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यशस्तिलकचम्पूकाव्ये कृतमविषिस्तरेण । अस्ति खल्वित्र सकलायकपाने भरसक्षेत्रे चतुर्वर्गमार्गणीपकरणप्रसूतः समरसप्रशस्समहीपलवाकरणभूता सुरलोकममोरथाविधेयो योथेयो नाम धाम सम्पदो जनपदः ।
... पन महानृपतय इष गोमण्डलचन्ता, सहवर्तिश्रिय हर महिषीसमाकुलाः, भरत प्रयोगाइब सगम्भोः , सुगतागमा इवाविकपप्रधानाः, कामिनीनितम्या इव करभोरखः, भुतय इवाजसंजनितविस्ताराः, श्रमणाइव जातरूपधारिणः, गृहस्पतिमीतर लाखमालका: शक्ति क्षीण होजाती है एवं तू चित्त को प्रान्त करती है। इसप्रकार तेरे में यद्यपि उक्त अनेक दोष पाए जाते हैं, तथापि कवि तेरी कृपादृष्टि से विद्वान व पुण्यशाली होजाता है। ॥ ४१ ।।
उक्त यात का अधिक विस्तारपूर्वक निरूपण करने से कोई लाभ नहीं, अतः इतना ही पर्याप्त है।
निश्चय से इसी जम्बूद्वीप संबंधी भरतक्षेत्र (आर्यखण्ड) में, जो कि समस्त आश्चर्यो ( केवल झान की उत्पत्ति-श्रादि कौतूहलों ) का एकमात्र अद्वितीय स्थान है, ऐसा 'यौधेय' नाम का देश है, जिसमें समस्त पुरुषाथों ( धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष) को प्राप्तकरानेवाली कारणसामग्री (द्रव्य, क्षेत्र व कालादि) की उत्पत्ति पाई जाती है, जो समस्त प्रशंसनीय पृथिवी मण्डलों का आभूषणसदृश है एवं समस्त सुख-सामग्री से भरपूर होने के फलस्वरूप जहाँ पर प्रजाजनों द्वारा स्वर्गप्राप्ति की कामना नहीं कीजाती और जो धनादि लक्ष्मी का निवास स्थान है। जिस यौधेय देश में ऐसे ग्राम है
अहाँके ग्राम महान राजाओं के समान गेमण्डलशाली हैं। अर्थात्-जिसप्रकार महान् राजालोग गोमण्डल ( पृथियीमंडल ) से संयुक्त होते हैं, उसीप्रकार प्राम भी गो-मंडलशाली हैं। अर्थात गार्यों के समूह से अधिष्ठित है। जो, चक्रवर्ती की लक्ष्मी के समान महिषी-समाकुल है। अर्थात-जिसप्रकार चक्रवर्ती की लक्ष्मी महिषियों-पट्टमहादेवियो-से सहित होती है, उसीप्रकार प्राम भी महिषियों -- भैंसोंसे व्याप्त है। इसीप्रकार जो, संगीतशास्त्रों के समान गन्धों से सुशोभित हैं। अर्थान्-जिसप्रकार संगीतशास्त्र गन्धर्यो ( संगीतज्ञों) से मण्डित-विभूपित-होते हैं. उसीप्रकार प्राम भी गन्धर्चा- घोड़ोंसे मण्डित है। जो बौद्ध शास्त्रों के समान अविकल्प प्रधान हैं। अर्थात्-जिसप्रकार बौद्धशास्त्र क्षणिकवादी होने के कारण प्रधान । प्रकृति-कर्म) एवं स्वर्ग व पुण्य-पापादि के विकल्प (मान्यता) से शून्य हैं अथवा निर्विकल्पकज्ञान की मुख्यताशाली हैं। उसीप्रकार ग्राम भी अविकल्प-प्रधान हैं। अर्थात्-- जिनमें प्रधानता (मुख्यता) से अधि-मेढाओं का समूह वर्तमान है। जो कामिनियों के नितम्बों ( कमर के पीछे के भागों के समान करभोरू हैं। अर्थात् जिसप्रकार त्रियों के नितम्ब, करम के समान जाँघों से युक्त होते हैं, उसीप्रकार प्राम भी करम-ऊरू अर्थात् अटों से महान् है। जो वेदों के समान अजसंजनित विस्तार हैं। अर्थान-जिसप्रकार वेद, अज- ब्रह्मा-से भलीप्रकार किया है विस्तार जिनका ऐसे हैं, उसीप्रकार प्राम भी अजों-बकरों-से भलीप्रकार किया गया है विस्तार जिनका ऐसे हैं। जो, दिगम्बर मुनियों के समान जातरूपधारी हैं। अर्थात्-जिसप्रकार विगम्बर साधु जातरूप-नग्नवेष- के धारक होते हैं, उसीप्रकार प्राम भी जातरूप-सुवर्ण - के धारक हैं। जो चार्वाक ( नास्तिकदर्शन ) के शास्त्रों के समान अदेवमातृक है। अर्थात्-जिसप्रकार
१--विषमालंकार अथवा व्याजस्तुति । २-'मणिबन्धादाकनिष्ठं करस्य करभी वहिः' इत्यमरः ।
कलाई से लेकर छिगुनी तक हाय फी शहिरी कोर को करभ कहते हैं। चढ़ाव उतार के कारण स्त्री की जाँच के लिए कवि लोग इसकी उपमा देते हैं।