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इसप्रकार सोमदेव का रचा हुआ यह विशिष्ट ग्रन्थ जैनधर्माबलम्बियों के लिये कल्पवृक्ष के समान है । अन्य पाठक भी जहाँ एक ओर इससे जैनधर्म और दर्शन का परिचय प्राप्त कर सकते हैं वहीं दूसरी ओर भारतीय संस्कृति के विविध अंगों का भी सविशेष परिचय प्राप्त कर सकते हैं । प्रायः प्रत्येक आश्वास में इसप्रकार की सामग्री विद्यमान है। उदाहरण के लिये तीसरे आश्वास में प्राचीन भारतीय राजाओं के आमोदप्रमोद का सविस्तर उल्लेख है। बाण ने जैसे 'घ' में मिगृह का किया है जैसा ही वर्णन यशस्तिलक में भी है। सोमदेव के मन पर कादम्बरी की गहरी छाप पड़ी थी। वे इस बात के लिए चिन्तित दिखाई देते हैं कि बाग के किए हुए उदात्त वनों के सदृश कोई वर्णन उनके काव्य में छूटा न रह जाय। सेना की दिग्विजय यात्रा का उन्होंने लम्बा वर्णन किया है। इन सारे वर्णनों की तुलनात्मक जानकारी के लिये बाणभट्ट के तत्सदृश प्रसंगों के साथ मिलाकर पढ़ना और
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लगाना आवश्यक है। तभी उनका पूरा रहस्य प्रकट हो सकेगा। जैसा हम पहले लिख चुके हूँ, इस प्रन्थ के अर्थ- गाम्भीर्य को समझने के लिये एक स्वतंत्र शोधग्रन्थ की आवश्यकता है । केवलमात्र हिन्दी टीका से उस उद्देश्य की आंशिक दृति ही संभव है। इसपर भी श्री सुन्दरलाल जी शास्त्री ने इस कठिन ग्रन्थ के विषय में व्याख्या का जो कार्य किया है उसकी हम प्रशंसा करते हैं और हमारा अनुरोध है कि उनके इस ग्रन्थ को पाठकों द्वारा उचित सम्मान दिया जाय ।
महाकवि सोमदेव को अपने ज्ञान और पाण्डित्य का बड़ा गर्व था और 'यशस्तिलक' एवं 'नीतिवाक्यामृत' की साक्षी के आधार पर उनकी उस भावना को यथार्थ ही कहा जा सकता है । 'यशस्तिलक' में अनेक अप्रचलित शब्दों को जानबूमकर प्रयुक्त किया गया है। अप्रयुक्त और क्लिष्ट शब्दों के लिए सोमदेव ने अपना काव्यरचना का द्वार खोल दिया है। कितने है। प्राचीन शब्दों का जैसे उद्धार करना चाहते थे । इसके कुछ उदाहरण इसप्रकार हैं- घृष्णि - सूर्यरश्मि (पृष्ठ १२, पंक्ति ५ । । बल्लिका श्रृंखला, हिन्दी बेलः दावा के बाँधने की जंजीर को 'गजबेल' कहा जाता है और जिस लोहे से वह बनती है उसे भी 'गजबेल' कहते थे (८/२) । सामज हाथी १८३७ कालिदास ने इसका पर्याय सामयोनि ( १६१३) दिया है और माघ (१२/११ ) में भी यह शब्द प्रयुक्त हुआ हैं। कमल शब्द का एक अर्थ मृगविशेष अमरकोश में आया है और बाण की कादम्बरी में भी इस शब्द का प्रयोग हुआ है । सोमदेव ने इस अर्थ में इस शब्द को रक्खा है ( २३ | ४ ) । इसीसे बनाया हुआ कमली शब्द (२४।३) मृगांक --- चन्द्रमा के लिये उन्होंने प्रयुक्त किया है। कामदेव के लिये शुपकाराति (२५२११) पर्याय कुषाण युग में प्रचलित हो गया था । अश्वघोष ने बुद्धचरित और सौन्दरनन्द दोनों ग्रन्थों में शूर्पक नामक मछुवे की कहानी का उल्लेख किया है ! वह पहले काम से अविजित था, पर पीछे कुमुद्वती नामक राजकुमारी की प्रार्थना पर कामदेव ने उसे अपने वश में करके राजकुमारी को सौंप दिया ।
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आच्छोदना = मृगया ( २५०१ ); पिथुर = पिशाच ( २८|३); जरूथ = पल या मांस (२८1३); दैर्घिकेय कमल (३७/७); विरेय = नद ( ३७७६ ); गर्लर - महिष (३८ . १ ); प्रधि = कूप (३८:३); गोमिनी = श्री (४२IE); कच्छ - पुष्पवाटिका (४६१२); दर्दरीक दाडिम (५५) =), नन्दिनी उज्जयिनी (७०१६); उष्ट्र (७५१३); मितद्रु अश्व (७५१४); स्तभ = द्वाग (७८१६) पालिन्दी = बीचि (२०६३); बलाल बायु (११६१५); पुलाफ - घुंघरू (२३५॥१); इत्यादि नये शब्द ध्यान देने योग्य हैं, जिनका समावेश सोमदेव के प्रयोगानुसार संस्कृत कोशों में होना चाहिए। सोमदेव ने कुछ वैदिक शब्दों का भी प्रयोग किया है; जैसे विश्वक श्वा
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