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________________ प्रथम श्राश्वास पिलोकविलोचनलीलाकमलैः, संकल्पितकपोललावण्यम समागमैः, विस्फारितामृतकान्तबिम्साघरसः, संजनितस्मरसाराला - कर्णपूरैः, उदारहारनिझरोचित्तचक्रोडावलविहारसंपादिभिः, स्तन मुकुलमृगालमीलावलिवाहिनीविहितजनकेलिविभ्रमः, प्रदर्शित मनोहंसावासनाभीवलमिगमः, प्रकटितवेतोबासनिवासशासनमसीलिमित्रतलिपिस्पर्धमानरोमराजिभिः, विस्तारितपमस्तमयसाम्राज्यविहजघनसिंहासनैः, संवारिताकदलीकाण्डकाननैः, घरणनग्नसंपादितरतिरहस्परपदापविरेचनैः पौरागनाजनैषिनोधमान इव मनसिजगहाराजनन्दनो निजारापरस्सरसेषवप्युस्स्वदिवसेषु न परपुरपुरन्ध्रीणामहणायु परिचयं कार । तत्र [चास्सि] समस्तमहीमहिला शिवण्डमण्दन करे पुरे पुतिनो हरिवंशजन्मनः प्रचण्डदोईपरमण्डलीमण्डन. मण्डलामावण्विारातिप्रकाण्डस्य चण्डमहासनस्य नृपतेःसूनुः पराक्रमापहसितनृगनलनहुषभरतभगीरथभगदत्तो मार (R) के कृष्ण व शुक्ल पक्ष की तृतीया व फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी ये मदनत्सव के दिवस कहे जाते हैं, क्योंकि इन दिनों में स्त्रियाँ नगर से बाहिर बाग-बगीचों में जाकर कोड़ा करती हुई कजली महोत्सब मनाती है) जो कि अपनी पूजा की जाने के कारण सरस-चित्त में उल्लास उत्पन्न करने वाले भी हैं, दूसरे नगर की खियों द्वारा की हुई अपनी पूजाओं का परिचय (जानकारी) प्राप्त नहीं किया। क्योंकि वहाँ पर ऐसा प्रतीत होता था मानों-यह-कामदेवरूप महाराजकुमार-प्रस्तुत नगर की ऐसी सुन्दर श्रीसमूहों द्वारा क्रीड़ा कराया जारहा था। जिन्होंने अपने केशपाशरूपचमरों की सेवा निरन्तर सुसज्जित की है। जिन्होंने ललाटरूप अङ्गण की श्रेष्ठ नाट्यभूमि पर अपने भृकुटीरूप लताओं के अग्रभाग सुसजित किये हैं। जिन्होंने ऐसे नेत्ररूप लीला कमल प्रदर्शित किये है. या निकट किये हैं, जो कि अपनी शोभा के विनस से निरन्तर की जानेवाली सुन्दर चिाया से मुक्तः है। जिन्होंने गालों की खुबसुरतीरूप मद्य अथवा बसन्त समागम की सुचारू रूप से रचना की है। जिन्होंने अमृत-समान अत्यन्त मने हर (मोठे) बिम्बफल सरीखे अपने श्रोठों का रस घिस्तारित किया है, अथवा प्रियतम को पिलाया है। जिन्होंने काम से उत्कृष्ट पार्तालापरूप कर्ण-आभूषग भली प्रकार स्थापित किया है। 'अर्थान् जो (स्त्री-समूह), कामोहीपक, सरस व विलासयुक्त मधुर भाषण रूप कर्णाभरण से विभूषित है। जो अत्यन्त मनोहर मोतियों की मालारूप झरनों से योग्यताशाली ( सुन्दर प्रतीत होने वाले ) स्तनरूप क्रीड़ा पर्वतों पर बिहार उत्पन्न करती है। जिन्होंने, स्तनरूप अविकसित (विना फूली हुई) कमल कलियों सहित मृगल की शोभा को धारण करनेवाली उदररेखारूप नदियों में जलक्रीड़ा का विलास किया है। जिन्होंने मनरूप हँस के नियास का कारण ऐसा नाभिपअर का मध्यभाग दिखाया है। जिन्होंने ऐसी रोमावली प्रदर्शित की है, जो कामदेव की वसतिका (निवासस्थान ) के निमित्त से लिखे हुए लेख या श्रादेश की अञ्जन-लिखित लिप के साथ स्पर्धा ( तुलना ) करती है। सिदोंने ऐसे नितम्बरूप सिंहासन प्रकट किये हैं. जो परिपूर्ण सुखरूपसाम्राज्य (चक्रवर्तित्व ) के प्रतीक है। जिन्होंने धारूप केलों के स्वम्भों के समूह का प्रदर्शन किया है एवं जिन्होंने चरणों के नखों द्वारा संभोग सम्बन्धी गोपनीय तस्य को प्रकाशित करने के हेतु मगियों के दीपकों की कल्पना सृष्टि उत्पन्न की है। समस्त पृथिवीरूपी कामिनी के मस्तक पर तिलकरचना करनेवाले ( सर्वश्रेष्ठ) उस पजपुर नगर में, पूर्वोपार्जित विशिष्ट पुण्यशाली, हरिवंश में उत्पन्न हुए एवं अपनी बलिप बाहदण्ड मण्डली को अलंकृत करनेवाले खड्ग द्वारा, शत्रुओं की प्रीया विदारण करनेवाले ( महान पराक्रमी ) ऐसे "चण्डमहासेन' नामक राजा का पुत्र 'मारिदत्त' नाम का राजा था, जिसने अपने महान पराक्रम द्वारा नग, नल, नहुष (यादवों * 'लापकलाप' इतिह.लि. सटिक (क-ग) प्रतिषु पाठः। १. 'महिलामण्डला इति. प्रतौपाठ: । २. 'चण्डम्ब चण्डमा' । 3. संस्ालंकार।
SR No.090545
Book TitleYashstilak Champoo Purva Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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