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व्रत कथा कोष
व्रत श्रावण से प्रारंभ नहीं किया जा सकता है । ऐसा करने पर व्रतहानि है, और व्रत करनेवाले को फल नहीं मिलेगा।
विवेचन-पर्व व्रतों के अतिरिक्त नियत अवधिवाले व्रत भी होते हैं । पर्व व्रतों के लिए प्राचार्यों ने तिथि का प्रमाण छह घटी निर्धारित किया है, जिस दिन छह घटी प्रमाण व्रततिथि होगी, उसी दिन व्रत किया जायेगा । नियत अवधिवाले व्रतों के लिए यह निश्चय करना होगा कि निश्चित अवधि के भीतर यदि कोई तिथि क्षय होती है तो व्रत कब करना चाहिये, क्योंकि तिथिक्षय हो जाने से नियत अवधि में एक दिन घट जायेगा, व्रत पूरे दिनों में किया नहीं जा सकेगा, ऐसी अवस्था में व्रत करने के लिए क्या व्यवस्था करनी होगी?
__आचार्य ने इसके लिए नियम बताया है कि नियत अवधिवाले दशलाक्षणिक व्रत और अष्टान्हिका व्रतों के लिये बीच की किसी भी तिथि का क्षय होने पर एक दिन पहले से व्रत करना चाहिये, जिससे व्रत के दिनों की संख्या कम न हो सके।
ज्योतिषशास्त्र में व्रतों के लिये तिथियों का प्रमाण निश्चित किया गया है। यद्यपि व्रतों के लिये तिथियों का प्रतिपादन करना आचारशास्त्र का विषय है, किन्तु उन तिथियों का समय निर्धारित करना ज्योतिषशास्त्र का विषय है।
प्राचीनकाल में प्रधानरूप से ज्योतिषशास्त्र का उपयोग तिथि और समय निर्धारण के लिये ही किया जाता था । इस शास्त्र का उत्तरोत्तर विकास भी कर्तव्य कर्मों के निर्धारण के लिये ही हुआ है ।
उदयप्रभसूरी, वसुनंदी आचार्य और रत्नशेखर सूरी ने शुभाशुभ समय का निर्धारण करते समय बताया है कि व्रतों के लिए प्रतिपादित तिथियों को यथार्थ रूप से व्रत के समयों में ही ग्रहण करना चाहिये अन्यथा असमय में किये गये व्रत का फल विपरीत होता है।
जो श्रावक नैमित्तिक व्रतों का पालन करता है, वह अपने कर्मों की निर्जरा असमय में ही कर लेता है । समस्त प्रारंभ और परिग्रह छोड़ने में असमर्थ गृहस्थ