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यशस्तिलकचम्पूकाव्ये होनेरायणय, सम प्रकारेण, देशेन साधारणम्, भद्रं जन्मना, संस्थानेन समसंबन्नम, उत्सेधामामपरिणाहै। सामसुविभक्तपर्वलायम् , मायुपा द्वादशापि दशा भुक्षामम् , अन स्वायतच्यायतविम् , भाशंसनीय बर्वप्रभाछायासंपत्तिभिः, मारमचारशीशोमादित, प्रासं प्रमाणपशमाभ्याम् ,
यह ऐरावण नामक सर्वश्रेष्ट इस्तिफुल का है एवं पर्वत और नदियों-आदि के मध्य में इसका गमन सम (अषकसौधा) है, अतः समप्रचार गुण की अपेक्षा से भी श्रेष्ठ है " ।। । इसीप्रकार हे राजन् ! यह समस्त देशों में साधारणगति ( न रुकनेवाली गति) से संचार करता है, श्रवः देश की अपेक्षा से यह साधारण गुणाला है। अर्थात्-विद्वानों ने कहा है कि जो, जलप्राय देशों में और निर्जल देशों में वेरोक गति से संचार करता है, उसे साधारण गुणवाना हाथी कहते हैं। अथवा इसे सभी देश रुचते हैं, अतः साधारण गुण-शाली है। हे राजन! भद्रजाति होने के फलस्वरूप यह श्रेष्ठ है। समचतुरस्त्रसंस्थान वाला इसका शरीर सुसम्बद्ध ( सुडोल)है। अर्थात-इसके शरीर का आकार ऊपर, नीचे और बीच में समानभागरूप-मुडोल-है। एवं उच्चता (ऊँचाई), लम्बाई ५ विशालता न गणों से इसके समस्त शरीर की आकृति समान रीति से-सुरोलरूप से अच्छी तरह विभक्त की गई है. अतः सुडोल गुण के कारण से भो इसमें विशेषता है। यह, दश वर्षवाली एक अवस्था ऐसी-ऐसी दो अवस्थाएँ भोगनेवाला है। अर्थात्- इसकी भायु वीस वर्ष की है, अतः इसमें विशेपता है। इसीप्रकार इसके शरीर की त्वचा वी कान्ति ऊँची-विरली वालो- हो रक्षित है। प्रति..-१३ पान हाथी है, जिसके फलस्वरूप इसकी त्वदाओं पर ऊँची ध तिरछी सलें नहीं हैं। अथवा इसका शरीर दीर्ध व पृथु है। इसीप्रकार यह
रीरिक श्याम-श्रादि वर्ण, कान्ति व छायारूप संपत्तियों से प्रशस्त है और यह, शारीरिक प्राचार, शील (मानसिक प्रकृति), शोभा ( शारीरिक वृद्धि की विशेषता ) और अर्थवेदिता ( पदार्थशान ) इन गुणों से कल्याणकारक-शुभ सूचक है एवं यह लक्षणों (जन्म से उत्पन्न हुए शारीरिक शुम चिन्हों)
और व्यञ्जनों ( जन्म के बाद प्रकट हुए शारीरिक चिन्हों) से अलङ्कत होने के फलस्वरूप प्रशस्त (श्रेष्ट) है। अथवा सुन्दर शुण्डादण्ड-आदि लक्षणों प पिन्दु व स्वस्तिकादिक व्यजनों से अनइस होने के सरयू प्रशस्त है।
१. या चोफ-कुलजातियोल्पश्चारधर्मवलायुषाम् । सत्वप्रचारसंस्थानदेशालक्षणरंहसा ॥१॥
एषां चतुर्दशानां तु सो गुणानां समाश्रयः । स रामो यागनागः त्याभूरिभूसिसमध्ये ॥२॥ अर्थात् - वह यागनाग ( सर्वश्रेष्ट हार्थी ) राजाओं के ऐश्वर्य की विशेष वृद्धि करता है, जो कि कुल, जाति, पय, रूप, चार, वर्म ( शरीर ), वल, आयु, सत्य, प्रचार, संस्थान, देश, लक्षण व रंहस इन १४ गुणों से विभूषित होता है।
२. सवा चोक--'श्वेतयों भवति स ऐरावणगडकुल उच्यते । ३. तया चो-'हरियो श्यामवर्णो वा कालो वा व्यरूवर्णकः । हरितः फुसदाभो वा कुलवर्णः समुध्यते ॥१॥
४. तथा चोक-मिश्रो पा गिरिचारी वा कनिप्राधारजानिकः । साविको भव्रजातिश्य स तस्याकादिमिः एमः ॥९॥ इत्येतेलक्षणयुतं यामनार्ग प्रचक्षते ॥' संस्कृत दीका पृ. २९५ से समुच्यास--सम्पादक
५. तदुक्तम्-'लक्षण अन्मसंबन्धमाजीवादिति निश्चितम् । पश्चायति मजेयस्तु तव्यजनमिति स्मृतम् ॥१॥ प्रणा कररपनादिक लक्षणं विन्दुस्वस्तिकादिकं व्यम्भनम् , संस्कृत टीका पू. २९२से संकलित-संपादक