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व्रत कथा कोष
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अर्थ-यहाँ कोई प्रश्न करता है कि जिस तिथि में सूर्योदय होता है, वही तिथि संपूर्ण दिन के लिए मानी जाती है । अतः उसी का नाम सकला है । कहा भी है कि जिस तिथि में सूर्योदय होता है, वह तिथि दान, अध्ययन, षोडश संस्कार आदि के लिए पूर्ण मानी गयी है । आप व्रत के लिए छः घटी प्रमाण या समस्त तिथि का षष्ठांश प्रमाण उदयकाल में होने पर तिथि को ग्राह य मानते हैं, ऐसा क्यों ? इसका उत्तर निर्णय सिन्धु नामक ग्रंथ में दिया गया है । क्योंकि वैष्णव मत में दान अध्ययन, पूजा, अनुष्ठान व्रत आदि के लिए उदयातिथि को ही प्रमाण माना गया है, जैनमत में नहीं । जैनाचार्यों ने पंचसार नामक ग्रन्थ की संधि और १२२ वें श्लोक में इस मत का खण्डन किया है। तात्पर्य यह है कि वैष्णव मत में व्रत और अनुष्ठान के लिए उदयकाल में रहनेवाली तिथि को ही ग्राह य माना है, जैनमत में नहीं ।
विवेचन-ज्योतिश्चन्द्रार्क में बताया है कि "या तिथि समनुप्राप्य प्रासाद्य उदयं भास्करः याति स्वक्षितिजेऽर्दोदितो भवति सा तिथिः संपूर्णदिनेऽपि बोध्या । कुत्र दानाध्ययनकर्मसु दानादि पुण्यकर्मसु च । यथा पूर्णिमा प्राप्त-मुहूर्ताद्ध मात्र स्थापि स्नानदानादौ समस्त दिनेऽपि मंतव्या । तथैव प्रतिपदा अध्ययनकर्मसु मन्तव्या" अर्थात् जिस समय सूर्य आकाश में प्राधा उदित हो रहा हो उस समय जो तिथि रहती है, सम्पूर्ण दिन के लिए वही तिथि मान ली जाती है । दान, अध्ययन, व्रत आदि पुण्यकार्य उसी तिथि में किये जाते हैं। जैसे पूर्णिमा प्रातःकाल में एक घटी रहने पर भी स्नान, दान, व्रत आदि कार्यों के लिए प्रशस्त मानी जाती है । उसीप्रकार प्रतिपदा अध्ययन कार्य के लिए सूर्योदय समय में एक घटी या इससे भी अल्प प्रमाण रहने पर प्रशस्त मान ली गयी है । अतएव व्रत के लिए उदयप्रमाण ही तिथि लेनी चाहिए। जैनाचार्यों ने इस उदयकालीन तिथि की मान्यता का जोरदार खण्डन किया है । उन्होंने अपने मत के प्रतिपादन में अनेक युक्तियां दी हैं।
उदयकालीन तिथि को व्रत के लिए संपूर्ण मानने में तीन दोष पाते हैंविद्धा तिथि होने के कारण, उदय के अनन्तर अल्प काल में ही तिथि के क्षय हो जाने से व्रततिथि के प्रमाण का प्रभाव और निषिद्ध तिथि में व्रत करने का