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(६शह): शिपिविष्ट (७७११) जो ऋग्वेद में विष्णु के लिये प्रयुक्त हुआ है किन्तु पंजिकाकार ने जिसका अर्थ रुद्र किया है। तमा (६१) शब्द भोजकृत समरांगण सूत्रधार में कई बार प्रयुक्त हुआ है जो कि प्रासाद शिल्प का पारिभाषिक शब्द था। इस समय लोक में आधे खम्भे या पार्श्वभाग को तमञ्जा कहा जाता है। सप्तर्षि अर्थ में चित्रशिखण्डि शब्द का प्रयोग (५१०१) बहुत ही कम देखने में आता है। केवल महाभारत शान्तिपर्व के नारायणीय पर्व में इसका प्रयोग हुआ है और सोमदेव ने वहीं से इसे लिया होगा। इससे ज्ञात होता है कि नये नये शब्दों को ढूंढकर लाने की कितनी अधिक प्रवृत्ति उनमें धी। सोमदेव के शब्दशाल पर वो स्वतंत्र अध्ययन की आवश्यकता है। ज्ञात होता है कि माघ, बाण और भवभूति इन तीनों कवियों के ग्रन्थों को अच्छी तरह छानकर उन्होंने शब्दों का एक बड़ा संग्रह बना लिया था जिनका वे यथासमय प्रयोग करते थे। मौकुलि - काक (१२५१७); शब्द भवभूति के 'उसररामचरित' में प्रयुक्त हुआ है। हंस के लिये द्रुहिणद्विज अर्थात् ब्रह्मा का वाहन पक्षी (१३७/३१ प्रयुक्त हुआ है।
संपादक ने पहले खंड में केवल तीन आश्वासों के अप्रयुक्त क्लिष्ट शब्द पंजिकाकार श्रीदेव के अनुसार मुद्रित किए हैं। उनका कथन है कि आठौं आभासों की यह सामग्री लगभग १३०० श्लोकों के बराबर है जिसका शेषनाग दूसरे स्खण्ड के अन्त में परिशिष्ट रूप में मुद्रित होगा। अत एव यशस्विलकचम्पू के संपूर्ण उद्धार के लिये द्वितीय खण्ड का मुद्रित होना भी अत्यन्त आवश्यक है जिसमें अवशिष्ट ५ आश्वासों का मूल पाठ, उसकी भापाटीका ( इस अंश पर श्रुतसागर की संस्कृत टीका उपलब्ध नहीं है।) भौर क्लिष्ट शब्दसूची इस सब सामग्री का मुद्रण किया जाय ।
वासुदेवशरण अग्रवाल