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________________ म वं बाटमधूपधूमाडम्मर इव समायरसभरितार सिमतिमधुकरीमोहनमहौषधिप्रारम्भ हव संभूयोत्साहदुःसहद्विष्टद्विपचाविविशेषभेषजागम इत्र, काय कडपट्टिकाचा र परपरासुताचरितचरमाभिचार इव समनेकमा समानी कर्ततो वितरणदेवताविति मलिविधानं वीरश्रीविभ्रमणनामानमपहसिततान्तरसनालीले करबाल प्रसापट्टिपालानस्थानाललक्ष्मीचा भ्रमशिखरिणः मालिकाष्ठघुल रज्जग प्रासादोभन सम्भादर्श'जनत्रित्रित पदचरणाशनिदण्डाल्कीलकम्मलमित्र कहादुत्सृज्य रुद्राणी पादपीठो दोलायमानमणिकुण्डकिरणजाल एल्कविरागमना रामसुभगमुश्तर लत रोदस्तहस्ता स्तमितस्समस्तयात्रायासजनकोलाहलः प्रदेशिनी निदेश । दिष्टनिकटलाला टिक परिकलपने पुरस्तादुसरीपासने तन्मुनिकुमारफ्युगलमुपावीविशत् । कुषलयं Jthma तदपि तत्पार्थिवाया सपरिकरं तत्रोपविश्य नाश्योः संसारसुखविमुखमावयोरमीषु प्राणेष्वापरेषु वा केचिन्मनीषितेषु कुक्रिस्काचिदपेक्षास्ति, परमन्यत्रै कस्मात्तोनिःश्रेयसात् किस्वात्मनि पुरोभागिन्यपि जने प्रायेण श्रेयसमेत्र चिन्तयन्ति तच्चरितचेतसः । भवन्ति च तथाविधेऽपि तस्मिंस्ते निसर्गादिहामुत्र चाविरुद्ध वर्त्मनि जनितवोपदेवलः । प्रस्तुत खड्ग में विशेषता यह थी जो ( खड्ग ) अपने स्वामी ( मारिदत्त राजा ) को संग्राम-भूमियों पर अपनी भुजाओं द्वारा प्रतापोपार्जन करने में सहायता उत्पन्न करानेवाला सरीखा था। जो ऐसे पराक्रम ( पौरुष ) को, जो कि समस्त लोक में पर्यटन करने का कौतूहल रखनेवाली कीतिरूपी कुलदेवता का मित्र है, उत्पन्न करने में ब्रह्मा के समान था । जो ऐसी वीरलक्ष्मी को, जो दुःख से भी जीतने के लिए अशक्य ( विशेष शक्तिशाली ) शत्रुओं के वक्षःस्थल को विदीर्ण करने पर वहनेवाले प्रयाह-पूर्ण रुधिर की पूजा करने 'आसक्त है, बलात्कार पूर्वक खींचनेवाले मन्त्र - सरीखा है। जो ऐसी पृथिवी को, जो कि समस्त सीन लोक की रक्षा करने में समर्थ शौर्यरूप सिद्धौषधि — रसायन — द्वारा अधीन की जाती है, वश करने के लिए उसप्रकार समर्थ है, जिसप्रकार वशीकरण- आदि मंत्र शत्रु आदि को वश करने में समर्थ होते हैं । जो विस्तृत उत्कटता - शाली व विशेष बलिष्ठ शत्रुरूप सर्पों का विस्तार उसप्रकार कीलित करता है जिसप्रकार कीलित करने वाला मंत्र सर्पों को कीलित कर देता है। जो शत्रु-भूत राजाओं की कमनीय कामिनियों की कुटि नर्तनरूप भौरों को उसप्रकार उड़ा देता है, जिसप्रकार धूप के धुएँ का विस्तार, भौरों को उड़ा देता है। जो संग्राम रस (अनुराग) से परिपूर्ण शत्रुओं की बुद्धिरूपी भ्रमरियों को उसप्रकार मूर्च्छित करता है जिसप्रकार महौषधि का प्रारम्भ ( मूच्छित करनेवाली औषधिविशेष) बुद्धि को मूर्च्छित करती है। जो संग्राम में दुःख से भी सहन करने के लिए अशक्य ( प्रचण्ड ) शत्रुओं की गज श्रेणी को उसप्रकार भगा देने मैं समर्थ है । जसप्रकार अप्रीतिजनक औषधि का आगम ( मंत्रशास्त्र ) शत्रुओं को भगादेने में समर्थ होता है। जो कलिकालरूप लोकापवाद के कारण पापाचारी शत्रुओं की उसप्रकार मृत्यु करता है जिसप्रकार त्कृष्ट (अव्यर्थ ) मरणमन्त्र शत्रुओं की मृत्यु करदेता है। जिसकी पूजाविधि अनेक महासंग्रामों में आनन्दित किये गए संग्राम बताओं द्वारा कीगई है। बीर लक्ष्मी के भ्रुकुटि - विक्षेप को देखने के लिए दर्पण सरीखा होने से जो 'वीरश्री विभ्रम दर्पण' नाम से अलंकृत है और जिसके द्वारा यमराज की जिलाकान्ति तिरस्कृत की गई है। अर्थात् जो यमराज की जिल्हा सरीखा शत्रुओं को मृत्यु-घाट पर पहुँचाता है' । तदनन्तर प्रस्तुत क्षुल्लकजोड़े ने मारिखन्त राजा द्वारा की हुई प्रार्थना से उस आसन पर पर्यङ्कासन बैठते हुए अपने मन में निम्नप्रकार विचार किया - "यथप सांसारिक एक सुखों से विमुखसि रहनेवाले हम मुमुक्षुओं क शाश्वत् कल्याण कारक मोक्ष पद के सिवाय किसी भी कारण से इन प्राणों पांच न्द्रयका रक्षा करने की व दूसरे किसी भी स्पर्शाद इष्ट विषयों की अभिलाषा नहीं है, तथा पे मोक्षमार्ग में { 1 १. संकरालंकार |
SR No.090545
Book TitleYashstilak Champoo Purva Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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