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________________ तृतीय आश्वासः वीधीशीत एव पलमनवोत्थानस्य सातस्यतः स्वामित्रस्य जवः कथं करिपतेः कध्येत चित्रं यतः । पाश्चात्यैर्जवनैरपि व्यवसितं स्थायैः पुरुपुत्र तिस्तधातुम् ॥ ३१ ॥ पस्याघातेन गजा जति पमपिशितक कढ़ने । रथमनुजवाजिनिषदः कतरोऽस्य गजस्य राजेन्द्र || ३११ ।। राजन्भूमित शौर्यशालिनि जने वीरश्रुतिर्विश्रुता तामेषोऽथ पायितेऽपि कृतधीर्धते न तवोचितम् । नागोsata निम्ति विमपि श्रासाचराणां गणं नैवं चेस्कथमन विक्रममरस्तुङ्गस्य शूरस्य च ॥ ३१३ ॥ अस्मिन् महीपाल गजे साने अगत्यभूतकस्य न दानभावः । क्षितिः सदानार्थिजतः समानस्तवास्विर्गश्च यतः सदानः ॥ ३१३ ॥ हे स्वामिन्! इस गजेन्द्र ( श्रेष्ठ हाथी ) का, जिसकी वेगोत्पत्ति मार्ग-संचार के आरम्भ, मध्य व प्रान्त में पाँचमी है। अर्थात् जो पाँच वेग से उत्थित हुआ है। अभिप्राय यह है कि अश्वों ( घोड़ों) को आस्कन्दित, धौरितिक, रेचित, वल्गित व प्लुत इन पाँच गतियों में से जो पाँचमी व्रतगतिवाला है। अर्थात्- जो उड़ते हुए सरीखा बड़ी तेजी से दौड़ता है, वेग अविच्छिनता वश आश्चर्यजनक है, अतः किसप्रकार कहा जा सकता है ? अपितु नहीं कहा जा सकता। क्योंकि इसके पृष्ठभाग पर स्थित हुए वेगशाली भी घोड़े इसके वाएँ व दक्षिण-पार्श्वभाग पर खड़े रहने की चेष्टा नहीं कर सके और इसके बाएँ व दक्षिण पार्श्वभाग पर खड़े हुए वेगशाली भी घोड़े इसके आगे खड़े रहने का प्रयत्न न कर सकें । इसीप्रकार इसके आगे दौड़े हुए घोड़ों द्वारा यहाँ वहाँ दौड़ने की चेष्टा नहीं की गई ||३१|| हे राजेन्द्र ! आपके जिस गजेन्द्र ( श्रेष्ठ हाथी ) के निष्ठुर प्रहार द्वारा युद्धभूमि पर जब शत्रु-हाथी यमराज के मांस - श्रास ( कोर) की सदृशता प्राप्त कर रहे हैं तब दूसरे रथ, मनुष्य व घोड़ों के समूह का नष्ट होना कितना है ? अर्थात् यह तो साधारण सी बात है ||३११|| हे राजन् ! अप्रतिहत व्यापारबाली शूरता से सुशोभित पुरुष 'बी' नाम से प्रसिद्धि पाई जाती है, उस 'वीर प्रसिद्धि' को आपका यह हाथी इस समय युद्ध से भागे हुए सैनिक के जानने में विचक्षण (चतुर) होता हुआ भी नहीं धारण करता है, यह योग्य ही है। अर्थात् यह बात अनुचित प्रतीत होती हुई भी उचित ही है। अभिप्राय यह है कि आपका यह हाथ उक्त धीर प्रसिद्धि को इसलिए धारण नहीं करता, क्योंकि वह इस नैतिक सिद्धान्त को 'लिष्ट पुरुष को युद्धभूमि से भागते हुए भी का पीछा नहीं करना चाहिए, क्योंकि युद्ध करने का निश्चय किया हुआ कभी शूरता प्राप्त करता है' अी तरह जानने में प्रयोग है। इसीप्रकार हे राजन! आपका यह हाथी भय से भागते हुए योद्धा-समूह का विशेष घात कर रहा है, यदि ऐसा नहीं है तो इसमें पराक्रमशक्ति किसप्रकार जानी जावे ? एवं उन्नत वीर पुरुष की पराक्रमशक्ति भी बिना युद्ध के दूसरे किसी प्रकार नहीं जानी जाती है || ३१२|| हे राजन् ! जब आपका यह हाथी सदान ( सबलक्ष्मी - दानजल की शोभा-युक्त ) हुआ तब संसार में किस पुरुष को दानभाव ( दानशीलता ) नहीं हुआ ? अपि तु सभी को दानभाव हुआ। उदाहरणार्थ - पृथिवी सदाना ( रक्षायुक्त ) हुई और याचकगण सदान ( धनाढ्य ) हुआ एवं आपका शत्रु-समूह भी ३३७ * उकच---'आस्कन्दितं धौरितिक रेचितं वल्गित ' इति अश्वानां पञ्च गतयः । यश [सं० टी० पू० ५०१ से संकलित - सम्पादक १. दीपक व अतिशयालंकार । २. उपमा व आक्षेपालंकार । ३. उकचमी एलायमानोऽपि नाभ्येष्टव्यो बलीयसा । यश० सं० टी० ( पृ० ५०२ ) से संकलित - सम्पादक ४. व्यतिरेक व आक्षेपालंकार । ४३ कदाचिच्छूरता मेति खणे कृतनिश्चयः ॥ १ ॥
SR No.090545
Book TitleYashstilak Champoo Purva Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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