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हमने इसमें मु०टी० प्रति का संस्कृत मूलपाठ प्रायः ज्यों का त्यों प्रकाशित किया है परन्तु अहाँपर मूलपाठ अशुद्ध व असम्बद्ध मुद्रित था, उसे अन्य ३० लि सटि० प्रतियों के आधार से मृत में ही सुधार दिया है, जिसका वत् तत् स्थलों पर टिप्पणी में उल्लेख कर दिया है और साथ ही ६० लि० प्रतियों के पाठान्तर भी टिप्पणी में दिये गये हैं । इसीप्रकार जिस श्लोक या गद्य में कोई शब्द या पद अशुद्ध था, उसे साधार संशोचित व परिवर्तित करके टिप्पणी में संकेत कर दिया है। हमने स्वयं इसके प्रूफ संशोधन किये हैं, अतः प्रकाशन भी शुद्ध हुआ है, परन्तु कतिपय स्थलों पर दृष्टिदोष से और कतिपय स्थलों पर प्रेस की असावधानीकुछ अशुद्धियाँ (रेफ व मात्रा का कट जाना आदि) रह गई हैं, उसके लिए पाठक महानुभाव क्षमा करते हुए अन्त में प्रकाशित हुए शुद्धि पत्र से संशोधन करते हुए अनुगृहीत करेंगे ऐसी आशा है ।
सुन्दरलाल शास्त्री प्रा० न्याय काव्यतीर्थ सम्पादक