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________________ व्रत कथा कोष [२३ जैसे-अष्टान्हिका व्रत अष्टमी से प्रारम्भ होकर पूर्णिमा को समाप्त होता है। इन आठ दिनों के मध्य में यदि दशमी तिथि का अभाव है, व्रत सात ही दिन करना न पड़े, इसलिये बत सप्तमी से प्रारम्भ करना चाहिये । इसी प्रकार दशलाक्षणिक व्रत के दिनों में भी यदि तिथि का अभाव हो तो पंचमी के बदले चतुर्थी से ही व्रत प्रारम्भ करना चाहिये । क्योंकि पर्युषणपर्व का प्रारम्भ भाद्रपद शुक्ला पंचमी से लेकर भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशी तक माना जाता है। यह दशलक्षण व्रत दश दिनों तक किया जाता है, यदि इसमें किसो तिथि के क्षय होने से दिनों की संख्या कम हो तो यह व्रत चतुर्थी से ही कर लिया जायेगा। हां, जिन्हें पंचमी, अष्टमी, चतुर्दशी का व्रत करना है, उन्हें उन-उन तिथियों के पाने पर ही व्रत करना चाहिये । इस नियम (तिथि का अभाव होने पर व्रत एक दिन पहले करना चाहिये) में इतना विशेष है कि यह सर्वत्र लागु नहीं पड़ता । नियत अवधिवाले नैशिक और देवासिक व्रत में ही लागू पड़ता है, मासिक व्रतों में मेघमाला, षोडशकारण मादि में लागू नहीं पड़ता है। जैसे-षोडशकारण व्रत प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर सोलह उपवास और पंद्रह पारणायें-इसप्रकार इकतीस दिन तक करने के उपरान्त प्रतिपदा को समाप्त होता है । इस व्रत में तोन प्रतिपदायें पड़ती हैं, पहली भाद्रपद कृष्णपक्ष की, द्वितीयभाद्रपद शुक्लपक्ष की और तीसरी अश्विन कृष्णपक्ष की । यदि पहली प्रतिपदा/भाद्रपद कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से लेकर तीसरी प्रतिपदा)अश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तक किसी तिथि की हानि होने से दिनसंख्या कम हो, तो भी व्रत प्रतिपदा से प्रारंभ कर तीसरी प्रतिपदा तक अर्थात् भाद्रपद कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ कर अश्विन मास कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तक करना चाहिये । __यहां तीनों प्रतिपदाओं का ग्रहण करने का विधान किया गया है । मासिक व्रतों में अन्य महिनों के दिन ग्रहण नहीं किये जाते हैं । भाद्रपद से प्रारंभ होने वाला
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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