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तृतीय आश्वास:
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वाग्रविद्यावृहस्पतिः नृतवृसाम्भरतः समस्तायुधसः शरणागतमनोरथसिद्धिः अनाथनाथ: स्यागभार्गवः मबम कुठारः कलिकुर केसरी अश्मकवंशवैश्वानरः शकशलभशमोगर्भः क्रथकैशिककृशानुः अहिच्छक्षत्रियशिरोमणिः पश्चाचापप्रणयकालः केरल कुलकुलिशपातः यवनकुञ्जग्रामक: वैद्यसुन्दरीविनोदकन्दः मागधवविलासश्णः काशिकामिनीवासिय माहिष्मती युवतिरतिकुसुमचापः कौशाम्बीमितस्विनीबिम्बाधरमण्डनः दशार्णवर्णिनीकर्स पूरः पाटलिपुत्रपणानामुङ्गः बलरम्भteforममरः पौरव पुरंधीरोधसिएकः सततवलुवितरणप्रीणिस द्विजसमेाथः श्रीयशोधरमहाराजः सकलप्रशस्तसहित सचलमद्दीपविमादिशति । योऽन्यत् कार्यं चैतदेव स विजयवर्धनः सेनापतिर्भवन्स मेयमामन्त्रयते-
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पश्यागत्य जगत्पतिं यदि वदे याचे तदानुमहः कुर्यास्वं मृगचेष्टितं यदि वश क्षोणिः समुङ्गावधिः । संग्रामे भव संमुखो यदि ता क्षेमः कुतस्ते पुनस्तत्पञ्चरूपते किमत्र भवतः संदिश्यतां शासने ॥ ४२५॥ जो तल, वितत, घन व सुधिररूप वावित्रविद्या में बृहस्पति-सरीखा है । जो नृत्यशास्त्र में भरत ( नटाचार्य), आयुधों की संचालनक्रिया में सर्वज्ञ और आश्रितों के मनोरथ पूर्ण करने वाला एवं अनाथों का स्वामी तथा दाताओं में परशुराम है। जो द्रोहरूप वृक्षों के धन का उच्छेद करने के लिए परशु सरीखा है। जो कलिङ्ग ( दन्तपुर स्वामी ) रूपी हिरण के लिए सिंह है । जो 'अश्मक' देश के शजारूपी बाँस वृक्ष को भस्म करने के लिए अग्नि सरीखा है। जो शक ( तुरुष्क ) देश के स्वामीरूप शलभों ( पतनकीदों) को भस्म करने के लिए अग्नि सरीखा है। जो विराट् देश के स्वामी को भस्म करने के लिए अग्नि सरीखा है। इसीप्रकार जो 'अहिच्छत्र' नाम के नगर ( पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र ) के क्षत्रिय राजाओं में शिरोमणि व पचाल देश के स्वामी ( अञ्चल नरेश ) की चपलता नष्ट करने के लिए प्रलयकाल सरीखा है। जो केरल देश ( दक्षिणपथ-देश ) स्वामी के वंश को चूर चूर करने के लिए वापत सरीखा है जो यवन (खुरासान ) देश के राजारूपी वृक्ष को भस्म करने के लिए जाग्नि सरीखा है । चैत्र ( डाहाल ) देश की कमनीय कामिनियों के साथ विनोद ( क्रीड़ा) करने के हेतु जिसका युद्ध है। जो राज-महल की स्त्रियों के विलास (नेत्रों की शोभा ) देखने के लिए दर्पण सरीखा है। जो काखीदेश ( दक्षिणसमुद्र तटवर्ती देश ) की कामिनियों के कुचकलशों पर अपना करपल्लव स्थापित करनेवाला है। जो माहिष्मती (यमुनपुर- दिशावर्ती ) नगरी की युवतीरूपी रतियों को आनन्दित करने के लिए कामदेव सरीखा है। जो कौशाम्बी नगरी की स्त्रियों के बिम्बफल सरीखे रक्त ओठों को विशेषरूप से विभूषित करता है और जो ' दशार्ण' देश की खियों का कर्णपूर ( कर्णाभरण ) है । जो पाटलिपुत्र नगर की वेश्याओं का कामुक और 'बलभि' नाम के नगर की स्त्रियों के भ्रुकुटि ( मोहें ) भङ्गों के लिए भ्रमरसरीखा मञ्जुल ध्वनि करनेवाला है। इसीप्रकार जो पौरखपुर (अयोध्यानगरी ) की स्त्रियों के लिए सुगन्धित द्रव्य विशेष है। अर्थात् - जिसप्रकार सुगन्धित द्रव्य द्वारा वस्तुएँ सुगन्धित की जाती हैं उसीप्रकार प्रस्तुत यशोधर महाराजरूपी सुगन्धित द्रव्य द्वारा भी उक्त नगर की स्त्रियाँ सुगन्धित कीजाती है एवं जिसने निरन्तर धन-दान द्वारा ब्राह्मण समूह सन्तुष्ट किया है।
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'प्रतापवर्धन' सेनापति द्वारा अचल नरेश के प्रति दूरा-मुख द्वारा दिया हुआ आमन्त्रण - यदि में दीप्यमान सभा में कहता हूँ कि तुम यशोधर महाराज के पास आकर उनकी सेवा करो तो तुम्हारी भलाई है। यदि तुम भागोगे तो उससमय समुद्रपर्यन्त प्रथिवी है। अर्थात् - भागकर कहाँ जासकते हो ? और यदि युद्ध करने के अभिमुख होते हो तो उसमें भी तुम्हारा कल्याण किसप्रकार होसकता है ? अपितु नहीं होसकता। इसलिए हे अचलमहाराज ! आपको इस लेख द्वारा उक्त संदेश के सिवाय और क्या संदेश दिया जावे' १ ||४२५||
१. आपालंकार ।
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