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________________ २१२ यशस्तिक्षकचम्पूत्रव्ये चरितविरोषवामरोपमाः करिवरैस्तमालिताखिलाशावल्यम्, भमवरतचिपिटचर्वणदीर्णतामान बाकफलापारिसपानवृत्तिभिः स्वभावादेशाविकोपमा पराप्रपदीनचोलकरललितसिदैलक्ष्योस्थितपर्यन्सजमदुर्वाविधिभि; प्रकामापामयोग गौराकुलितसकसैनिकम्, विचित्रसूत्रगुम्फिसरफारफरस्कोस्करकथुरितसर्वदाक्षायणीदेशम् , #उरलासकामक्सिी धाराकरमिकरतरङ्गितगगनभागम् , आहरकानुस देश, इदं जलपुरषद क्रियाविशेषास तैरभुक्तं पलम् । इश्चाजानुलम्बमामनिवसनम् , माहिंषविषाण घटितमुष्टिकटारकोस्कटकटीमागम्, मिरम्सरहनदीर्घदेहलोमलापकरितसङ्गीणकटम्, भवस्सियनप्रबन्धप्रवकरातया क्रियानुमेयनाभिरासानयमश्रवणदेशम, उभयांसोत्तम्भिवभूतिभसतया विशिरोनिशाचरानीकभिव, पुरानुष्करपूरलक्ष्यादिपातावित पाटवापहसिसकपरधर्मकर्णार्जुमद्रोणपदभर्गभार्गवम् , ध्वजाओं के प्रान्तभागों द्वारा जिन्होंने श्रीसूर्य की चमरों से पूजन की है, पुनः कैसा है यह सैन्य ? जिसके समस्त सैनिक ऐसे गौड़ देश संबंधी सैनिकों द्वारा किंकर्तव्य-विमूद किये गये हैं, जिनके दाँतों के प्रान्तप्रदेश निरन्तर पृथुकों B (धान्यभ्रष्टयषजी) के भक्षण द्वारा विदीर्ण किये गये हैं, जिनकी मुख वृत्ति सुपारी-भक्षण से रञ्जित हुई है, जिनका मन प्रकृति से ही विशेष क्रोध प्रकट करनेवाला है, जिन्होंने सामने खड़े हुए लोगों के प्रति इसलिए कटुवचनों का उचारण किया था, क्योंकि इन्होंने पैरों के अप्रभागपर्यन्त प्राप्त हुआ चोलक (कूसक-अंगरखा) पहिन रक्खा था, जिसके कारण गमन-भङ्ग होजाने से वैखात्य (निःप्रतिपति-अज्ञानता ) होगया था एवं जिनकी चोटी के केश-समूह विशेष लम्बे हैं, पुनः कैसा है वह सैन्य ? जिसने पँचरंगे तन्तुओं द्वारा गूंथे हुए महान आखेटक (शिकारी वस्तु-जाल-आदि) समूहों द्वारा समस्त आकाश मण्डल को विचित्र वर्णशाली किया है। जिसने उत्थापित (उठाए हुए) खगों (तखबारों) की उछलने फैलनेवाली धारा ( अग्रभाग) की किरण-समूह से आकाश प्रदेश को दरणित ( तरङ्गशाली ) किया है और जो युद्ध करने में अद्वितीय प्रीति रखता हुआ जलयुद्ध करने में बाँधे हुए क्रिया विशेष (कर्तव्य विशेष ) में आसक्त है। इसीप्रकार हे राजन् ! एक पार्श्वभाग में यह 'गुर्जर' देश का ऐसा सैन्य देखिए, घुटनों तक लम्बा वस्त्र धारण करनेवाले जसका कमर-भाग भैंस के सींग से बनी हुई मुष्टिवाली छुरी से उत्कट है। जिसके समस्त शरीर पर अविच्छिन्न, घने व लम्बे शारीरिक रोम-समूह द्वारा कवच रचा गया है। जिसकी दाढी के बाल नीचे भाग पर और तिरछे वाएँ व दाहिने पार्श्वभागों पर घने रूप से वृद्धिंगत हुए थे, इसलिए जिसकी नाभि, नासिका, नेत्र और कानों के प्रदेश सूचना व देखना-आवि क्रियाओं द्वारा अनुमान किये जाते थे। अर्थात-उसकी दादी के बाल नीचे की ओर नाभि प्रदेश तक बढ़ गये थे और तिरछे बाई व दाहिनी ओर नाक नेत्र और कानों के प्रदेश तक बढ़ गए थे, जिससे उसके नाक, व नेवादि प्रत्यक्ष से अधिगोचर न होने के कारण केवल सँधना, देखना ब सुनना-श्रादि क्रियाओं द्वारा अनुमान किये जाते थे। अपने दोनों कँधो पर विशाल भाते बाँध रखने के कारण जो तीन मस्तकों पाले राक्षस-समूह समान शोभामान हो रहा था। जिसने लघुसन्धान (धनुष-आदि पर पाण-श्रादि का S'गूवाक' है। * 'उत्खातखावल्गनबिसारि क ग । * 'घटितमुफटारिकोत्कटकटीभागम्' क. 1 'पारवापदसितवर्मकर्णाजुनद्रोणपदभर्गभार्गवन् क.। A. उक्त' च–'सेनायर्या समवेता ये सैन्यास्ते सैनिकाय ते । ___13, उक्त च-पुकः स्यारिचपिटको धान्यष्टय लियः । * विलकै विस्मयान्विते निरुवसत्यमिति विगत लक्ष्म अस्य वा दिलक्षो निः प्रसिपत्तिः तस्य भावो चैलक्ष्य' टिप्पणी ग ।
SR No.090545
Book TitleYashstilak Champoo Purva Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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