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यशस्तिलकचम्पूकान्ये चारसंचारतो येषां भाध्यक्षा स्वपरस्थितिः । नियुक्ताराविसंपातातेषां नार्थो न चासवः ॥११८॥ जो राजा लोग गुप्तचरों के प्रयोग द्वारा अपने व दूसरे देश की स्थिति प्रत्यक्ष नहीं करते, उनके ऊपर नियोगियों-सेनापत्ति-आदि अधिकारियों व शत्रओं के आक्रमण होते हैं, जिसके फल स्वरूप उनके पास न तो राक्ष्यलक्ष्मी ही स्थित रहती है और न उनके प्राण ही सुरक्षित रह सकते हैं।
भावार्थ-नीतिशास्त्र के वेत्ताओं ने गुप्तचरों के निम्नप्रकार लक्षण, गुण व उनके न होने से हानि म होते से लाभ-आदि का निरूपण किया है। प्रस्तुत नीतिकार सोमदेवसूर' ने कहा है कि "गुप्तचर स्वदेश व परदेश संबंधी कार्य-अकार्य का ज्ञान करने के लिए राजाओं के नेत्र है। गुरू' विद्वान ने भी कहा है कि 'राजालोग दूरदेशवर्ती होकर के भी स्वदेश-परदेश संबंधी कार्य-अकार्य गुप्तचरों द्वारा जानते हैं ||१||' उनके गुणों का निर्देश करते हुए सोमदेव सूरि ने कहा है 'सन्तोष, पालस्य का न होना ( उत्साह अथवा निरोगता), सत्यभाषण व विचार शक्ति ये गुप्तचरों के गुण है। भागुरि विद्वान ने भी कहा है कि 'जिन राजाओं के गुप्तचर श्रालस्य-रहित (उत्साही, सन्तोषी, सत्यवादी और तर्कणाशक्तिशाली होते हैं, वे अवश्य राजकीय कार्य सिद्ध करते हैं।' गुप्तचरों के न होने से होनेवाली हानि का कथन करते हुए सोमदेव सृरि' लिखते हैं कि 'निश्चय से जिस राजा के यहाँ गुप्तचर नहीं देते, सह स्वदेश र प्रदेश मंत्री लामो शागर आक्रमण किया जाता है, श्रतः विजय श्री के इच्छुक राजा को स्वदेश व परवेश में गुप्तचर भेजना चाहिए। चारायण विद्वान ने कहा है कि 'राजाओं को वैद्य, ज्योतिषी, विद्वान, खो, सपेरा, और शराबी-आदि नाना प्रकार के गुप्तचरों द्वारा अपनी तथा शत्रुओं की सैन्य-शक्ति जाननी चाहिए। जिसप्रकार द्वारपाल के विना धनाक्य पुरुष का रात्रि में कल्याण नहीं होसकता उसीप्रकार गुप्तचरों के विना राजाओं का कल्याण नहीं होसकता। वर विद्वान के उद्धरण का भी उक्त अभिप्राय है । इसीलिए प्रकरण में आचार्य श्री ने यशोधर महाराज को संकेत करते हुए गुप्तचरों से होनेवाला उक्त लाभ और न होने से उक्त हानि का निर्देश किया है ॥११॥
हे मारिदत्त महाराज ! किसी अवसर पर जम मैंने 'शंखनक' नाम के गुप्तचर के समक्ष 'पामरोदार' नामके मंत्री की निम्नप्रकार प्रशंसा की तदनन्तर मैंने ( यशोधर महाराज ने) निम्नप्रकार आवर पूर्वक पूँछे गए 'शजनक' नाम के गुप्तचर से प्रस्तुत मंत्री के विषय में निम्न प्रकार वृत्तान्त सुना। इसके पूर्व मैंने उससे निम्नप्रकार पूँछा
१. तथा च सोमदेवसूरिः-स्वपरमण्डलकार्याकार्यावलोकने चाराः खलु यक्ष पि क्षितिपतीनाम् ॥१॥ १. तथा च गुरु:--स्वमण्डले परे चैव कार्याकार्य च यद्भवेत् । चरैः पश्यन्ति यद्भपा सुदूरमपि संस्थिताः ॥१॥ १. तथा च सोमदेवरि:-अलौल्यममान्यममृषाभाषित्तमभ्यूहकत्वं चारगुणाः ॥१॥ ४. तथा च भागुरि-अनालस्यमलोल्यं च सत्यवादित्वमेव च । अहकरवं भयेथेषां ते चराः कार्यसाधकाः ||१|| ५. तथा च सोमदेवमूरिः- अनवसर्पो हिं राजा स्वैः परैश्चातिसन्धीयते ॥६॥ ६. तया च 'चारायणः-वैद्यसंघरसराचादचारैज्ञेयं निर्ज बलम् । षामाहिरण्टिकोन्मत्तैः परेषामपि भूभुजाम् ॥५॥ ५. तया च धोमदेवसूरि:--किमरत्ययामिकस्य निशि कुशलम् ।।५।। ८. तथा च वर्ग:-यया प्राहरिकैर्याचं रात्री क्षेमं न जायते । चारैविना न भूपस्य तथा शेयं विचक्षणः ।।१।। " जाति-गलबार । नीतिमाक्यामृत ( भा. टी.) चारसमुद्देश.पू. २३१-२३२ से संकलित-सम्पादक