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________________ प्रथम आश्वास १६ कदाचित कोणकोटिकल + कन्दुकाम्बरचारणा परिस्खलित दिग्देवताविमानमण्डलो दुष्टाश्वैः सह प्रीति कन्। कदाचित्रिभुजपराकमाचितासराजलव्याल महासरसीनामसि चिजगादे | कदाचिददतिदुर्दशार्दूलः कृत्कोलकुरामायिक त्कारचोरास्वरण्याना विजहार । क्वाचिन्नियुद्धायासित प्रबल घेतालः पूतनाकरोड्रमर उमस्कारवनसाः क्षपायु पितृनावनोः संचचार | कदाचिदसहायसाहसः साश्रर्यशौर्यनिर्मित बिनरवीरावतारमुपालचूडामणिमरीचिपसरपरस्ताण्डत्रित चरणकमलः शत्रुक्षत्रिक नेत्रापाङ्गसङ्गो छिपादानामात्मानं पाळतां निनाय । कदाचित्तौर्यत्रिकाशिविशेपत्रिजगन्धर्वलोकः ख+तिकतायरङ्गेषु वनदेवतानां समाजं नयामास । समस्त प्रथिवी मंडल की शून्यता का समर्थक है उसी प्रकार हाथी भी समस्त पृथिवी मंडल के पात द्वारा उसकी शून्यता के उत्पादक हैं । .. किसी समय बल्ले के अप्रभाग द्वारा ताड़ित की हुई मनोहर गेंद को आकाश में प्राप्त कराने से स्तब्ध - निश्चल किये हैं दिशाओं में स्थित देवविमानों के समूह को जिसने ऐसा वह मारिदत्त राजा दुष्ट घोड़ों से प्रेम प्रदर्शित करता था उनके साथ कीड़ा करता था। किसी अवसर पर अपनी भुजाओं के पराक्रम से नानाभाँत के युद्ध में प्रेरित किये हैं महान मगर आदि जल जन्तुओं को जिसने ऐसा वह राजा, विशाल सरोवरों की जल - राशि का विलोड़न करता था। किसी समय वह अपने बाहुदण्ड द्वारा विशेष बलशाली व्याघ्र - सिंहादि को मृत्यु मुख में प्रविष्ट कराता हुआ ऐसे विशाल बनों में विहार करता था, जो कि पर्वतों की विच - गुफाओं की गंध सूँघने वाले उल्लुओं के रौद्र ( भयंकर ) शब्दों से भयानक थे किसी समय अपनी भुजाओं द्वारा किये हुए युद्ध से प्रचण्ड बेतालों का दमन करता हुआ यह राजा रात्रियों में ऐसी दमशान भूमियों पर बिहार करता था, जो कि राक्षसियों के हाथों पर वर्तमान उत्कट इमरुधों के शब्दों से भयानक थीं । 1 किसी समय उसने, जो कि अद्वितीय ( बेजोड़ ) साहसी था और जिसने अपना चरणकमल आश्चर्यजनक वीरता से पूर्व में जीते जाने से नत्रीभूत हुए, दुर्बार- दुर्जेय और योद्धाओं में जन्म धारण करनेवाले ऐसे राजाओं के मुकुटमणियों की किरणों के प्रसार ( फैलाव ) रूप तालाब में नचाया है । किसी अवसर पर उसने अपना शरीर शत्रुभूत राजपुत्रों की युवती रमणीय रमणियों के कटाक्षों की संगति से कट हुई लाजाअलियों ( माङ्गलिक अक्षत विशेषों) के ऊपर गिराने की पात्रता ( योग्यता ) में प्राप्त कराया। किसी समय गीत, नृत्य व वादित्र शास्त्र में चातुर्य की विशेषता से गायक -समूह को जीतनेवाले उसने मनोहर बनों के लतामण्डपों की रङ्गस्थलियों-नाट्यभूमियों पर वनदेवता की श्रेणी का नृत्य कराया । १. संकरालंकार । * 'कन्दुकान्तर' इति इ. लि. मू. ( क, ख, ग, घ, च) प्रतिपाः । A 1 स्तुति कखेनलता इति ह. लि. रादि (क, ग, च) प्रतिषु पाठः । अस्य पचनसमूहः-- वलतिकदेशसभ्यम्विनलतामंडपनृत्य भूमिषु । नागरस्य पत्रिकायां तु सनि बनखमुद्दः खेलने कीचन मिति लिखितं ।
SR No.090545
Book TitleYashstilak Champoo Purva Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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