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________________ व्रत कथा कोष -[७०६ इसकी दूसरी पद्धति- इसमें तिथि महिना इसका नियम नहीं है । श्रु तभक्ति धारी को १५८ उपवास करना चाहिए । -गोविंदकृत व्रत-निर्णय तीसरी विधि :-१६ प्रतिपदा के १६, दो द्वितीया के दो, तीन तृतीया के तीन, चार चतुर्थी के चार, इस क्रम से पूर्णिमा तक पूर्णिमा के १५ और इसी क्रम से अमावस्या के १५ इस प्रकार से १५० उपवास करना (इसको कब करना इसका खुलासा नहीं है) व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिए । -गोविंदकृत व्रत निर्णय कथा जम्बूद्वीप में भरत क्षेत्र में अंगदेश है उस देश में पाटलीपुत्र नगर में बहुत वर्ष पहले राजा चंद्ररुची अपनी चंद्रप्रभा रानी के साथ राज्य करता था। उसकी लड़की श्रुतशालिनी अपने रूप व गुण से सब विद्याओं में प्रवीण थी। बुद्धि से तीक्ष्ण थी। राजा ने उसको एक प्रायिका के पास विद्याध्ययन के लिये भेजा था। एक दिन उस लड़की ने अपनी बुद्धि से श्रु तस्कंध मण्डल निकाला यह देखकर आर्यिका को आनंद हुमा । उसकी प्रशंसा की। फिर वह राजकन्या आर्यिका की आज्ञा लेकर घर पायी। राजा को वह शिक्षा में प्रवीण है ऐसा सुनकर आनंद हुआ। एक दिन गांव के बाहर उद्यान में एक श्री वर्धमान मुनि आये थे । राजा अपने परिवार सहित मुनि दर्शन को मया । भक्तिपूर्वक वंदना करके मुनि के पास बैठे। मनि महाराज ने धर्म का स्वरूप समझाया। यह सुनकर बहुत से लोगों ने अणव्रत लिये । तब राजा ने मेरी लड़की किस पुण्य से विदुषी हुई है यह पूछा तब 'मुनि महाराज ने उत्तर दिया । राजन ! इस जम्बूद्वीप के पूर्वविदेह में पुष्कलावती देश में पुष्करिणी नगर है। वहां राजा मुगभद्र अपनी पत्नि गुणवति के साथ राज्य करता था । एक बार वह परिवार सहित सीमंधर स्वामी के दर्शन को गया था। उनकी भक्तिपूर्वक पूजा करके वह बैठ गया और भगवान के मुंह से श्रुत स्कंध का स्वरूप सविस्तार सुना।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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