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________________ ७१० ] व्रत कथा कोष उसकी व्रत विधि सुनी तब राजा और रानी ने यह व्रत लिया । यथाविधि पालन किया । कालान्तर में यथाविधि समाधि मरण से मरकर वे अच्युत स्वर्ग में इन्द्र इन्द्राणी हुए । इन्द्राणी का जीव वहां से च्युत होकर तेरे पेट से श्रु तशालिनी नामक लड़की हुई है । तब फिर से यह व्रत उसने शुरू किया । चारित्र के प्रभाव से कषाय को क्षय किया और आखिर में मरकर अहमिन्द्र स्वर्ग में देव हुई। वहां के सुख भोगकर विदेह में कुमुदावति देश में प्रशोकपुर नगर के राजा पद्मनाभ उसकी रानी जिनप्रभा के पेट से जयंधर नाम से जन्म लिया और बाद में तीर्थंकर चक्रवर्ती व कामदेव पदवी के धारी हुये । प्रजा का पालन किया । और राज्य भोगों से विरक्त होकर जिनदीक्षा ली और कठोर तपस्या करके कर्मों का क्षय करके केवली हुए और अंत में मोक्ष गये। श्रीखण्ड व्रत श्रावण वदि पष्ठि को यह व्रत करना चाहिये । व्रत के दिन जिनमन्दिर में जाकर भक्ति से भगवान का अभिषेक विधिपूर्वक करना चाहिए और नित्यनियम की पूजा करना पूजा के बाद पंचनमस्कार मन्त्र का जाप करे । बाद में अंतराय पालकर एकाशन करे । इस प्रकार भाद्रपद शुदि अष्टमी तक एकाशन करे । ऐसे यह व्रत १५ दिन का है व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करे । ___-गोविन्दकविकृत व्रत निर्णय अथ हस्तपंचमी व्रत कथा व्रत विधि :-कार्तिक शुक्ला ४ दिन के एकाशन करे । पंचमी के दिन शुद्ध कपड़े पहनकर अष्टद्रव्य लेकर मन्दिर जाये, दर्शन आदि करने के बाद वेदी पर पंचपरमेष्ठी की प्रतिमा स्थापित करके अभिषेक करे। फिर भगवान के सामने एक पाटे पर ५ स्वस्तिक निकाल कर उस पर ५ पत्ते रखे, उस पर अष्टद्रव्य रखे, पंचपरमेष्ठि की पूजा, आरती स्तोत्र करे । श्रुत व ग्रुरु, यक्षयक्षी की पूजा करे । जाप :-ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रः असि पाउसा पंरपरमेष्ठिभ्यो नमः स्वाहा। ___ इस मन्त्र का १०८ बार पुष्प से जाप करे व णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप करे। फिर यह कथा पढ़ । दूसरे दिन पूजा आदि कर पारणा करे ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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