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प्रथम श्राश्वास
कदाचिदुनिद्वारविन्द्रमकरन्दविम्बकोलोज बलिव पिकेषु माकन्दरीजलकावलोकनोलाविलासमानसेपु पाचवीतून सौरभो डुमरमरुपमानमकरध्वजध्वज, कामिनीनुमदिशम्पादित कुलकाननेषु, विलासिनीविल किसानृतसंत माणकुरवकतरुषु रमणीमणिमञ्जरशिञ्जिव कुलरचरणास्फालनसन 1 बार्शीकशाखिए, परिमलमिलन्मिलिन्दसंदोह - दूषितषट्पदा तिथिपादकदम्बकुसुनधूलिधूसरघरा, ऐपु, कन्दर कलापसंचरयति तुरविकिरनखमुखात्र लिख्य मानव शरीरेषु, कान्तार कुहुर विहरत्को फिल कुल कोलाहलो अपिताङ्गव्याध्यातिका विपाशशक्षणमंधुक्षिषु मनसिजाजकच कारद्रवध्यन्हदयेषु विधाभिसारिकाजनानामन्धतमसप्रसाधिषु, घोराणामपि प्रणयिनी प्रर्णाति तु मानिनामपि प्रमाप्रसादनन्यनिदाने, शूराणामपि वल्लभाचाटुकार कारगेड, यमिनामपि रविश्वातङ्कायतनेषु पुष्पचापशरप्रसारसारेषु मधुमासवासरेषु कामामधारामापेदे ।
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वह मारिदत्त राजा किसी अवसर पर कामदेव की निवासभूमि से संबंध रखनेवाली सभोगकीदा को ऐसे ऋतु के दिनों में प्राप्त हुआ। जिनमें वसन्त ऋतु के दिनों में-क्रीड़ा करने की ऐसी याड़ियाँ वर्तमान है, जो कि विकसित कमलों के पुष्परस-समूह से व्याम और विशिष्ट तर वाले जल से भरी हुई है। जिनमें आम्रवृक्षों की लता श्रेणियों के देखने से कामी पुरुषों के चित आनन्द को प्राप्त कराये गये हैं। जिनमें मलयाचल की भूमि पर वर्तमान चन्दन वृक्षों के वन सम्बन्धी पुष्पों की सुगन्धि से उत्कट (अतिशय सुगन्धित) वायु द्वारा कामदेव की ध्वजा के वस्त्र कम्पित हो रहे हैं। जिनमें कमनीय कासिनियों की मुखों की मद्य से- मयं के कुरले से- वकुल वृक्षों के वन विकसित होरहे हैं, ( क्योंकि कधि संसार में ऐसी प्रसिद्धि है कि कमनीय कामनी के मण्डप (मय के कुरले) द्वारा वकुल वृक्ष
पुष्प विकसित होते हैं) । जहाँपर युवती स्त्रियों की सुन्दर चितवन रूप अमृतों द्वारा कुरक वृक्ष सन्तृप्त— सन्तुष्ट (विकसित ) किये जारहे है । कमनीय कामिनियों के रत्नखचित नूपुरों के मधुर शब्दों से शब्द करनेवाले पादों के ताड़न से जहाँ पर अशोक वृक्ष प्रफुटित हो रहे हैं, क्योंकि कवि संसार की प्रसिद्धि के अनुसार अशोक वृक्ष, कामिनी के पाद- ताड़न से विकसित होते हैं) । जहाँपर सुगन्ध एकत्रित हो रहे भँवरों के समूहों से चम्पा वृक्ष श्यामवशाली किये गये हैं । जहाँपर कदम्बवृक्षों के पुष्पों की परागों (धूलियों) से भूमि- मण्डल धूलि - धूसरित होरहे हैं । जहाँपर गुफा-समूहों में प्रविष्ट होते हुए कबूतरों के नखों और मुखों (ट) द्वारा लताओं के शरीर धूमे जारहे हैं। गायों के मध्य में संचार करते हुए कोकिल-समूहों के कल-कल शब्दों द्वारा प्रकट किये गए ( जागे हुए ) कामदेव रूपी दुष्ट सर्प से, जहाँपर कामी (ख-लम्पट) पुरुष व्याकुलित-काम- पीड़ित - किये गये हैं । इसीप्रकार जो (बसन्तऋतु के दिन ) विरहिणी स्त्रियों की विरहाझिको प्रदीप्त करनेवाले हैं। जिनमें कामदेव के धनुष की टङ्कार - ध्वनि (शब्द) द्वारा पथिकों के चित हरे जा रहे हैं- कामविह्वल किये जारहे हैं। कामोद्दीपक होने के फलस्वरूप जो, अभिसारिकाओं ( परपुरुष लम्पट स्त्रियों) को दिन में भी महान अंधकार उत्पन्न करने वाले हैं, फिर रात्रि में तो कहना ही क्या है। जिनमें योगी पुरुषों को भी स्त्रियों के चरणों पर झुकने के कारण वर्तमान हैं फिर कायरों को
कहना ही क्या है। जिनमें अभिमानी पुरुषों को भी स्त्रियों को प्रसन्न करने के लिये दीनता ( याचना ) की उत्पादक कारण सामग्री पाई जाती है। जो शूरवीरों द्वारा भी की जानेवाली स्त्रियों की मिथ्या स्तुति
B
C
* 'माकन्दमञ्जरीजालका ककोलासितविला सिमानसेषु इति ह. लि. राहि. (ग) प्रत पाठः ।
A. आघ 'माकन्दः पिकवल्लभः इत्यमरः । B. स्त्री C. विसषु इति टिप्पणी उक्त प्रत अर्थात्-जिनमें
वृक्ष की मजरोसमूहों से उपलक्षित कमनीय कामिनियों के कारण कामी पुरुषों के चिन उदासित - आनन्दित कराये गये हैं।
* 'कुलकेलि' इति ह. ल. ( क ग ) प्रतिष्ठयं पाठः ।