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________________ व्रत कथा कोष [३५ २८/२० है, इस दिन सूर्योदय ६/५० मिनट पर होता है । मध्यान्ह जानने के लिए २८/२०+५=५/१६ इसको तीन से गुणा किया तो ५/१६४३=१५/५७ इसका घण्टात्मक मान ६/२२/४८ हुअा, सूर्योदय काल मे जोड़ा तो १ (एक) बजकर १२ मिनट ४८ सेकण्ड पर मध्यान्ह काल आया। मुनिसुव्रत पुराण के अाधार पर व्रततिथि का प्रमाण तदुक्तं मुनिसुव्रत पुराणे षष्ठांशोऽप्युदये ग्राह्या तिथिवत परिन हैः । पूर्वमन्यतिथेर्योगो वतहानिः करोति च ॥ प्रस्यार्थ : व्रतपरिग्रहैः सूर्योदये तिथेः षष्ठांशमपि ग्राह यं, अत्रापि शब्देन षष्ठांशादधिको ग्राह य इति निर्विवादः, न न्यून्यांश इति द्योत्यते कुतः यस्मात् व्रत परिग्रहाणां षष्ठांशात् पूर्वमन्यतिथि संयोगवतहानिकरः व्रतनाशकरो भवतीत्यर्थः । .....अर्थ-व्रत करने वालों को सूर्योदय काल में षष्ठांश तिथि के रहने पर व्रत करना चाहिए । षष्ठांश से अधिक तिथि होने पर तो व्रत किया जा सकता है, पर न्यूनांश होने पर व्रत नहीं किया जा सकेगा, क्योंकि अन्य तिथि का संयोग होने से व्रतहानि होती है, व्रत का फल नहीं मिलता है । इस श्लोक में अपि शब्द आया है, जिसका अर्थ षष्ठांश से अधिक तिथि ग्रहण करने का है अर्थात षष्ठांश से अधिक या षष्ठांश से तुल्यतिथि उदयकाल में हो तभी व्रत किया जा सकता है । षष्ठांश से अल्प तिथि के होने पर व्रत नहीं किया जाता। विवेचन-प्राचार्य ग्रंथान्तरों के प्रमाण देकर व्रततिथि का निर्णय करते हैं । मुनिसुव्रत पुराण में बताया गया है कि उदयकाल में षष्ठांश तिथि या षष्ठांश से अधिक तिथि के होने पर ही व्रत करना चाहिए । तिथि का मध्यम मान ६० घटी प्रमाण माना जाता है। स्पष्ट मान प्रतिदिन भिन्न-भिन्न होता है । स्पष्ट मान का पता लगाना ज्योतिषी का ही काम है, साधारण व्यक्ति का नहीं। किन्तु मध्यम मान ६० घटी प्रमाण निश्चित है। इसका षष्ठांश दस घटी हुआ, अतः यह अर्थ लेना अधिक संगत होगा कि जो तिथि उदयकाल में दस घटी कम से कम अवश्य हो वही व्रत के लिये उपयुक्त मानी गयी है । दस घटी से कम प्रमाण तिथि के रहने पर,
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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