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ऐतिहासिक व पौराणिक दृष्टान्तमालाएँ- इसके तृतीय आश्वास (पृ० २८५-२८६) में उक्त विषय ब उल्लेख है। इसी प्रकार इसके चतुर्थ आश्वास (पृ. १५३ ) की ऐतिहासिक दृष्टान्तमाला सुनिए-'जैसे यवन देश में स्वेच्छाचारिणी 'मणिकुण्डला' रानी ने अपने पुत्र के राज्य-हेतु विप-दृषित मध के कुरले से 'अज' राजा को मार डाला और सूरसेन ( मथुरा ) में 'वसन्तमती' ने विष-दूषित लाक्षारस से रेंगे हुए अधरों मे सुरतविलास' नामके राजा को मार डाला-इत्यादि ।
अनोखी व वेजोड़ काव्यकला- इस विषय में तो यह प्रसिद्ध ही है। क्योंकि साहित्यकार धाचार्यों ने कहा है। निर्दोष ( दुःश्रवत्व-श्रादि दोषों से शून्य ।, गुगसम्पन्न ( औदार्य-श्रादि १० काव्यगुणों से युक्त ) तथा प्रायः सालंकार (उपमा-आदि अलंकारों से युक्त ) शब्द व अर्थ को उसम काव्य कहते हैं। अथवा शृङ्गार-श्रादि रसों की आत्मावाले वाक्य (पदसमूह ) का काव्य कहते है। उक्त प्रकार के लक्षण प्रस्तुत यशस्तिलक में वर्तमान है। इसके सिवाय 'ध्वन्यते ऽभिव्यज्यते चमत्कारालिङ्गितो भावोऽस्मिमिति ध्वानः। अथात-जहाँपर चमत्कारालिङ्गित पदार्थ व्यअनाशक्ति द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है, उसे ध्वनि कहत हैं। शासकारों ने श्यन्य काव्य को सर्वश्रेष्ठ कहा है। अतः प्रस्तुत यशस्तिलक के अनेक स्थलों पर ( उदाहरणार्थ ( प्रथम आश्वास पृ. ४५ (गय)-४७ । ध्यन्य काव्य वर्तमान है, जो कि इसकी उत्तमता का प्रतीक है एवं इसके अनेक गधों व पद्यों में भृङ्गार, वीर, करुण व हास्य-आदि रस वर्तमान हैं। उदाहरणार्थ आश्वास दूसरे में ( श्लोक नं. २२०) का पद्य शृङ्गार रस प्रधान है-इत्यादि । ज्योतिषशास्त्र--आश्वास २ ५ पृ. १८२-२८२) में ज्योतिषशास्त्र का निरूपण है, इसके सिवाय आश्वास चतुर्थ में, जो कि मुद्रित नहीं है, कहा है - जय यशोधर महाराज की माता ने नास्तिक दर्शन का आश्रय लेकर उनके समक्ष इस जीव । पूर्व जन्म व भविन्यजन्म का अभाव सिद्ध किया तब यशोधरमहाराज ज्योतिषशास्त्र के आधार से जीव का पूर्वजन्म व भविष्यजन्म सिद्ध करते हैं कि हे माता! जब इस जाव का पूर्वजन्म है तभ. निम्नप्रकार आर्याच्छन्द जन्मपत्रिका के आरंभ में लिखा जाता है-'इस जीव ने पूर्वजन्म में जो पुण्य व पाप कर्म उपार्जित किये हैं, भविष्य जन्म में उस कर्म के उदय को यह ज्योतिषशास्त्र उसप्रकार प्रकट करता है जिसप्रकार दीपक अन्धकार में वर्तमान घट-पटादि वस्तुओं को प्रकट ( प्रकाशित ) करता है। अर्थात्-जब पूर्वजन्म का सद्भाव है तभी ज्योतिषशास्त्र उत्तर जन्म का स्वरूप प्रकट करता है, इससे जाना जाता है कि गर्भ से लेकर मरणपर्यन्त ही जीव नहीं है, अपितु गर्भ से पूर्व व मरण के बाद भी है-इत्यादि'। अप्रयुक्त क्लिष्टतम शब्दनिघण्टु-प्रन्थ के इस विषय को श्री श्रदय माननीय डा. वासुदेवशरण' जी अग्रवाल अध्यक्ष-कला व पुरातत्वयिभाग हिन्दविश्वविद्यालय काशी ने अपने विस्तृत व साङ्गोपाङ्ग 'प्राक्कथन में विशेप स्पष्ट कर दिया है वेद पुराग य स्मृतिशास्त्र-इसके चतुर्थ श्रावास में इसका निरूपण है, परन्तु विस्तार-यश 'उल्लेख नहीं किया जा सकता। धर्मशास्त्रद्वितीय आश्वास । पृ. १४१-१५५) में धैराग्यजनक १२ भावनाओं का निरूपण है। चतुर्थ आश्वास में
५. सथा च काव्यप्रकाशकारः तददोषी रब्दायी सगुणादनाउकुती पुनः क्यापि । २. तथा च विश्वनाथ कविराज:- वाश रसास्मक काव्यम् । साहित्यदर्पण से सकलित-सम्पादक
३. तथा च विश्वनाथ कविराजः - वाकयातिशायिनि व्यग्ये वापरतन् काव्यमुत्तमम् ॥१॥ साहित्यदर्पण (४ परिच्छेद ) से संकलित
४. यदुपचितमन्यजन्मनि शुभाशुभं तस्य कर्मणः प्रापिन् ।
न्यायति शाब मेसत्तमसि द्रव्याधि दीप इव । आ० ४ (. ९३)