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प्रथम श्रश्वास
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पङ्क्तिपुनरुक्तधूपधूमाडम्बरैः, अतिनिकट बिकोपपिष्टशुक्शावसंदिग्रमान हरितारुणमणिभिः इतस्ततोऽविदूरतरचर चाफमूदायाच्द्रायमानमेकर वनैः अनिलएलनिधिरवधूतित्रिचिभिः अनवधिसुधा प्रधाकामसंदिग्धस्वर्धुनी प्रवाहैः, प्रफुलस्तव कैरिवान्तरिक्षण, प्रेतदीपसृष्टिभिरिव रोदः कोटरस्य शिखण्डमण्डन पुण्डरीकानी केरित नभोदेवतामाः पुण्यपुओपार्जनक्षेत्रैरिक त्रिभुवनभव्यजनस्य, डिण्डीर पिण्डमण्डलैखि विहायः पारावारस्य, अडडासवास्विव्योमयोमकेशस्थ, स्फटिकोस्कीकी का कुत्कोचैरिव ज्योतिर्लोकस्य, ऐरावत कुलकलभैशिवानङ्गनर, समन्तादुपसर्प खानेकमाणिक्य रुचितर पसरेग परिकल्पयनिरिव विनेयजनानां त्रिदशवेश्मनिवेशारोहणाथ सोपानपरम्पराम अशेषस्य जगतः परलोकावलोकनोचित भावसंभारसारस्य संसारसागरोत्तारणपतपातैरिव विचित्रकोटिभिः कूटैर्घटनाश्रयां त्रियमुचैपाल पैरपरैश्चाटिरुत्तुङ्ग तोरणमणिमरीचिपिञ्जरितामर भवनं महाभागभवनैरुपशोभितं राजपुरं नाम नगरम् ।
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पाया जाता है। जिनमें, निकटवर्ती कपोत- पालियों पर बैठे हुए तोताओं के बच्चों से हरित व लाल मशियों की भ्रान्ति उत्पन्न हो रही है । जहाँ-तहाँ समीप में घूमते हुए नीलकंठ पक्षियों के पंखों से उत्पन्न होने वाली प्रचुर नील कान्ति से, जिनमें, इन्दुनील मणियों की कान्ति लुप्तप्राय होरही है । वायु के संयोगवश उत्पन्न हुए कम्पन से मधुर शब्द करती हुई । ( छोटी-छोटी ) घंटियों की श्रेणियों से वहाँ की पालिध्वजाएँ - चिन्ह शाली वस्त्रध्वजाएँ भी मधुर शब्द कर रही हैं उनके कलरषोंमधुर शब्दों को सुनकर जहाँ पर विद्याधरों की कमनीय कागिनियों द्वारा नृत्य विधि आरम्भ की गई है। जो सीमातीत वेमर्याद — फैलते हुए चूने के शुभ्र तेज से आकाश गङ्गा के प्रवाह का सन्देह उत्पन्न करते हैं। जो ऐसे प्रतीत होते हैं-मानों- - श्राकाश रूप वृक्ष के प्रफुल्लित पुष्पों के उज्वल गुच्छे ही हैं।
जो ऐसे मालूम पड़ते हैं- मानों स्वर्ग और पृथिवीलोक के मध्य अन्तराल रूपी कोटर में जलते हुए उज्वल दीपकों की श्रेणी ही है। अथवा जो ऐसे प्रतीत होते हैं - मानों - आकाश रूप देवता के मस्तक को अलंकृत करनेवाले श्वेतकमलों की श्रेणी ही है । अथवा मानों - तीन लोक में स्थित भव्यप्राणियों के समूह की पुण्य समुदाय रूप धान्य के उत्पादक क्षेत्र - खेत ही हैं । अथवा जो ऐसे प्रतीत होरहे हैं-मानोंआकाशरूप समुद्र की फैनराशि के पुत्र ही हैं । अथवा मानों आकाशरूप शक्कर के महान् हास्य का विस्तार ही है । अथवा मानों - ज्योतिर्लोक - चन्द्र च सूर्य आदि के स्फटिकमणियों के ऐसे क्रीड़ा पर्वत हैं, जो कि टाँकियों से उकीरे जाने के कारण विशेष शुभ्र हैं। अथवा मार्नो – आकाश रूप वन के ऐरावत हाथी के कुल में उत्पन्न हुए शुभ हाथियों के बच्चे ही हैं । इसीप्रकार सर्वत्र फैलनेवाली अनेक रत्नों की कान्तिरूप तरों के प्रसार फैलाव से ऐसे प्रतीत होते हैं, मानों- भव्यप्राणियों को स्वर्ग में आरोहण करने के लिए, सीढ़ियों को रचना ही कर रहे हैं। अथवा ऐसे मालूम होते हैं-मानों - अखिल विश्व - समस्त भव्यप्राणी समूह — जो कि मोज्ञ में गमन के योग्य भावों- परमधर्मानुराग रूप भक्ति- श्रादि- के समूह से अतिशय - शाली - महान है, उसे संसार समुद्र से पार करने के लिए जहाज ही है । इसीप्रकार जो चैत्यालय, पाँच प्रकार के माणिक्यों से जड़ा गया है अप्रभाग जिनका ऐसी शिखरों से अनेक प्रकार की रचना सम्बन्धी शोभा को धारण करते हैं। उक्तप्रकार के चैत्यालयों से तथा ऐसे धनाव्यों के महलों से, जिन्होंने मेघ-पटल का चुम्बन किया है एवं जिन्होंने अस्यन्त ऊँचे मणिमयी दरवाओं के मणियों की किरणों से देवविमानों को पीतवर्णशाली किया है, सुशोभित राजपुर नाम का नगर है' ।
१. उत्प्रेक्षादिसं करालंकार ।