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________________ kat. द्वितीय भाभासः समागमाभरपदामोत्तर उत्तरानक्षत्रम्, प्रचण्डदोर्दपरभण्डनकादियानवयमनसंपादितजगत्प्रयोहक वर्षको योगा; भावार्थ-ज्योतिष-शास' में प्रतिपदा से लेकर क्रमशः नन्दा, भद्रा, जया, रिता और पूर्णा ये तिथियों की संज्ञाएँ है । अर्थात्-कृष्ण पक्ष व शुक्लपक्ष की प्रतिपदा ( एकम), षष्ठी (ठ) और एकादशी म्यारस ) इन तीन विथियों की 'नन्दा' संझा और द्वितीया, सप्तमी और द्वादशी (पारस ) की 'भद्रा संक्षा है एवं तृतीया, अष्टमी और त्रयोदशी (तेरस) की 'जया' संशा और चतुर्थी, नवमी व चतुर्दशी को 'रिका' विधि कहते है एवं पंचमी, दशमी और अमावस्या अथवा पूर्णिमा की 'पूर्ण' संशा है। इसीप्रकार सिखियोग (शुभ कार्य में शुभ देनेपाली) तिथियाँ भी निम्नप्रकार बार के अनुफम से कही गई है। अर्थातशुक्रवार को नन्दा, बुधवार को भद्रा, शनिवार को रिक्ता, मंगलवार को जया और बृहस्पतिवार को पूर्णा सहक तिथिएँ सिद्धियोग-शुभकार्य में शुभ दायक-कही गई हैं। निष्कर्ष-उक्त निरूपण से 'पूर्णासिद्धियोग' सूचित किया गया है। . पूरा राक्षामों की सोच अभिनियों से अलाभूषणों से विभूषित करने में और उन्हें अभयदान देने में उत्तर (श्रेष्ठ) हे राजन् ! आज उत्तरा ( 'उत्तराभाद्रपद' ) नाम का नक्षत्र है। भाषार्थ-ज्योतिषशास्त्र के विधानों ने कहा है कि कमनीय कन्या के साथ पाणिग्रहण करने में वेधरहित मृगशिय, मघा, स्वाति, तीनों उसरा ( खसरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा और उत्तरा भाद्रपदा), मूल, अनुराधा, हस्त, रेखवी और रोहिणी ये नक्षत्र शुभ-सूचक है। निष्कर्ष-प्रत प्रमाण से पूर्ण विधि का सिद्धियोग ष 'उत्तराभाद्रपद नक्षत्र होने के फलस्वरूप आज का मुहूर्त विशेष महत्वपूर्ण ( विवाह व राज्यपट्टोपयोगी ) व प्रस्तुत पोनों महोत्सवों की निर्विघ्न पूर्ण सिद्धि प्रकट कर रहा है। ऐसे शवरूपी चैत्यों का, जो कि शक्तिशाली भुजदण्डों द्वारा किये जानेवाले युद्ध की खुजलीवाले है, वमन ( भा) करने से तीन लोक को हर्षण (आनन्दित ) करनेवाले ऐसे हे राजन् ! आज 'दर्पण' नाम का चौदहवाँ शुभ योग है। भावार्थ-ज्यौतिषविद्या-विशारदों ने विष्कम्भ, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, सोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शूल, गह, वृद्धि, ध्रुव, व्याघाव, 'हर्षेण' पका, सिसि, व्यतीपान, वरीयान्, परिघ, शिव, सिद्धि, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्मा, ऐन्द्र और वैधृति, इसप्रकार २७ योग म्मने हैं, उनमें से 'हर्षण' योग १४ वाँ है, जो कि प्रस्तुत विवाहोत्सष व राज्यपट्टाभिषेक उत्सव में विशेष शुभसूचक है। निष्कर्ष-योग' अपने नामानुसार फलदायक होते हैं, अतः 'हर्षण नामका चौवहाँ थोग आपको दोनों उत्सवों में विशेष हर्ष-प्रानन्द-प्रदान करेगा। क्षत्रिय राजपुत्रों की ऐसी चरित्र१.तथा चोत्साम्प दवकहलायक-नन्दा भट्टा जया रिता पूर्णा च तिथयः क्रमात् । पारश्रयं समावर्य गणयेत् प्रतिपन्मुखाः ॥१॥ शुके नन्दा पुर्वे भरा शनी रिका कुनै जया । गुरौ पूर्ण तिथिशैया सिद्धियोगाः शुभे शुभाः ॥२॥ २. तथा चोक्तम्-कन्याविवाहे मिषेधो मधास्वात्युत्तरामये 1 मूलानुराधाहस्तेषु रेषतौरोहिणीभूगे ॥१॥ सं० टी० पृ. ३१८ से संकलित-सम्पादक ३-तपाचोकम्-योगाः सप्तविंशतिर्भवन्ति । ते के 'विष्कम्भः प्रीतिरायुष्मान् सौभाग्यः शोमनस्तथा । अतिगण्डः सुकर्मा च मृतिः शूलं तथैव च ॥ १ ॥ गण्डो घधिधुवचेव म्याघातो हर्षणस्तथा। बर: सिद्धिय॑तीपातो वरीयान परिवः शिवः ॥ २ ॥ सिदिः साध्यः शुभः शुलो ब्रह्मा ऐन्द्रोग्य वैधृतिः, ॥३॥ संस्कृत टीका पृष्ठ ३५८ से संगृहीत–सम्पादक --सपा धोक्तम्-'सप्तविंशस्ति योगास्ते स्वनामफलदायकाः, ॥1॥ होगचक से संकलित-सम्पादक
SR No.090545
Book TitleYashstilak Champoo Purva Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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