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सतीय आश्वासः
पातालमूलाच सापिच्छगुरुयोस इवान्तरिक्षलक्ष्म्यार, सहिकेय संचर इन नक्षत्रभेत्रस्य, नीलिकोपदेह इस भिदिवदीपिकायाः, ऋजलोपनव इव नभश्चरविमानानाम्, कवचोपचा व भत्करस्य, अपवरजवनिकागम हब कन्दरपरिसरागाम्, इन्द्रनीला निघोलक व भुवनबलभीमपलस्त्र, महामोहरसासर्प इस कीटककुटीरकाणाम् , परिपत्पूर इत्र *कधाभोगस्य, फालिन्दीतरङ्गसंगम इव विश्वभराभागानाम , रेरिणनिवनिहार इत्र बनस्थलीदेशस्थ, शबरसन्यसंगम इव कानन· विषयाणाम् , असुरसमाजर्सपर्फ इवxधराधरन्ध्रस्थानस्य, कुवलयाफर इव निभावनीतलामाम् , पश्वरीकपरिचय इन +प्रफुल्ललतारामस्य, कृष्णकलापपस्ग्रिह इब जलनिधीनाम् , काचकपाटपुटोपगम इस च 'कललोकविलोकनपापारस्य, दुर्जनजनचेष्टितमिव समस्तमुहमवचं च वस्तु समता नयति, विजृम्भमाणे तमसि,
विहीन इव, अपहृत इय, अष्टश्यतोपगत हव, देशान्तरनीत इब, निमम इव, संहत इव, प्रजापतिपाणिपुटपिडित च, अक्षणमात्रं जाते जगति सति,
मानों-आकाशलक्ष्मी का तमाल-( तमाखू ) गुच्छों का ऐसा कर्णपूर ही है, जो कि पातालतल के प्रत्येक तल से प्रकट हुआ है। अथवा-मानों-आकाश को राहुरूपी व्याधि प्रकट हुई है। अधवामानों- वारूपी बावड़ी की लम्बालवृद्धि ही है। अथवा-मानों-नभचरों ( विद्याधरों या देवों ) के विमानों पर किया हुआ तरल कज्जल-लेप ही है। अथवा-मानों-पर्वत-काटनी की अवच-( वख्तर ) वृद्धि ही है। अथवा-मानों-गुफा-पर्यन्तभागों के आच्छादन-निमित्त मेघरूप जवनिका-( तिरस्करिणीकनात ) समागम ही है। अश्रया-मानों-जगत्पटलरूपी वलभी ( छज्जा) को आच्छादित करने हेतु इन्दुनील मणियों का प्रच्छदपट ( ढकनेवालावरून) ही है। अथवा-मानों दरिद्र-गृहों का अमानरसविस्तार ही है। अथवा-मानों-दिग्मण्डल का कर्दम-प्रवाह ही है। अथया-मानों-पृथिवी-देशों के लिए कालिन्दी ( यमुना) नदी का तरङ्ग-समागम ही हुआ है। अथवा-मानों-बनस्थली-देशों पर भैसा समूह का पर्यटन ही है। अथवा-मानों-वनसंबंधी देशों में भिल्ल सेना का समागम ही हुआ है। अधवा-मानों-पर्वत-छिद्र प्रदेश के लिए असुर-समूह का समागम ही हुआ है। प्रथया-मानोनीची पृथिवियों पर विकसित हुआ नीलकमल-समूह ही है। श्रथवा-मानों-विकसित लतावन के लिए भ्रमर-आगमन ही है। अथवा-मानों-समुद्रों द्वारा किया हुआ नारायण समूह का स्वीकार ही है। अथवा सानो-समस्त लोगों का दृष्टि-व्यापार रोकने-हेतु काचकामलारोगरूपी कपाटपुट का संबंध ही है। इसीप्रकार यह ( अन्धकार ) समस्त ऊँच व नोच पदार्थ को उसमकार समानता में प्राप्त करता है जिसप्रकार दुष्टजन-व्यापार उच्च व नीच को समता में प्राप्त करता है।
[उसप्रकार अन्धकार के फलस्वरूप] अल्पकाल तक पृथिवीमण्डल ऐसा प्रतीत होरहा थामानों-पिघल ही गया है। श्रथा-मानों-अपहरण ही किया गया है। अथवा-मानोंअन्तर्षित होचका है। अधवा-मानों-दसरे स्थान पर प्राप्त कराया गया है। अथवा-मानों-राया है। अथवा-मानों-प्रलय को प्राप्त होचुका है। अथवा-मानों-ब्रह्मा के हस्तपुट द्वारा भाच्छादित किया गया है।
___xसंचय' का। निचलक' क. कोकटकुटारकाणां' क.। ककुभाभोगस्प) फ.। धरान स्थानस्य' क० | +उक्तशुद्धातः ० ० प्रतितः समुदतः मु० प्रलौ तु प्रफुल्लितारामस्या पाठः। करसमपाल पुटोपगम' क. । 'विमृम्भणे' का। *'कृष्णरवं जाते' क-1
१. उत्प्रेक्षालंकार । २. उत्प्रेक्षालंकार ।