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तृतीय पाशसः देव, मसिरसरतस्य पुंसः किमिव मांसवतम् । कपाले मुझानस्य हि नरस्य क हव वादनादायल्पावेला । पुरे प्रमोबदक्षस्य हि पुरुषस्य केव काम्वारेऽपेक्षा । निरम्बरनियम्यायामात्माम्बायां शाहोयोगस्य हि जनस्य कप पराम्बालामम्बरपरित्यागः । यतः।
स्थिता असमानस्य गसासौ कोशी क्या । परमाले कृपा कैव स्वबालेन बलिकिये ॥१०॥
देश, समावणा हि दुस्स्यमा खलु प्रकृतिः। न खलु पोषितोऽप्यहिपोतो हाति हिंसाध्यवसायम्, न खलु वाशीलोपि खिालस्त्यवति कौर्यम्, म खलु प्रायोपवेशनवासिन्यपि कुहनी मुश्चति परवश्वमोचितां चिन्ताम, म बलु काकवलनिकटोपि किराठो रहति शायस्थितिम् । यसः ।।
पः स्वभावो भवेद्यस्य स तेन खलु दुस्स्यजः । न हि शिधाशतेनापि कर्मुिश्चति पलम् ॥१६॥
हे राजन् ! मांस-रस के पीने में अनुराग करनेवाले पुरुष का मांस-प्रद (मांसत्याग) क्या है? अपि तु कुछ नहीं। अर्थात्-मांस-रस के पीने में लम्पट हुआ पुरुष मांस को किसप्रकार छोड़ सकता है? अपितु नहीं छोड़ सकता। नरमुण्डों ( मुदों की खोपड़ियों) में स्थापित किये हुए भोजन को खानेवाले पुरुष को भोजन के अवसर पर केश-दर्शन से भोजन-परित्याग किसप्रकार होसकता है? अपितु नहीं हो सकता और नगर में चोरी करने में समर्थ हुआ पुरुष वन की अपेक्षा क्यों करेगा ? अपितु नही करेगा। अर्थातू-जो नगर में डाँका डालने में समर्थ है, वह वन में स्थित रहनेवाले पुरुषों के लूटने की इच्छा क्यो करेगा? अपितु नहीं करेगा। इसीप्रकार अपनी माता को नग्न करके (उसके साथ रतिषिलास करने के लिए ) जिसका शरीर कामरूप ज्वर से पीड़ित होधुका है, उस पुरुष का दूसरे की माता को नन करके उसके साथ रतिविलास करना क्या है ? अपितु कोई चीज नहीं। अर्थात् जो अपनी माता के साथ रतिविलास करना नहीं छोड़ता, वह दूसरे की माता के साथ रतिविलास करना किसप्रकार छोड़ सकता है अपितु नहीं छोड़ सकता ।
हे राजन् ! क्योंकि जीवित प्राणी की हत्या करके भक्षण करनेवाला पुरुष मरे हुए प्राणी के साथ दया का बर्ताव फिसप्रकार कर सकता है? अपितु नहीं कर सकता और अपने बच्चे की बलिक्रिया ( उसकी हत्या करके देवी को चढ़ाना ) करनेवाला पुरुष दूसरों के पत्रों में दया का क्ष किसप्रकार कर सकता है ? अपितु नहीं कर सकता। भाषार्थ---प्रकरण में उसीप्रकार हे राजम् ! सक्त 'पामरोदार' नाम के मन्त्री में उक्त सभी प्रकार के दुर्गुण ( मांसभक्षण, चोरी व परसी-लम्पटवा एवं निर्दयता-मादि) पाये जाते हैं। ॥ १५॥
हे राजन् ! स्वाभाषिक प्रकृति निश्चय से दुःख से भी नहीं लोड़ी जासकती। उदाहरणार्मजिसप्रकार [दूध पिलाकर ] पृष्ट किया हुश्रा भी साँप का बचा हिंसा करने का उधम निश्चय से नही छोड़ सकता। इसीप्रकार बिलाव दीक्षा को प्राप्त हुआ भी अपनी क्रूरता नहीं छोड़ता एवं कुट्टनी उपवास या संन्यास धारण करती हुई भी लोकवचन-योग्य चिन्ता नहीं छोड़ती और जिसप्रकार किपट (भील बगैरह म्लेच्छ जाति का निकृष्ट लुटेरा पुरुष ), काल-पास के समीपवर्ती हुश्रा भी अपना छलकपट-मादि दुष्ट मर्ताव नहीं छोड़ता।
क्योंकि जिस पुरुष का जो स्वभाव होता है, वह उसके द्वारा निश्चय से दुल से भी छोड़ने के लिए अशक्य होता है। उदाहरणार्थ-यह बात स्पष्ट ही है कि बन्दर सैकड़ों हजारों शिक्षामों (उपदेशों) द्वारा शिक्षित किये जाने पर भी अपनी चलता नहीं छोड़ता' ।। १७६ ॥
१. भाक्षेपालकार । २. रष्टान्तालद्वार ।