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________________ तृतीय आश्वासः २५९ आममाजमवमुदे समेनोभयतः क्षयः । एनं प्रभाधयेदम्यगंज प्रसिगजैरिक ।। ८४ ॥ हीनोऽपि सुभटानीकरतीगैरन्यैः सहाइथे। मेतष्यः क्षीपसां नो प्रेससित्वमानयत् ॥ ८ ॥ परन्तु समान शक्तिवाले शत्रु के साथ युद्ध करने से दोनों नष्ट होजाते हैं। अतः ऐसे अवसर पर विजिगीषु राजा को समान शक्तिशाली शत्रुभूत राजा के लिए दूसरे मित्रभून राजाओं की सहायता से उसप्रकार वाँध लेना चाहिए जिसप्रकार हाथी को दूसरे हाथियों द्वारा पकड़वाकर बाँध दिया जाता है। भावार्थ-प्रस्तुत नीतिकार' ने समान शक्तिवाले शत्रुभूतराजा के साथ युद्ध करने के विषय में कहा है कि 'समान शक्तिवालों का परस्पर युद्ध होने से दोनों का मरण निश्रित रहता है और विजय प्राप्ति संदिग्ध रहती है। क्योंकि यदि कञ्चे घड़े परस्पर एक दूसरे से ताडित किये जावें तो दोनों नष्ट होजाते है॥१॥ भागुरि विद्वान ने भी उक्त पृष्टान्त देते हुए समान बलवानों को युद्ध करने का निषेध किया है। प्रकरण में उक्त मंत्री ने यशोधर महाराज के प्रति समान शक्तिशाली शत्रुभूत राजा के साथ युद्ध करने से उत्पन्न होनेवाली हानि बताते हुए उसके प्रति विजिगीषु का कर्तव्य बताया है।४।। विजिगीषु राजा को शत्रभूत राजा के योद्धाओं का समह, जो कि हीन ( थोडी) या अधिक संख्यावाला है, अपने दूसरे सीक्ष्ण (हिंसक ) योद्धाओं द्वारा युद्ध भूमि पर नष्ट कर देना चाहिए। यदि विजिगीषु के उक्त उपाय द्वारा वह नष्ट न किया जासके तो उसे राजनैतिक दाव-पेषों द्वारा अपना सेवक बना लेना चाहिए ।। ८५ ।। हे राजन् ! मैं ( विजिगीषु ) महान हूँ और शत्रु हीन है, अतः यह मेरा क्या कर सकता है ? इसप्रकार की चिन्ता (विचार) छोड़िए। क्योंकि तेजम्यी लघु होनेपर भी महान शत्रु को परास्त कर सकता है, इसका समर्थक उदाहरण यह है कि तेजस्वी सिंह शावक (शेर का बचा ) श्रेष्ठ हाथी की शिकार (मृत्यु) कर देता है। भावार्थ---इसी नीतिकार ने कहा है कि जो विजिगीषु राजा अपने जीवन की अभिलाषा नहीं करता ( मृत्यु से भी नहीं डरता) उसकी वीरता का वेग उसे शत्रु से युद्ध करने के लिए उसप्रचार प्रेरित करता है जिसप्रकार सिंह-शायक लघु होने पर भी वीरता से प्रेरित हुमा श्रेष्ठ हाथी को मार देता है। नारद' विद्वान् ने भी मृत्यु से डरनेवालों को कायर और न डरनेवालों को वीर तथा युद्ध में विजयश्री प्राप्त करनेवाले कहा है। जैमिनि विद्वान् का उद्धरण भी सिंहशावक के दृष्टान्त द्वारा ऐसे विजिगीषु की, जो कि लघु होने पर भी वीरता युक्त है, महान शत्रु पर होनेपाली विजयश्री का समर्थन करता है. ॥१॥ १. तथा च सोमदेवसूरिः-समस्य समेन सह विप्रहे निचितं मरणं जये च सन्देहः, आम हि पात्रमामैनाभिहतमुभयतः भयं करोति ॥१॥ २. तथा च भागरि:-समेनापि न योडव्यमित्युवाच बृहस्पतिः । अन्योन्याहतिमा भंगो घटाभ्यां जायते यत: ॥५॥ ३. उपमालकार । ४. उपमालकार । नीति. ( भा. टी.) पृ. १९८ :युद्धसमुदेश) से संकलित-सम्पादक ५. तथा च सोमदेव मूरि :- स्वर्जीविते हि निराशस्याचार्यो भवति वीर्य वेगः ॥१॥ लघुरपि सिंहशामो हन्स्येव दम्तिनम् ॥२॥ नौतिवाक्यामृत ( भा. टी.) युद्धसमुश सूत्र ६४-६५ पृ. ३९६ ६. तथा च नारदः-न तेषो जायते वीर्य जीवितब्यस्य दायकाः । ___न मृत्योर्ये भय कुस्ते [ मीराः स्युर्जयान्विताः ] ॥१॥ ५. तथा च मिनि: यद्यपि स्याल्लघुः सिंहस्तथापि द्विपमाइवे । एवं राजापि कार्यान्यो महारि हन्ति चाधुः ॥७॥ नातिवाद मामृत ( भा. टी. ) युद्धसमुद्देश पू. ३९४ से संकरित-सम्पापक।
SR No.090545
Book TitleYashstilak Champoo Purva Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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