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________________ २३८ यशस्तिलकचम्पूकाव्ये पादयुद्धमिवेभेन भूयसा सह विप्रदः । तं संघातविघातेन साधयेकनहरितवत् ॥ ३ ॥ प्रस्तुत नीतिकार ने कहा है कि विजिगीषु यदि सर्वगुण सम्पन्न प्रचुर सैन्य व कोशशक्तिशाली है एवं उसका राज्य निष्कण्टक है तथा प्रजा-आदि का उस पर कोप नहीं है तो उसे शत्रु के साथ युद्ध करना चाहिए। अर्थात्-उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि युद्ध करने से उसके राज्य को किसी तरह की हानि तो नहीं होगी। भागुरि विद्वान् ने भी गुण-युक्त व निष्कण्टक विजिगीपु को शत्रु से युद्ध करने को लिखा है ॥शा सैन्य व कोश-आदि शक्ति से क्षीण हुए विजिगीपु को उस शत्रुराजा के प्रति आत्मसमर्पण कर देना चाहिए, जो ब्यसनी नहीं है, ऐसा करने से निर्वल यिजिगीषु उसप्रकार शक्तिशाली होजाता है जिसप्रकार श्रीक तन्तुओं के आश्य सेसी मजबूत हो जाती है। गुरु ने भी शक्ति हीन राजा को शक्तिशाली शत्रु के प्रति आत्मसमर्पण करना बताया हैं ||शा प्रकरण में उक्त मंत्री यशोधर महाराज के प्रति विजिगीषु राजा की उक्त उदय, समता व हानि इन तीन अवस्थाओं का निरूपण करके शुरु की उदय अवस्था में युद्ध करने को कहता है और दूसरी व तीसरी अवस्था में युद्ध करने का निषेध करता है | हे राजन ! प्रचुर ( अधिक ) सैन्यशक्ति-शाली शत्रुभूत राजा के साथ युद्ध करने से होनशक्तिवाले विजिगीषु राजा की उसप्रकार हानि होती है जिसप्रकार हाथी के साथ युद्ध करने से पैदल सैनिक की हानि होती है। अर्थात्-जिसप्रकार हाथी के साथ युद्ध करनेवाला पैदल सैनिक उसके द्वारा मार दिया जाता है उसीप्रकार हीन शक्तिधाला विजिगीषु भी प्रचुर सैन्यशाली शत्रु के साथ युद्ध करता हुआ मार दिया जाता है, इसलिए विजिगीषु को अपने सैन्य-समूह का संगठन करके इस सैन्य द्वारा महान् शक्तिशाली शत्रु का घात करते हुए उसे उसप्रकार जीतना चाहिए जिसप्रकार अकेला जंगली हाथी बहुत से हाथियों द्वारा या पैदल सैनिकों द्वारा वश में कर लिया जाता है। भावार्थ-प्रस्तुत नीतिकार ने कहा है कि जिसप्रकार पदाति--पैदल-सैनिक हाथी के साथ युद्ध करने से नष्ट होजाते हैं उसीप्रकार हीन शक्तिवाला विजिगीषु भी अपने से अधिक शक्तिशाली शत्रु के साथ युद्ध करने से नष्ट होजाता है ।। १ । भारद्वाज* विद्वान के उद्धरण द्वारा भी उक्त बात का समर्थन होता है ।। १॥ प्रकरण में उक्त मंत्री ने यशोधर महाराज के उक्त थात कही है। ८३ ॥ हे राजन् ! समान शक्तिवाले शत्रुभूत राजा के साथ युद्ध करने पर विजिगीपु और शत्रु ये दोनों उसप्रकार नए होते है जिसप्रकार कच्चे मिट्टी के घड़े से कडा मिट्टी का घड़ा ताडित किये जाने पर दोनों नष्ट होजाते हैं। अभिप्राय यह है कि यदि पक्के घड़े के साथ कथा घड़ा ताड़ित किया जावे तो कहा घड़ा ही फूटता है, इससे हीन शक्तिवाले शत्रु के साथ युद्ध करने से विजिगीषु को विजयश्री प्राप्त होती है १. तथा च सोमदेवसूरि:—गुणातिशययुक्तो याचाद्यदि न सन्ति राष्ट्रकण्टका मध्ये न भवति पश्चारक्रोधः ॥१॥ २. तथा च भागुरि:-गुणयुक्तोऽपि भूपालोऽपि मायाद्विद्विपोपरि ? यद्यतेन हि राष्ट्रस्य बहवः शवोऽपरे ॥१॥ ३. तथा च सोमदेवसूरि:-रज्जवलनमिय शक्तिहीनः संश्रयं कुर्याद्यदि न भवति परेषामा मिषम् ॥१॥ ४. तथा च गुरु: स्यायदा शक्तिहीनस्तु विजिगीषुईि वैरिणः । संश्रयीत तदा चान्यं बलाय व्यसनच्युतात् ॥१॥ ५. जाति-अलङ्कार । नौतिवाक्यागत (भाषार्टीफा-समेत) पृ. ३७५.३७६ से समुद्भुत-सम्पादक तथा च सोमदेवसूरि:- ज्यायसा सह विग्रहो हस्तिन्य पदातिबुद्धभिव ॥१॥ ५. तया च भारद्वाजः-हस्तिना सह संग्रामः पदातीना क्षयावहः । तथा बलवता नूनं बुधलस्य क्षयावहः ॥१५॥ ८. उपमालबार । नौतिषाक्यामृत ( भा. टी.) पू. ३९८ से संकलित-सम्पादक
SR No.090545
Book TitleYashstilak Champoo Purva Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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