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यशस्तिकपम्पूमध्ये मास्व सचिनसमर्थविनियोजस्तो चारविमन् तीनकिमि । भावादीमहलबालितमामसानो या न जानु दिनानिमन्तराचा ॥ १९१॥ गार्मा रुषो दुचिताचरणे को सार्थसिदिरावारिनिरणे ।
तस्मात्परापरसपाधर्मकामा सम्प नीतिपरा मवन्तु ॥ १५२ ॥ इति धर्मानुप्रेक्षा ॥ ११ ॥ मानहीन मानव का पारिन्धारण और चारित्रशून्य मानव समान एवं सम्यग्दर्शन-शून्य ( मिथ्याष्टि) केशन व पारित नहीं ( निष्फल ) है। अर्थात्-मिथ्या होने के कारण मोक्षप्राप्ति के उपाय नहीं हैं। सोमबार तलावों की भरच ( मिथ्यात्व)मान और चारित्र को पीड़ित करनेवाली है। म्योंकि मिथ्याल
संसर्ग से शान और सरित्र दूषित ( मिथ्या ) माने गए हैं। उदाहरणार्थ-जिसप्रकार भन्थे, बैंगदे चोर मया हीन (भालसी ) पुरुलों का अभिलषित स्थान में गमन कदापि निर्षिन नहीं देखा गया। अर्थात् जिसमचार मन्या पुरुष ज्ञान के विना केवल चारित्र ( गमन) मात्र से अभिलषित स्थान पर प्राप्त नहीं हो सष्ठा और सँगडा पम्स -कोने पर भी पारिन (सन के बिना किस स्था
इच्छित स्थान प्राप्त नहीं कर भता. एवं जिसप्रकार भवाहीन (आलसी) पुरुष प्रवृत्ति-शून्य होने के कारण अपना अभिलषित स्थान प्राप्त नहीं कर सकता उसीप्रकार सानी पुरुष पारित्र धारण किये विना अभिलषित वस्तु (मोक्ष) प्राप्त नहीं रसन्ना एवं चारित्रवान पुरुष झान के बिना मुक्तिश्री की प्राप्ति नहीं कर सकता. तथा भवाचीन मानव काल और चारित्र धारण करता हुमा भी मुक्तिश्री की प्राप्ति करने में समर्थ नही होसकता । अतः सम्बम्पर्शन, सम्मान और सम्यग्चारित्र इन तीनों की प्राप्ति से मोच होता है, जो कि वास्तविक धर्म है।
___ भावार्थ-प्रस्तुत ग्रंथ के संस्कृत टीकाकार (श्रुतसागर सूरि') ने भी उक्त दृष्टान्त वारा प्रस्तुव विषय बसमर्थन किया है। ॥१५॥ सम्यग्दर्शन (उत्त्यश्रद्धा), सम्यग्ज्ञान (वस्वाज्ञान) और सम्यग्धारित्र ( हिंसामादि-पाप क्रियाओं का त्याग) से पलस्त हुए पुरुषों की लोक में औषधादि के सेवन से प्रयोजन-सिद्धि (रोगादि बनारा) प्रत्यक्ष देखी मई है। अर्थात्-जिसप्रकार रोगी पुरुष जब औषधि को भलीभाँति जानता है
और मडा-वश उसे (करवी श्रौषधि को भी) पीने की इच्छा करता है पधं श्रद्धावश योग्य वापरण (औषधि सेवन ) करता है तभी यह बीमारी से छुटकारा पाकर उल्लसित (आनन्दित) होता है, यह बात लोक में प्रत्यक्ष प्रवीत है। उसीप्रकार यह भम्यास्मा भी सम्यग्दर्शन, सम्यग्हान और सम्यग्चारित्र रूप औषधि के सेवन से धर्मबंध रूपी रोग से छुटकाय पाकर मुक्तिश्री को प्राप्त करता हुआ वल्लसित होता. है-काश्वत् भयाण प्राप्त करता है, इसलिए जिन्हें स्वर्ग व मोक्षरूप धराम फल देनेवाले धर्म को प्राप्त करने की अभिभाष है, उन्हें सम्यग्दर्शनधान-चारिक संबंधी ज्ञान प्राप्त करने की नीति में प्रयत्नशील होना चाहिए ॥१५॥
इति धर्मानुप्रेक्षा ॥११॥
.. तवा च-श्रुतसागरपरिः-'वनधिसिनि मूतोऽन्यः संचरन माध्मविघालतमषिकलमूर्तियाँक्ष्यमागोऽपि पार
मपि समयनपादोऽपानश्च तस्मादागवगमप्यरित्रः संयुसरेन सिमिः ॥१॥ मत-जापन में भीषण दाशमाल मग्नि पक रही थी उस अवसर पर प्राप्त हुए मन्या, लंगदा र भालसी सोनाकर काल कवलित हुए, क्योंकि पन्था संचार करता हबा भी हार के बिना पा से हट न सका व गया ज्ञानी
गरमीकहासे प्रस्थान म कर सका। इसीप्रकार मेत्रर पेरों बाय बासीहाँ पर पड़ा राने नष्ट हुला, रिसराम, सम्बग्ज्ञान र सम्बम्बारित्र तीनों को प्रप्ति मोग प्राप्ति प-जाव है।
५ स्टाम्वन्द्यर। ३. ताम्तालद्वार ।