________________
पराविकपम्पूचम्ये विरिशितानि, मा प्रविमानविकतमनीः पुरुषः, समाजमर्सवाममात्मभूमिकायाम् , मा कम मियः प्रचल्योल्पकार
मा, श्वस पाप मनोमटला, मा अरुत पारिप्लवप्नुवानिमानिन्नियहवान् , केवलं किं प्रक्ष्यसि, प्रियापति, मिमाथिति, किंवा पक्ष्यति विभियोगवात देव इत्येकायनमनो निरीक्ष देवस्य पवन इसीतस्तताहीकमा बीचमानानुसेवकम्, अतिविधीयमानागम्तुम, अखिललोकलोचनेन्दीवरानन्दचन्द्रमसं लक्ष्मीविलासतामरसं माम पुण्यकामागोनिटीकमानानास पात्यामाद मिशीतबारदेशः स्वयमेव पथादेशरूपमनुत्पिालानाः पपलता विशेषरूप से दूर करो। भाप लोग इन इन्द्रिय ( स्पर्शन, रसना, प्राण, चक्षु व पोत्र इन शानेन्द्रियों प वाणी, हस्त, पाद-आदि कर्मेन्द्रियों ) रूपी घोड़ों को चञ्चलता से उछनेवाले मत करो।" सेवक लोग कहते
-कि यदि हम लोग उक्त वाव न करें तो क्या करें? इस प्रश्न के समाधान में द्वारपाल उन्हें यह शिक्षा देते थे कि आप लोग केवल यशोधर महाराज का मुख एकाग्रचित्त होते हुए देखो कि प्रस्तुत राजाधिराज कौन से अधिकार-समूह के बारे में प्रश्न करेंगे? और कौन सा अधिकार-समूह कहेंगे? और क्या आशा देंगे? एवं कौन से मधिभर की सृष्टि करेंगे ?" जहाँपर आगन्तुक लोग अन्वेषण किए जारहे या देखे जारहे थे। जो समस्त लोगों के नेवरूप नील कमलों को प्रफुल्लित (आनन्दित) करने के लिए चन्द्रमा-सरीखा था एवं 'लक्ष्मीविलास बानरस' नामयाले जहाँपर श्रेष्ठ विन्मण्डली द्वारा स्मृतिशास्त्रों (धर्मशास्त्रों) के प्रवचन किये जारहे थे।
अथानन्तर ( उक्तप्रकार के राज-सभामण्डप में प्रविष्ट होने के पश्चात् ) निराकुल पित्तशाशी मैने मनुष्यों त्र प्रवेश निषिद्ध न करते हुए ऐसे न्यायाधिकारी पुरुषों के साथ, जो कि समस्त चौदह प्रघर की विद्याओं की प्रवृत्ति के शाता थे, जिनका समस्त मागों का अनुसरण करनेवालों का न्याय (व्यवहार) संबंधी सन्देह नष्ट हो चुका था, जिन्होंने अनेक आचारों (व्यवहारों ) के विचारक वृद्ध विद्वानों को
१. तदुक्तं-'पानि चतुर्वेदा मीमांसा न्यायविस्तरः । पर्मशास्त्र पुरापं च विद्याश्चैताश्चतुर्दशा ॥१॥ शिक्षा इत्यो व्याकरणं ज्योतिष छन्दो निरुकं चेति वेदानां अगानि षट् ।
अर्थात्-चार वेद है,-१ ऋग्वेद २ यजुर्वेद ३ सामवेद व ४ अथर्ववेद । उक्त वेदों के निम्न प्रकार ६ मार है। क्योरि निम्न प्रकार : अडों के शानसे उस चारों प्रकार के वेदों का ज्ञान हो सकता है। -शिक्षा, २-कल्प, व्याकरण, 1. निस्क, ५-छन्द और ६-ज्योतिष ।
1. शिक्षा-स्वर और ध्यानादि वर्गों का शुद्ध उच्चारण और शुद्ध लेखन को बनानेपाली विद्या को रहते है। २. कल्प-धार्मिक आधार विचार मा क्रियाकाण्डों-गर्माधान-आदि संस्कारों के निरूपण करनेवाले शान को 'इल्प' कहते हैं। ३. व्यारक-जिससे भाषा का शुद्ध लिखना, पढ़ना और बोलने का बोध हो। ४. निश्क-चौगिक, साद और योगदि शब्दों के प्रति में प्रत्यय आदि का विश्लेषण करके प्राकरमिक रम्य पर्यायात्मक या अनेक पर्मात्मक पदार्य के निरूपण करने वाले शाहको निस्क' कहते हैं। ५. छन्द-पदों-वर्णकृत्त और मात्रारत छन्दों के लक्ष्य समान के निर्देश करने वाले शाम को 'छन्द शास' कहते हैं। ६. ज्योतिष-ग्रहों की पति भौर उससे विश्व के ऊपर होने वाले एम व अशुभ फलों को तथा प्रत्येक कार्य के सम्पादन के योग्य शुभ समय को बनाने वाली विद्या को 'ज्योतिर्षिया' कहते हैं इसप्रकार दे वेदार।
इतिहास, पुराण, मीमांसा (ध्वनिम्न व मौलिक सिद्धान्त पोषक वाक्यों पर शास्त्राविण्य युक्तियों धरा बिचार घरके समीकरण करने वाली विद्या), न्याय ( प्रमाण व नयों का विवेचन करनेवाला शास्त्र) और धर्मशाब (पहिया में के पूर्ण तथा व्यपहारिक रूप को विवेचन करनेवाला शास) तक प्रकार से १४ प्रकार की रियाएँ है-नौतिवायचायत पु. १२. से स्मुस-सम्पादक