियों पर क्रीड़ा करता है उसी प्रकार राजा मारिदत्त भी पल्व देश की स्त्रियों की नितम्ब स्थालयों पर कोड़ा करता था । एवं जो कलिङ्ग देश को कमनीय कामिनियों के चररूप पलकों को उल्लसित करने के लिए वसन्त के समान है । अर्थात् — जसप्रकार बसन्तऋतु पत्रों को उद्घासयुक्त बुद्धिंगत करती है उसी प्रकार राजा मारिदत्त भी कलिङ्ग देश की स्त्रियों के चरणरूप पलवों को उल्लास ( आनन्द करता था । ' ॐ 'विजृम्भमाण' इति मूल पाठ मुक्ति राटीक पति से संकलित - राम्पादक । १. शुभाररसप्रधान उपभा आदि शंकरालंकार । i +
SR No.090545
Book TitleYashstilak Champoo Purva Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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