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________________ तृतीय आधास: २०५ मसल्लोकानुरोधेन सहलोकोपेक्षणेन च । व्यालशैलान्तराठाङ्गी कुरङ्गीवासमा रमा ॥१८॥ देव, भूयन्ते बसतां सतां व प्रप्रहावामहाभ्यां च नृपेषु व्यापदः । तथा हि—कमिचनको नाम नृपतिर्दिवाकति सेनाधिपस्येन सामन्तसंतान संतापयन् संभूष प्रकृषिसाम्यः प्रकृतिभ्यः किनकलोधानुरोध पधमवाप। केरलेषु । पराला कितपस्य पौरोहित्येन, बङ्गालेषु मङ्गलो वृषजस्य साचिव्येन, कैशिकेषु । कामोऽवरुद्ध बस्तनधयस्य पौवराज्येन, तथा पङ्गेषु स्फुलिङ्गा: CENTER चहागामुदापि नलिन, मधु मकरध्वनः साधुसमीव विवेकी पुरुष को हृदय में चुभे हुए तलवार के खएउ-सरीखी विशेषरूपसे दुःस्थित नहीं करती १ अपि तु अवश्य ही करती है। इसलिए हे राजन् ! नीच लोगों का सत्कार करने से और उत्तम लोगों का अनादर करने से लक्ष्मी (धनादि सम्पत्ति) समीप में आने के लिए उसप्रकार असमर्थ होती है जिसप्रकार ऐसी हिरणी, जिसके एक पार्श्वभाग पर पुष्ट हाथी है और दूसरे पार्श्वभाग पर पर्वत है और जिसका शरीर उन दोनों दुष्ट हाथी व पहाड़) के बीच में स्थित है, समीप में आने के लिए असमर्थ होती है' ॥१७॥ हे राजन् ! जिन राजाओं ने दुष्टों को स्वीकार (सन्मानित किया है और सजनों को अस्वीकार ( अपमानित ) किया है, उनके ऊपर निश्चय से विपत्तियाँ श्रवण कीजाती है। उक्त बात को समर्थन करनेवाली क्रमशः दृष्टान्तमाला श्रवण कीजिए-हे राजन् ! सबसे पहले आप दुष्टों को सन्मानित करनेवाले राजाओं की दुर्गति बतानेवाली दृष्टान्तमाला श्रवण कीजिए-- कलिङ्ग देश के अनङ्ग' नाम के राजा ने नापित ( नाई) को सेनापति पद पर भारूढ किया और उसके द्वारा उसने अधीनस्थ सामन्तों ( राजाओं ) को पीड़ित कराया था, इसलिए कपिस हुई प्रकृति ( प्रजा ) ने मिल करके उसके ऊपर एक-एक पत्थर फेंककर इसका बध कर बाला। केरल ( दक्षिणाश्रित देश ) देशों में वर्तमान 'कराल' नाम के राजा ने नीष फुलवाले मानव को पुरोहित ( राजगुरु ) बनाया था, इसलिए मारा गया। बङ्गाल देश के 'मन' नाम के राजा ने वृषल (शूद्र और वाणी से उत्पन्न हुए शूद्र) को राजमन्त्री बनाया था, इसके बलस्वरूप मार डाला गया। इसी प्रकार ऋथकेशिक देशों के 'काम' नामक राजा ने वेश्या-पुत्र को युवराज पद दिया था, जिसके फलस्वरूप मध को प्राप्त हुआ। हे राजन् ! अब आप सज्जनों को अपमानित करनेवाले राजाओं की दुर्गति समर्थन करनेपाली दृष्टान्तमाला श्रषण कीजिए बनवेशों स्थित हुए 'स्फुलिङ्ग' नाम के राजा ने ऐसे मन्त्री का अनावर किया था, जो कि पंश-परम्परा से मन्त्री पद पर आरूढ़ हुआ चला आरहा था और जो चार प्रकार की उपधाओं ( धर्म, अर्थ व काम-आदि ) से शुद्ध था । अर्थात्-जो धर्मास्मा, अर्थशास्त्री, जितेन्द्रिय और अपने स्वामी को संकट से मुक्त करनेवाला था, जिसके फलस्वरूप वह (राजा) मार डाला गया। मगधं II वालो पृषलस्य साचिज्येन' ० + 'कासोऽवस्य' का 1 १. उपमालद्वार। २. उक्त म्य-अमात्याद्याश्च पौराश्च सद्भिः प्रातयः स्मृताः । खाम्यमात्यसुत्कोशराष्ट्र दुर्गवरानि च । राण्यामानि प्रपतयः पौराणां श्रेणयोऽपि च ॥' यश की सं. सी. पू. ४११ से संग्रहीत–सम्पादक
SR No.090545
Book TitleYashstilak Champoo Purva Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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