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द्वितीय आवास:
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पुनश्च गुरुमिवान्तेवासिनि स्वामिनमिव भृत्ये परंज्योतिरिध योगवरवषि पितरमुपचरति सति, विभ्रम्भेषु च द्वितीय व हृदये, निदेशकर्मणि धनक्रीत इव वाते, विधेयतायां स्वकीय इव चेतसि निर्विकल्पतायामव्यभिचारिणीय सुवि मयि प्रतिपन्न तदाराधनैकसानमनसि अपरेषु प्य तेषु तेषु तदाशावसरेष्वेकमप्यात्मानं हर्याशाविवोदकपात्रेष्वनेकमिव वर्णयति, शमानाभ्यामन्पन्न सर्वमपि परिजनं तदादेशविधिषु विदुश्यति देवताराधनेषु च तातस्य प्रतिवारिणि, गुरुजनोपासनेषु प्रतिवपुषि, धर्म विनियोगेषु पुरोषसि चाखाभ्यासेषु विक्कण विभाग करोयरालिपि,
हैं। इसीप्रकार जब कोई किसी से पूँछता था कि प्रस्तुत महाराज का युद्ध भूमि पर शत्रु सैन्य का विध्वंस करनेवाला सेनापति कौन है ? तब वह उत्तर देता था कि यशोधर नामका जगत्प्रसिद्ध राजकुमार ही प्रस्तुत महाराज का कर्मठ व बीर सेनापति है । पुनः कोई किसी से पूँछता था कि उक्त महाराज के सैम्य-संचालन आदि कार्यों के आरम्भ करने में 'मित्र' कौन है ? तब वह उत्तर देता था कि 'यशोधर' मका राजकुमार ही प्रस्तुत कार्य विधि में मित्र है ' ॥५॥
तत्पश्चात जब मैं पिठा की उसप्रकार सेवा-शुश्रूषा कर रहा था जिसप्रकार शिष्य गुरु की, सेबक स्वामी की और अध्यात्मज्ञानी योगी पुरुष, परमात्मा की सेवा-शुश्रूषा करता है। इसीप्रकार जब मेरे पिता मुझे उसप्रकार विश्वासपात्र समझते थे जिसप्रकार अपना हृदय विश्वासपात्र समझा जाता है। मैं पिता की आज्ञा-पालन प्रकार करता या जिसप्रकार वेतन देकर खरीदा हुआ ( रक्खा हुआ ) नौकर स्वामी की आज्ञा पालन करता है। जिसप्रकार शिक्षित मन समुचित कर्तव्य पालन करता है उसीप्रकार मैं भी समुचित कर्त्तव्य पालन करता था। जब मैं, आदेश के विचार न करने में अव्यभिचारी ( विपरीत न चलनेवाले — धोखा न देनेवाले ) मित्र के समान था । अर्थात् जिसप्रकार सच्चा मित्र अपने मित्र की आज्ञा पालन करने में हानि-लाभ का विचार न करता हुआ उसकी आज्ञा पालन करता है उसीप्रकार मैं भी अपने माता-पिता आदि पूज्य पुरुषों की आज्ञा-पालन में हानि-लाभ का विचार न करता हुआ उनकी आज्ञा पालन करता था । इसप्रकार जब मैंने अपने पिता की आराधना ( सेवा ) करने में अपने tant निश्चलता स्वीकार कर ली थी एवं उन उन जगत्प्रसिद्ध आज्ञा-पालन के अवसरों पर मेरे अकेले एक जीवन ने अपने को उसप्रकार अनेकपन दिखलाया था जिसप्रकार चन्द्रमा एक होनेपर भी जल से भरे हुए अनेक पात्रों में अपने को प्रतिषिम्य रूप से अनेक दिखलाता है। दान और मान को छोड़कर बाकी के समस्त पिता के प्रति किये जानेवाले शिष्टाचार-विधानों में मैंने समस्त कुटुम्बी-जन दूर कर दिये थे । अर्थात् यद्यपि याचकों को दान देना और किसी का सम्मान करना ये दोनों कार्य पिता जी द्वारा किये जाते थे अतः इनके सिवाय धन्य समस्त कार्य ( माज़ा - पालन आदि शिष्टाचार ) मैं ही करता था न कि कुटुम्बी-जम । इसीप्रकार में देवता की पूजाच्चों में पिता का सेवक था । अर्थात् पूजादि सामग्री समर्पक सेवक-सा सहायक था । इसीप्रकार अब में माता-पिता व गुरुजनों आदि की सेवाओं का प्रतिशरीर ( प्रतिविम्व ) था। इसी प्रकार जब में धर्ममार्ग में पुरोहित था । अर्थात्-जिसप्रकार राजपुरोहित राजाओं के धार्मिक कार्यों में सहायक होता है उसीप्रकार में भी पुरोहित सरीखा सहायक था। जब मैं शाखाभ्यास करने में शिष्य जैसा था । अर्थात् जिसप्रकार विद्यार्थी शास्त्राभ्यास करने में प्रवीक होता है उसीप्रकार में भी शास्त्राभ्यास में प्रवीण था। अब में विद्या-गोष्ठियों में कलाओं के सदाहरणों का साक्षी था । अर्थात् — मैं साहित्य व संगीत आदि ललित कलाओं में ऐसा पारदर्शी विद्वान या जिसके फलस्वरूप विद्वगोष्ठी में मेरा नाम कला-प्रवीणता में दृष्टान्त रूप से उपस्थित किया जाता था ।
१. प्रश्नोतरालंकार ।