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व्रत कथा कोष
तिथि छह घड़ी से अल्प हो तो यह उपवास शुक्रबार को किया जाएगा । इसी प्रकार सर्वत्र जानना ।
आकाशपंचमी व्रत भाद्रपद शुक्ला पंचमी को किया जाता है । चतुर्थी को एकाशन कर पंचमी को व्रत रखना चाहिए। रात्रि को णमोकार मंत्र का जाप करते हुए, स्तोत्र पढ़ते हुए, स्वाध्याय करते हुए बर्तना चाहिए । रात्रि को जागरण आवश्यक है । खुले स्थान में रात को पद्मासन लगाकर ध्यान लगाना चाहिये । इस व्रत के दिन और रात आकाश की ओर देखकर बिताये जाते हैं ।
भाद्रपद मास की षष्ठि को व्रत किया जाता है । इस दिन प्रोषधोपवास करके रात्रि जागते हुए बिताना चाहिये | चंदन - षष्ठि को रात को विशेष क्रियायें करनी पड़ती हैं । खड़े होकर पच परमेष्ठी का ध्यान करते हुए रात बिताने का इस व्रत में विधान है। रात्रि को क्रियाओंों को मुख्यता के कारण ये व्रत नैशिकवत कहलाते हैं । नैशिकव्रतों के लिए उदयकालीन तिथि ग्रहरण नहीं की जाती है । अस्तकालीन तिथि लेने का विधान है। सूर्य के प्रस्त समय में तीन घटी तिथि हो तो नैशिक या प्रदोष व्रत करना चाहिए ।
उदाहरण - रविवार को पंचमी तिथि १० घटी १५ पल है । इस दिन उदयकालीन तिथि है, पर ग्रस्त समय में पंचमी नहीं है, किन्तु षष्ठि प्रा जाती है, अतः आकाशपंचमी का व्रत रविवार को न करके शनिवार को करना चाहिए । यद्यपि ऐसी अवस्था में दशलक्षण व्रत रविवार से ही आरम्भ किया जायेगा किन्तु आकाशपंचमी का व्रत शनिवार को ही कर लिया जायेगा ।
'प्रदोषन्यायिनी ग्राह्या तिथिर्नक्तव्रते सदा' अर्थात् रात्रिव्रतों के लिए संध्याकालीन तिथि का ग्रहण करना आवश्यक है । प्रकाश पंचमी व्रत रात्रि व्रतों में परिगणित है, अतः इसके लिए संध्या काल में पंचमी तिथि का रहना आवश्यक है । तिथि हासे सति किं विधानमति चेदाह-
अर्थ - तिथि ह्रास होने पर व्रत करने का क्या नियम है ? इस प्रश्न का उत्तर आचार्य देते हैं
( दशलाक्षणिक और अष्टान्हिका व्रतों में बीच की तिथि घटने पर व्रत करने का नियम - )