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शलिलामपूत्रव्ये पनाम्पसमात्यः पुरकरी ल्पामः कौस्तुमो वक्ष्मीरसासा गणरच सुमया साधु घुभाना सुने । कागो भवनोएकमरिचरित रासेष्यमान पनस्तबलावरपारि मबनविधौ भूपात भपक्षे ॥१०॥ मजाललोकमुनिमानसकसममाणो कार्य मोति सहदेव कृताभिषेकन् । प्रायशिवाश्रमसापसानो सेव्यं च यत्तत्र सक्षम मुदेऽमा गाइए ॥११॥ पानीमाामिनासतो मधवाविधातुबमा सेव्यन्ते प्रतिवासा सुगावाः पुण्यपानापमाः समन्ते शशिमौलिना शिरसा स्वम्म बनायेव पास्ता र स्वमाल सन्तु महतो भागीरपीसमवाः ॥२१॥ यमुनानमागोदा चन्द्रभागासरस्वती । सरयूसिन्धुशोणोल्यै सौदेवोऽभिषिच्यताम् ॥२१३॥ इति उलोनिविलासा तालिबाग्मध्वनावसरवृत्तान्यायिन् , उहोखालकनीपिमिविचलितापाडोल्पलभेणिभिः प्रक्षुभ्यरचयाकमिथुमैन्यालोलनाभीहवैः । बारसीमिवहः सतूर्यनिन यासामिपेकोत्सवः कार्म स्कारितकाशिदेवापुतिनैः सिन्धुप्राईरिव ॥१४॥
वह प्रसिद्ध क्षीरसागर का ऐसा जल, जिसमें से चन्द्रमा, ऐरावत हाथी. कल्पवृक्ष, कौस्तुभमणि. लक्ष्मी. रम्भा, तिलोत्तमा, उर्वशी और मेनका-बादि स्वर्ग की चप्सरा-समूह विजनों के प्रमुदित करने के हेतु असूत्र के साथ-साथ उत्पन हुआ था एवं जो मनुष्य लोक का उपकार करनेबने मेघों द्वारा भास्वादन किया गया है, इस माङ्गलिक खानविधि में धापका कल्याणकारक होवे । भावार्थ-महाकवि कालिदास' ने भी क्षीरसागर सम्बन्धी जलपूर के विषय में ललित काव्य-रचना-द्वास प्रस्तुत विषय का निरूपण किया है ।। २१० ।। यह प्रसिद्ध ऐसा गङ्गा-जल आपके हनिमित्त होवे, जो एक बार भी सान विधि में प्रयुक्त किया हुआ स्वर्ग के मरीचि व अत्रि-आदि ऋषियों के मानसिक पापसमूह क्षीण ( नष्ट ) करता है एवं जो हिमालय की शिखर पर स्थित हुए उपस्त्रियों के स्नान घ पानादि के योग्य है ॥२११ ॥ वह ऐसा भागीरथी-(गंगगा) उत्पन्न जल-पूर, आपके कान-निमित्त होवे। जो गंगा के वटवर्ती आममौ में निवास करनेवाले मुनि-समूह व देवता गणों द्वारा प्रतिदिन सेवन किया जाता है व सन्ध्या वन्दन-विधि में उद्रिक ( समर्थ ) है । जो पुण्यरूप क्रय (खरीदने योग्य ) वस्तु का मार्ग (वाजार की दुकान ) सरीखा है। अर्थान-जिसप्रकार हमार्ग से ऋय वस्तु खरीदी जाती है एसीप्रकार जिस गंगा-जल से पुण्यरूप क्रय वस्तु खरीदी जाती है और जो ऐसा प्रतीत हो रहा है मानों-आपके सानिमित्त ही श्रीमहादेव ने जिसे अपने मस्तक पर स्थापित किया है ।। २१२॥ यमुना, नर्मवा, गोदा, चन्द्रभागा, सरस्वती, सरयू, सिन्धु मौर. शोण ( तालाव-विशेष) इन नदियों प वालाप से उत्पन्न हुए जलपूर द्वारा श्रीयशोधर महाराज मान कराए जावें ॥ २१३ ॥
___ इसप्रकार मेरा विवाहदीक्षाभिषेक व राज्याभिषेक का सत्सब ऐसी घेश्या-श्रेणियों द्वारा अनेक वादिन ध्वनिपूर्वक सम्पन्न हुआ, जो विशेष चञ्चल केशपाशरूपी तरङ्गों से ज्याप्त थीं। जिनके नेत्रप्रान्तरूपी कमल-समूह चन्चलता अथवा नानाप्रकार की चेष्टाओं से शोभायमान थे। जिनके कुच (स्तन) रूपी चक्रवाक ( चकवा-चवी ) युगल कम्पित हो रहे थे। जिनके नाभिरूपी वियर विशेष
'चान्द्रभागा' । ख.। .. सपा धोक्तं कालिवासेन महाकविना'लक्ष्मीकस्तुभशारिजातकमुराधन्वन्तरिश्चन्यमा गावः कामवुधाः सुरेश्वरगंशी रम्मादिदेवाहनाः।
अश्वः सप्तमसः सुपा हरिधनुः शंखो विषं चाम्बुधे रत्नानीति चतुर्दश प्रतिदिन कुर्वन्तु वो मंगलम् ॥ १॥ . २. समुच्चयालंकार । ३. अतिशयालंकार । ४. उत्प्रेक्षालंकार । ५. समुच्चयाधर ।