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________________ २६७ तृतीय आश्वासः मालोष्टपेटः निसिपः स्वभावास्सुदुष्टचेष्ट: सचिवश्न यन्त्र ।शुभाशयस्यापिसुमेधसोऽपि क्षेमः कुतस्तत्र भवेजनस्य ॥१२७॥ शिष्टावासः कुतस्तत्र दुर्मन्त्री यत्र भूपतौ । श्वेनैवयं तरौं यत्र कुतस्तनापरे द्विषाः ॥ १२८ ।। जानमपि जनो मोहादायासाय समोहते । यस्य कार्य न येनास्ति सस्मासस्य फलं कुतः ॥ १२९ ॥ पुरुषों की ही बुद्धि जहाँपर पुण्योदय से उत्पन्न हुए पुराण शास्त्र द्वारा सुरक्षित की गई है और जिन्होंने पूर्व जन्म में पुण्य नहीं किया-जो खोटे भाग्यवाले हैं --उनकी बुद्धि नष्ट होचुकी है, क्योंकि उनको सद्बुद्धि देनेवाले का जहाँपर प्रभाव पाया जाता है। इसीप्रकार जिस नाटक में लुहार-पुत्र मंत्री पद का कार्य करनेवाला पात्र हुआ है। अर्थात्-जिसप्रकार लुहार-पुत्र राज्यसंचालन-आदि मन्त्री का कार्य नहीं कर सकता उसीप्रकार लुहार-पुत्र सदृश मंत्री भी राज्य-संचालन आदि मन्त्री पद का कार्य नहीं कर सकता एवं जिस नाटक का रचयिता 'तरुणीलीलाविलास' नाम का महाकयि हुआ है, जो कि विशेषशक्ति-शालिनी ( दर्शकों के हृदय में शृङ्गाररस व वीर्यरस-आदि रसों को अभिव्यक्त-प्रकटकरने में समर्थ) वाक्यरचना करने में उसप्रकार प्रवीण है जिसप्रकार बृहस्पति प्रवीण होता है। ॥१२६|| जिस राज्य में राजा स्वभावतः मृत्पिण्ड सरीखी चेष्टा ( क्रिया)-युक्त है। अर्थात्-जिसप्रकार मिट्टी का पिण्ड कुछ भी कार्य ही कर सादा उसी का समय में राजा भी कुछ भी शिष्ट-पालन व दुष्ट-निग्रह आदि राज-फर्तव्य पालन करने में समर्थ नहीं है एवं जिस राज्य में मन्त्री दुष्ट चेष्टा ( खोटा अभिप्राय) से व्याप्त है, उस राज्य में ऐसे लोक ( प्रजा ) का भी कल्याण किस प्रकार होसकता है ? अपि तु नहीं होसकता, जो कि पुण्य के पवित्र परिणाम से भी विभूषित है, फिर पापी लोक की रक्षा होने की कथा तो दूर ही है और जो प्रशस्त बुद्धि से भी युक्त है, फिर दुर्बुद्धि ( खोटी बुद्धिवाले मूर्ख) लोक की रक्षा होने की कथा तो दूर ही है ॥१२७॥ जिसप्रकार जिस वृक्ष पर बाज पक्षी का ऐश्वर्य ( राज्यभव) वर्तमान है। अर्थात-निवास है, उसपर दूसरे पक्षी ( काक-आदि) किस प्रकार निवास कर सकते हैं? अपितु नहीं कर सकते। [क्योंकि यह उन्हें मार डालता है ] उसीप्रकार जिस राजा के निकट दुष्ट मंत्री अधिकारी वर्तमान है, उसके पास शिष्ट पुरुषों का निवास किस प्रकार होसकता है ? आपतु नहीं होसकता १३१२८।। मनुष्यमान जानसा हुभा भी अज्ञान-यश निरर्थक दुःख की प्राप्ति हेतु चेष्टा करता है, क्योंकि जब जिस पुरुष का जिस पुरुष से प्रयोजन सिद्ध नहीं होसकता तब उससे उसको किसप्रकार लाभ होसकता है ? अपि तु नहीं होसकता। भावार्थ-प्रकरण में 'शजनक' नाम का गुप्तचर यशोधर महाराज से 'तरुणीलीलाविलास' नामके महाकवि की ललित काव्यरचना दुष्ट मन्त्री के विषय में श्रवण कराता हुआ कह रहा है कि अब मनुष्य यह जानता है कि 'अमुक व्यक्ति में अमुक कार्य के करने की योग्यता नहीं है' तथापि वह उसे उस कार्य कराने के हेतु नियुक्त करके निरर्थक कष्ट उठाने की चेष्टा (प्रयत्न ) करता है । क्योंकि जिस पुरुष का जिससे प्रयोजन सिद्ध नहीं होता उसको उससे किसप्रकार लाभ (प्रयोजन-सिद्धि द्वारा धनादि की प्राप्ति) होसकता है ? अपि तु नहीं होसकता। प्रकरण में हे राजन् ! जब आप ( यशोधर महाराज) यह जानते हैं कि 'पामरोदार' नाम के मन्त्री में राज्य-संचालन करने की योग्यता नहीं है, तथापि आपने उसे मन्त्री पद पर नियुक्त करके व्यर्थ कष्ट उठाने की चेष्टा की है, क्योंकि जब आपका उससे इष्ट प्रयोजन ( राज्य-संचालन-आदि) सिद्ध नहीं होता तब श्रापको उससे लाभ ही किसप्रकार होसकता है? अपितु नही होसकता ॥१२॥ १. समुरचयालद्वार। २. जाति व रूपकालङ्कार। ३. भाक्षेपालंकार । ४. आक्षेपालहार ।
SR No.090545
Book TitleYashstilak Champoo Purva Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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