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द्वितीय आश्वासः
१६३ 'भविपरितमुभाभ्यामपि भवन्भ्यामु भयमयनेविष्टः स्वामिहितप्रतिष्टः सहोलीय हे अप्याथे सेनाले देवस्थ विसापनीये. त्याचात् ।
तावुभावपि वरचनातथाच तत्र परशुरामान्वयावकाश उद्धता कुशस्तावदेवं मां व्यजिशपत्-'देव, प्रतापपर्धनसेनापतिनिदेशाम्मयोत्साहिताभिनिवेशा गुरुराजमुख्याध्यामिभचारियाशवल्पयवाद्धलिनरनारदराजपुत्रगौतमादिमहामुनिप्रणीतमवातियाधमाइसमीझमानमनःप्रचारर मतीतपरमेश्वरप्रसादासादिषवीरामृतगणाधिपत्यसत्कारा विदितनिरषयोपनिषत्स्रिपरिषदेवस्थानी किनीतियफबई सपर्याई कलिविषयाधिपतिपहिसप्रतिवर्षदेयवेवण्डमखुलीमध्ये सिन्धुरमेकमुदयगिरिनामर्क परीक्ष्य मन्मुखेनैवं विद्यापयति--
सथाहि--कलिङ्ग बनेन, हे उद्धताश! और हे शालिहोत्र ! आप दोनों, स्वामी के हित-साधन में तत्पर रहनेवाले और हस्तिविधा और अश्वविद्या के पारदर्शी विद्वान पुरुषों की सहायता से परीक्षा करके सना के प्रधान अङ्ग ऐसे सर्वश्रेष्ठ हाथी व सर्वश्रेष्ठ घोड़ा इन दोनों के विषय में प्रस्तुत यशोधर महाराज के लिए निवेदन कीजिये। प्रसङ्ग-इसप्रकार उक्त प्रतापबर्द्धन सेनापति ने उक्त कार्य सम्पन्न किया।
तत्पश्चात् उन दोनों उद्धताङ्कश (इस्तिसेना-प्रभुख) और शालिहोत्र ( अश्वसेना-प्रमुख) ने भी उक्त प्रतापर्धन सेनापति की आज्ञानुसार इस्तिथिया व अश्वविद्या के वेत्ता विद्वानों के साथ हाथी व घोहे की परीक्षा करके उनमें से परशुराम-कुल में उत्पन्न हुए उद्धताङ्कश ने मेरे ( यशोधर के ) पास आकर निम्नप्रकार निवेदन क्रिया-हे देष ! प्रतापवर्धन सेनापति की श्राजानुसार ऐसी विद्वन्मण्डली ने, कलिङ्ग देश के राजा द्वारा भेजे हुए और प्रतिवर्ष आपके लिए भेंट में देने योग्य हस्ति-समूह में से जगत्प्रसिद्ध, एक (अविधीय ) और आपकी हस्ति-सेना का मण्डन ( सर्वश्रेष्ठ) एवं पाद-प्रक्षालनरूप पूजा के योग्य ऐसे उदयगिरि नामके हाथी की परीक्षा करके मेरे मुख से आपकी सेवा में यह विज्ञापन कराया है-कहलवाया है। कसी विद्वन्मण्डली से परीक्षा करके ? जिसका परीक्षा करने का अभिप्राय, मेरे द्वारा और गुरूप्रमुख तथा राज-प्रमुख द्वारा ( धनादि देकर ) उत्साहित किया गया है। अर्थात्---उद्यम में प्राप्त कराया गया है और जिसका मानसिक व्यापार इभचारी, याज्ञवल्क्य, वाद्धलि था बाहलि, नर, नारद, राजपुत्र, एवं गौतमआदि महामुनियों द्वारा रचे हुए गज-(हाथी) परीक्षा-संबंधी शाखों के पठन-पाठन के अभ्यास-वश विशेष प्रवृत्त होरहा है, अर्थात्-विशेष उन्नतिशील है। एवं जिसने भूतपूर्व परमेश्वर ( यशोर्घमहाराज) के प्रसाद से हस्ति-शिक्षा देनेवाले वीर-समूह (विद्रान प्राप्त किये हैं। जिसको हस्तिबध द्वारा सम्मान प्राप्त हुआ है और जिसने निर्दोष उपनिषद (तदधिकृत प्रकरण-गजविद्या-संबंधी शास्त्र) का ज्ञान माल किया है।
अथ उद्धताइश ( हरितसेना प्रमुख ) मेरे समक्ष उदयगिरि नाम के प्रमुख हाथी की उन महत्वपूर्ण विशेषताओं (प्रशस्त गुण, जाति व कुल-आदि) का निम्नःपकार निरूपण करता है, जिन्हें 'प्रतापवर्द्धन सेनापति ने विद्न्मण्डली द्वारा परीक्षा कराकर मेरे प्रति (प्रस्तुत यशोधर महाराज के प्रति ) कहलवाया था ।
हे देव ! प्रतापयर्द्धन सेनापति ने निम्नप्रकार निवेदन किया है कि वह उदयगिरि नामका हाथी मन की अपेक्षा से 'कलिङ्गज' ( कलिङ्ग देश के धन में उत्पन्न हुआ) है। अर्थात्-हे राजन् ! 'माज्ञिकजा मजाः श्रेष्ठाः इति वचनात्' अर्थात् कलिङ्ग देश के वन में उत्पन्न हुए हाथी सर्वश्रेष्ठ होते हैं, ऐसा विद्वानों ने कहा है, अतः यह सर्वश्रेष्ठ है।
१. उकै च--'उत्कलानां च देशस्य दक्षिणस्यार्णवस्य च । सत्यस्य चेव विन्ध्यस्य मध्ये कालिजर्ज वनम् ॥१॥