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यशस्तिलक चम्पूकाव्ये
सति साम प्रासादसंपादनं प्रतिमानिवेशनं च युगपत्कुत इति बधा—यथा समावश्विदारकर्मणः पबन्धोत्सवः, कृतपट्टबन्धोत्सवस्य वा दारकर्म, सत्यनुगुणमायुक्ते हाने दारकर्म पथम्पोत्सवं च सह समाचरेदित्यत्र बीचारयोरिव न करिपूर्वापरकमनियमः । फोहस्तिनीफलपुष्पयोरिव सहमाने या न विरोधः कोऽपि समस्ति । ततः सूक्तामुभयोत्सवखानविशुद्धिः । तथाहि-- सुकविकाव्यकयाविनोददोहदमाघ माघस्तावदयं मासः सपत्नसंतान सरः शोषचे शुचिः पक्षः, दुबरवैरिकुल कामिनीवैभन्पदीक्षागुरो गुर्खारः, अनवरत बसु विश्राणनसं तर्षितसमवासिथे तिथिः पचमी, प्रणसभूपाखाङ्गनाशृङ्गारनामका ज्योतिषी विद्वान है प्रधान जिसमें ऐसे ज्योतिषवेत्ता विद्वन्मण्डल ने आकर मुझ से निम्नप्रकार निवेदन करते हुए कहा कि हे राजन्! आपके विवाहोत्सव और राज्यपट्टाभिषेक का उत्सव - समय निकटवर्ती है । हे राजन! देवमन्दिर बनवाकर मूर्ति स्थापित करनी चाहिए ? अथवा मूर्ति स्थापित करके देवमन्दिर बनवाना चाहिए ? जिसप्रकार शक्ति (विशेष धन आदि की योग्यता ) होने पर उक्त दोनों शुभ कार्यों (मन्दिर निर्माण व मूर्ति-स्थापन ) का एक साथ करना युक्ति-संगत है उसीप्रकार जिसका विवाहसंस्कार किया गया है ऐसे राजा का राज्यपट्टाभिषेक संबंधी उत्सव करना चाहिए ? अथवा जिसका राज्यपट्टाभिषेक संबंधी उत्सव किया जाचुका है ऐसे राजा का विवाहोत्सव करना चाहिए ? यहाँपर भी यही न्याय ( उचित ) है कि यदि दोनों महोत्सवों का लग्न' ( शुभ मुहूर्त, अथवा राशियों का उदय ) अनुकूल (श्रेष्ठ) है तो विवाहोत्सव और राज्यपट्टाभिषेक संबंधी उत्सव इन दोनों को एक साथ करना युक्तिसंगत है । हे राजन् ! जिसप्रकार बीज और अकुर इन दोनों में पहिले और पीछे होने का क्रम-नियम पाया जाता है । अर्थात् – पहिले बीज होता है और पश्चात् अकुर होता है । विवाहोत्सव और राज्यपट्टाभिषेक संबंधी उत्सव इन दोनों में पहिले और पीछे होने का कोई क्रम-नियम नहीं होता । अर्थात्-लग्न अनुकूल होनेपर दोनों एकसाथ होसकते हैं एवं जिसप्रकार कूष्मारडी ( वृतविशेष) के पुष्प और फलों के एकसाथ उत्पन्न होने में विरोध पाया जाता है । अर्थात्जिसप्रकार कूष्माण्ड आदि वृक्षों में पहिले पुष्प होते हैं पश्चात् फल होते हैं, दोनों पुष्प व फलों की उत्पति बिरुद्ध होने के कारण एकसाथ नहीं होसकती उसप्रकार हे राजन् ! यहाँपर विवाहोत्सव और राज्यपट्टाभिषेक संबंधी उत्सव इन दोनों को एकसाथ होने में किसीप्रकार का विरोध नहीं पाया जाता । अर्थात् अनुकूल
उस प्रकार
(शुद्ध भुहूर्द) में ये दोनों कार्य एक साथ किये जासकते हैं। इसलिए आप विवाहोत्सव और राज्यपट्टाभिषेक-उत्सव इन दोनों उत्सवों की लग्न-विशुद्धि ( मुहूर्त-विशुद्धि) निम्नप्रकार सुनिए
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अथानन्तर उक्त ज्योतिषज्ञ विद्वन्मण्दल यशोधर महाराज से दोनों उत्सव ( विवाहोत्सव व राज्यपट्टाभिषेक संबंधी उत्सव ) का शुद्ध मुहूर्त निम्नप्रकार निवेदन करता है
(माधव) सदृश अच्छे कवियों की काव्यकथा की क्रीड़ा मनोरथ रखनेवाले हे राजन् ! अनुक्रम से इस समय माघ का महीना है। शत्रु-समूह रूपी खालाव को निर्जल करने में शुचि ( आषाढ़ मास ) सरीखे हे राजन् ! इस समय शुचि ( शुक्लपक्ष ) है । दुःख से जीतने के लिए अशक्य ( महाप्रतापी ) शत्रु समूह की कमनीय कामिनियों के वैधव्य ( विधवा होना ) व्रत के प्रहण करने में गुरु का कार्य करनेवाले हे राजन् ! आज गुरु ( बृहस्पतिवार) नाम का शुभ दिन है । निरन्तर सुवर्ण व रत्नादि धन को दान दृष्टि द्वारा समस्त अतिथियों ( दानपात्रों ) को अच्छी तरह सन्तुष्ट करनेवाले हे राजन् ! आज यी तिथि है।
१. 'राशीनामुदयो रूमम्' इति वचनात् सं० टी० ० ३१७ से संकलित - सम्पादक