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व्रत कथा कोष
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कथा
इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में कांभोज देश है, उस देश में चित्राँगपुरी नगर है, उस नगर में पहले एक सुखविद नाम का राजा अपनी पट्टरानी सुभद्रा सहित राज्य करता था, उसी नगर में बंधुदत्त नाम का एक सेठ बंधुमती सेठानी सहित रहता था, उसको एक नन्दन नाम का पुत्र था ।
एक दिन नन्दन देव दर्शन करने के लिए जिन मन्दिर में गया, दर्शन करके जब सभा मण्डप में आया तो वहां एक वरदत्त नामक दिगम्बर महामुनि उपदेश कर रहे थे, उसने भी उपदश सुना और प्रभावित होकर अणुव्रतों को ग्रहण करके वापस अपने घर लौट आया, कुछ दिनों के बाद वह नन्दन दुष्टजनों की संगति में पड़कर पाप करने लगा और गुरु से लिए हुए अणुव्रतों को छोड़ दिया, व्रत भंग हो गया, पाप के प्रभाव से मरकर बाईस सागर आयु वाले तमप्रभा नरक में उत्पन्न हुआ और दुःख भोगने लगा । वहां से प्रायु समाप्त कर कौशलपुर नगर में सोमदत्त सेठ के घर महिष होकर पैदा हुआ। एक दिन एक खेत के निकट घास खाते हुए उस भैंसे पर अकस्मात बिजली पड़ी और कंठगत प्राण होकर जमीन पर गिर पड़ा, वह भैंसा वहां पड़ा था, उसी रास्ते से एक श्रार्थिका माताजी बिहार करती जा रही थी, उसने भैंसे की ऐसी अवस्था देख दया से उसके कान में णमोकार मंत्र सुनाया और वह भैंसा वहां ही मर गया, मरकर उज्जयिनी नगरी के राजा यशोभद्र की रानी के गर्भ से कन्या होकर उत्पन्न हुआ । वह कन्या, कुब्जक व गूंगी थी, बोलना भी उसे नहीं आता था और न चलना ही । एक दिन उस नगरी के उद्यान में अरिंजय और प्रजितंजय नाम के मुनिराज सहस्रकूट चैत्यालय के दर्शन को आये, यह शुभवार्ता राजा ने सुनी, राजा अपने नगरवासियों और परिवार को लेकर मुनिराज के दर्शनों को उद्यान में गया, भगवान का दर्शन कर धर्मोपदेश सुनने को मुनिराज के निकट बैठ गया, कुछ समय तक - धर्मोपदेश सुनकर राजा ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि हे देव, मेरी कन्या इस प्रकार गंगी और कुबड़ी क्यों हुई है, पूर्वभव में ऐसा कौनसा पाप किया है ? तब मुनिराज ने उसके पूर्व भवान्तर कह सुनाये, उसने पूर्वभव में गुरु से लिए हुये अणुव्रतों को भंग कर दिया, यही सबसे बड़ा पाप हुआ है, इस पाप से छुटने के लिये इस लड़की को त्रिभुवन तिलक व्रत का पालन करना चाहिये ।