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व्रत कथा कोष
तिथि-हासे प्रकर्तव्यं सोदये दिवसे व्रतम् ।
तदादिदिनमारभ्य व्रतान्तं क्रियते व्रतम् ॥१२॥ अर्थ-तिथि के क्षय होने पर, तिथि जिस दिन उदयकाल में छह घड़ी हो उस दिन से व्रत प्रारम्भ करना चाहिये । तात्पर्य यह है कि दशलक्षण एवं अष्टान्हिक आदि व्रतों में तिथिक्षय होने पर एक दिन पहले से व्रत करें।
तिथि-ह्रासे क्षये सति वा कुलाद्रि घटिका प्रमाण हीने सति सोदये दिवसे व्रतं कार्यम् । सोदयस्य लक्षणं किमिति चेत्तहि-सोदयं दिवसं ग्राह्य कुलाद्रि घटी प्रममिति कर्त्तव्यम्' व्रतप्रारम्भस्यादिदिनमारभ्य व्रतान्तं व्रतं क्रियते यथाष्टान्हिक दिवसेषु मध्ये काचित्तिथिः क्षयंगता अतो व्रतस्यादिदिनं सप्तमोदिन ग्राह्यम् । एवं दाशलक्षणिक दश दिनेषु मुख्य पंचमी चतुर्दशी पर्यन्तेषु तिथिक्षयवशाच्चतुर्थी ग्राह्या । तथैव सर्वत्रापि ग्राह्यम् ।
परञ्चतावान् विशेषः-अयं नियमः देवासिक नियतावधिक नैशिकेषु भवति ग्राह्यः । न तु मासिकादिषु मासिकादिनी मेघमालाषोडशकारणादीनि तत्रापि यथा षोडशकारण व्रतं प्रतिपद्दिनमारभ्य षोडशभिरूपवासैः पंचदश पारणाभिश्चैकत्रिकृतैरेकत्रिंशदिवसः प्रतिपत्पर्यन्तं समाप्तिमुपगच्छति।
यदि प्रतिपदमारभ्य तृतीय प्रतिपत्पर्यन्तं तिथिक्षयवशादिनसंख्याहानिः स्यात् तदा यस्मिन्दिनेप्रतिपदामारभ्य प्रतिपत्पर्यन्तं कार्यम् । तस्य प्रतिपत् त्रयमेव ग्राह यं कथितम् नतु मासिकजातस्य दिनं त्वपरे मासे ग्राह यं भवति तदा व्रतकर्तुः व्रतहानिर्भवति।
अर्थ-तिथि के क्षय होने पर अथवा उदयकाल में तिथि के छह घटी न होने पर सोदय में एक दिन पहले व्रत करना चाहिये ।
सोदय का लक्षण क्या है ? आचार्य कहते हैं-जिस दिन कम से कम छह घटी प्रमाण तिथि हो, वही दिन सोदय कहलाता है, अतः क्षय होने पर या उदयकाल में छह घटी प्रमाण तिथि के न होने पर व्रत प्रारम्भ होने के एक दिन पहले से ही व्रत करना चाहिये और व्रत की समाप्ति पर्यन्त व्रत करते रहना चाहिये ।