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________________ २४० यशस्वितकाम्पूचम्ये मई महानय स्वस्पभिन्तेचे सूप मुभवास । सिहचावावीन्द्रायां सत्पुरत्र निदर्शनम् ॥ ८॥ पुष्पैरपि म गोडम्य किं पुननितिः शरैः। तामस्थां गतानां तुम विध: कि भविष्यति ॥ ८॥ क्षसारं मृतं शूरमनशमनुरागि चेत् । भपि स्वल्प विप सैम्य पूषेय मुण्ठमण्डली n८८. प्रकरण में उक्त मंत्री ने यशोधर महाराज के प्रति उक्त दृष्टान्त द्वारा इस बात का समर्थन किया कि एसा विजिगोषु. जो वि. लष होने पर भी पोरता-युक्त है, प्रचुर शक्तिशाली शत्रु पर विजयश्री प्रास कर सकता है ॥६॥ हे राजन् ! विवेकी राजाओं को पुष्पों द्वारा भी युद्ध नहीं करना चाहिए। पुनः तीक्ष्ण बाणों द्वारा युद्ध करने के बारे में तो कहना ही क्या है ? अर्थात्-तीक्ष्ण पाण-आदि शत्रों द्वारा तो कभी युद्ध करना ही नहीं चाहिए। क्योंकि युद्ध-अवस्था को प्राप्त हुए प्राणियों का क्या होगा? अर्थात्-कितनी दयनीय अवस्था होगी इसे हम नहीं जानते। भावार्थ-प्रस्तुत नीतिकार ने कहा है कि 'नीतिशास्त्र के वेचा पुरुष जब पुष्पों द्वारा भी युद्ध करना नहीं चाहते दब शस्त्र युद्ध किस प्रकार चाहेंगे ? अपितु नहीं चाहेंगे। विदुर' विद्वान ने भी उक्त दृष्टान्त देते हुए शत्र-युद्ध का निषेध किया है। प्रकरण में उक्त मंत्री यशोधर महाराज से युद्धाङ्गण में धराशायी हुए सैनिकों की दयनीय अवस्था का निर्देश करता हुआ शस्त्र युद्ध का निषेध करता है |हे राजन! विजिगीषु की ऐसी फौज थोड़ी होने पर भी लक्ष्मी-निमित्त होती है। अर्थात्-विजिगीषु की शन से विजयश्री प्राप्त करने में कारण है, जिसमें वीर व शक्तिशाली राजपुत्र वर्तमान हो, जो अन्न व घृत-मादि भोज्य वस्तुओं द्वारा पुष्ट की गई है, जो युद्ध में निर्भयता पूर्वक कोरता दिख्मती हो एवं जो तलवार-आदि से युद्ध करने में प्रवीण हो तथा स्वामी से स्वाभाषिक स्नेह करती हो परन्तु इसके विपरीत उक्त गुणों से शून्य-सारहीन (शक्तिहीन व कर्तव्य विमुखता-बादि दोषों से ध्यान ) यह प्रत्यक्ष दिखाई देनेवाली अधिक फौज निरर्थक है। भावार्थ-प्रस्तुत नीतिकार ने कहा है कि 'सारहीन (शक्तिहीन व कर्तव्य विमुख) बहुत सी फौज की अपेक्षा सारयुक्त (शक्तिशाली व कर्तव्यपरायण ) थोड़ी सी फौज ही उत्तम है। नारद विद्वान ने भी अच्छी तैयार थोड़ी भी फौज को उत्तम व बहुत सीधरपोंक फौज को नगण्य बताया है॥१॥ आचार्य श्री.ने • सार-हीन पल्टन से होनेवाली हानि बनाते हुए कहा है कि 'जब शत्रुकृत उपद्रव द्वारा विजिगीषु की सारहीन सेना नष्ट हो जाती है व उसकी शक्तिशाली सेना भी नष्ट हो जाती है-अधीर होजाती है, अतः विजिगगीषु को दुर्बल सैन्य न रखनी चाहिए। कौशिक ' ने भी कायर सेना का भंग विजिगीषु की वीर सेना के भङ्ग का कारण बताया है ॥१|प्राकरणिक अभिप्राय यह है कि 'उपायसर्वज्ञ' नाम का मंत्री यशोधर महाराज के प्रति उक्त प्रकार की सार-शक्तिशाली कर्वन्य परायण-फौज को विजयश्री का कारण और सार-हीन फौज को पराजय का कारण बता रहा है। १. प्रतिवस्तूपमालंकार । २. तथा च सोमदेवरिःगुष्पयुद्धमापे नौतिवेदिनो नेच्छन्ति किं पुनः शनयुद्ध ॥१॥ ३. तथा च विदुर:-पुष्पैरपि न योदव्यं किं पुनः निशितैः शरैः । उपायपतया : पूर्व सस्मायुद्ध समाचरेत् ॥ ४. जाति-अलङ्कार । नीतिघाक्यामृत ( भा. टी.) प्रकीर्णक समुहेश पृ. ४१५-४१७ से संकलित-सम्पावक ५. तथा व सोमदेवसूरिः-परमल्पमपि सारं बलं न भूयसी मुण्डमण्डली ॥१॥ ६. तथा च नारदः-घर स्वल्पापि च श्रेष्ठा नास्वल्यापि च कातरा । भूपतीनां च सपा युवाले पता किनी ॥५॥ ५. तथा च सोमदेवमरि:-असारवलभंगः सारवलमंगं करोति ॥१॥ ८. तथा च कौशिक कासराणां च यो भंगो संग्रामे स्यान्महीपतेः। स हि भंग करीत्येव सर्वेषा नात्र संशयः ॥१॥ + स्मश्चयालंकार । नौतिवाक्याभूत से समुप्त-सम्पादक
SR No.090545
Book TitleYashstilak Champoo Purva Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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