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व्रत कथा कोष
उससे पहले दिन व्रत करने का आदेश दिया है । मुनिसुव्रत पुराणकार का यह मत निर्णयसिंधु में प्रतिपादित दीपिकाकार के मत से मिलता-जुलता है। दीपिकाकार भी तिथि का प्रमाण षष्ठांश ही मानते हैं । परन्तु उन्होंने तिथि का स्पष्ट प्रमाण न ग्रहण कर मध्यम ही मान लिया है । प्राचार्य ने स्पष्ट माना है।
उदाहरण-बुधवार को पंचमी तिथि ८ घटी १२ पल है । तथा इसके पहले मंगलवार को चतुर्थी तिथि १० घटी १५ पल है, अब गणित से निकालना यह है कि पंचमी तिथि का स्पष्ट मान क्या है ? मंगलवार को चतुर्थी १० घटी १५ पल है, उपरान्त पंचमी मंगलवार को प्रांरभ हो जाती है। अतः ६० घटी अहोरात्र प्रमाण में से चतुर्थी तिथि के घट्यादि घटाया-(६०/०)-(१०/१५) - ४६/४५ मंगलवार को पंचमी तिथि का प्रमाण पाया । बुधवार को पंचमी तिथि ८ घटी १२ पल है, दोनों दिन की पंचमी तिथि के प्रमाण को दिया तो कुल पंचमी तिथि = (४६/४५) + (८ १२) = ५७/५७ पंचमी तिथि हुई, इसका षष्ठांश लिया तो ५७/५७ ६=६/३६ |३० हुआ । बुधवार को पंचमी तिथि ८ घटी १२ पल है, जो पंचमी तिथि के षष्ठांश ६ घटी ३६ पल और ३० विपल से कम है । अतः मुनिसुव्रत पुराणकारके मत से पंचमी का व्रत बुधवार को नहीं किया जा सकता, यह व्रत मंगलवार को ही कर लिया जाएगा। दीपिकाकार ने गणितक्रिया से बचने के लिए मध्यम तिथि का मान स्वीकार कर उसका षष्ठांश दस घटी स्वीकार कर लिया है । अर्थात् सूर्योदय काल में दस घटी से कम तिथि अग्राह्य मानी जाएगी। मुनिसुव्रत पुराणकारके मत से भी तिथि का प्रमाण उदयकाल में दस घटी ही लेना चाहिए । व्रततिथि निर्णय के लिए निर्णयसिन्धु के मत का निरुपण तथा खण्डन
पुनः प्रश्नं करोति यस्यां तिथौ सूर्योदयो भवति सा तिथिः संपूर्णा ज्ञातव्या सदुक्तं
या तिथिं समनुप्राप्य उदयं याति भास्करः ।
सा तिथिः सकला ज्ञेया दानाध्ययन कर्मसु ॥ इति तस्योत्तरमेतद्वचनं निर्णयसिन्धौ वैष्णवे ज्ञातव्यं न तु जिममते पंचसारग्रन्थे।