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________________ . . ..... द्वितीय मापासः १३१ सौधाय राज्यबन्धाय खावेतो न सतां महौ । मणक्षीणप्रम: स्तम्भः स्वातन्त्र्योपहसः सुतः ॥ १३ ॥ ने भी कहा है कि जिसे साहित्य व संगीत-आदि कलाओं का ज्ञान नहीं है (जो मूर्ख है), वह विना सींग और पूँछ का साक्षात् पशु है। इसमें कई लोग यह शङ्का करते हैं कि यदि मूर्ख मानव यथार्थ में पशु है. तो वह घास क्यों नहीं खाता ? इसका उत्तर यह है कि यह घास न खाकर के भी जीवित रहता है, इसमें पशुओं का उत्सम भाग्य ( पुण्य) ही कारण है, अन्यथा वह घास भी खाने लगता। इसलिए प्रत्येक नर-नारी को कर्तव्य-बोध द्वारा श्रेय (यथार्थ सुख)की प्राप्ति के लिए नीति व धर्मशास्त्र-श्रादि शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए ॥१२॥ नीविवेत्ता विद्वानों ने निम्नप्रकार के दो पदार्थ क्रमशः राज-महल व राज्य स्थापन के अयोग्य माने हैं। १-घुण-समूह (कीड़ों की श्रेणी) द्वारा भक्षण किया हुआ होने के फलस्वरूप क्षीणशक्तियाला खम्भा और २ स्वच्छन्द पर्यटन-वश नष्ट-बुद्धि पुत्र । भावार्थ नीतिनिधों की मान्यता है कि जिसप्रकार घुण-समूह द्वारा खाये हुए खम्भे में मछल का बोझ धारण करने की शक्ति नष्ट होजाती है, इसलिए उसे राजमहल में नहीं लगाना चाहिए था महल के गिर जाने का खतरा निश्चित रहता है, उसीप्रकार अमान व दुराचार के कारण जिसकी बुद्धि न होचुकी है ऐसे राजपुत्र में भी राज्यशासन करने और उसे स्थापित रखते हुए संबर्षित करने की शक्ति नष्ट होजाती है, अत: उसे राजा नहीं बनाना चाहिए, अन्यथा राज्य के नष्ट होने की सम्भावना निश्चित रहती है। नीतिकार सोमदेवसूरि ने लिखा है कि जब मनुष्य द्रव्यप्रकृति (राज्यपद के योग्य राजनैतिक मान और सदाचार-सम्पत्ति आदि प्रशस्त गुणों) से अद्रव्य प्रकृति ( उक्त गुणों को त्यागकर मूर्खता, अनाचार व कायरता-श्रादि दोषों) को प्राप्त होजाता है तब वह पागल हाथी की तरह राज्यपद के योग्य नहीं रहता। अर्थात्-जिसप्रकार पागल हाथी जनसाधारण के लिए भयकर होता है उसीप्रकार अब मनुष्य में राजनैतिक शान, पाचारसम्पत्ति व शूरवा-आदि राज्योपयोगी प्रशस्त गुण नष्ट होकर उनके स्थान में मूर्खता, अनाचार व कायरता आदि दोष घर कर लेते हैं, तब वह पागल हाथी सरीखा भयर होजाने से राज्यपद के योग्य नहीं रहता। नौसिकार वल्लभदेव ने भी कहा है कि राजपुत्र शिष्ट व विद्वान होनेपर भी यदि उसमें द्रव्य ( राज्यपद के योग्य गुण) से अद्रव्यपना ( मूर्खता व अन्नाचार-आदि दोष ) होगया हो तो वह मित्रगुण ( पागल हाथी के सदृश) भयकर होने के कारण राज्यपद के योग्य नहीं है। नीतिकार गुरु विद्वान ने भी लिखा है कि जो मनुष्य समस्त गुणों-राजनैतिक पान प सदाचार-आदि-से अलस्कृत है, उसे 'राजद्रव्य' कहते है उसमें पंजा होने की योग्यता है, ये गुण राजाओं को समस्त सत्कार्यों में सफलता उत्पन्न करते हैं। निष्कर्ष-दे मारिदत्त महाराज ! इसीलिए मैंने राजद्रव्य के गुण उक्त विविध माँति की ललित कलाओं का अभ्यास किया । 1. उपमालार। २. तथा च सोमदेवरि:-'मतो दम्यावरूपप्रतिरपि कबित्सवः सार्णगजवात्। नीतिवाक्यामृत से समुस्त-सम्पादक १. तथा ब बलभदेवा-शिष्टात्मजोऽपि विदग्धोऽपि द्रव्यादण्यस्वभावकः । न स्मादाग्यपदार्थोऽसी गओ मिश्गुणो यपा ॥१॥ ४. सभा च गुरु:-यः स्यात्सर्वगुणोपेतो राजद्रव्यं तदुच्यते । सर्वकृत्येषु भूपाना तदई कृत्यसाधनम् ॥१॥ ५. यथासंख्य-अलहार । नौतिवाक्यामृत से संमलित-सम्पादक।
SR No.090545
Book TitleYashstilak Champoo Purva Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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